ओखला विधान सभा क्षेत्र में समस्सयाओं की भरमार है। इस विधान सभा में तैयमूर नगर, जसौला गावं, आली गांव, मदनपुर खादर गांव, ओखला गांव, मशीगढ़ गांव, अफुल फजल, शाहीन बाग, नूर नगर, बटला हाउस, जाकीर नगर, नयी बस्ती, सरिता विहार, जनता फलैट, कच्ची कालोनी, प्रिंयका कैंप, आली विस्तार, पुनर्वास कालोनी मदनपुर खादर आदि रिहायशी इलाके हैं, जिनमें लगभग 2 लाख लोग रहते हैं।

इस बार ओखला विधानसभा में 137590 वोटिंग भी हुई है। ओखला में सबसे व्यापक समस्या पीने के पानी की है। सिर्फ सरिता विहार और जसोला और जामिया के कुछ इलाके को छोड़कर शायद ही किसी एरिया में जल बोर्ड का पानी आता है। यहां के सभी गांव की स्थिति तो इतनी दयनीय है कि पानी के नाम पर भूमिगत जल मिलता है। यहां आज तक सीवर नहीं है गंदा पानी नालियों में कम और रास्तों में ज्यादा बहता है। बरसात के मौसम में तो गांव में रास्तों और नालियों में कोई फर्क नहीं होता।

पुनर्वास कालोनी की बात करें तो यह डी.डी. ने 2000 से 2002 के बीच में बसाया था। यह नेहरू प्लेस, अलकनंदा, गौतमपुरी, सीसीआई कैंप, आदि स्लमों को तोड़कर बसाया गया था। जब यहां लोगों को बसाया गया तब वह दलदल था। लोगों ने उसका भराव करके अपने लिये आशियाना बनाया। बिजली तब यहां मिली जब बिजली का निजीकरण हो गया। यहां भी लोग आज तक पानी खरीदकर पीते हैं। सरकार की तरफ से जल बोर्ड का पानी आज तक यहां नहीं है। इस दौरान कई एम.एल.ए. और निगम पार्षद आये और गये। लेकिन पीने के पानी की सुविधा आज तक नहीं दी गयी। यहां के निवासियों को भूमिगत पानी पीने से पेट की तरह-तरह की बीमारियां हो रही हैं। निवासियों की आमदनी का एक बहुत बड़ा हिस्सा पानी खरीदने पर जाता है।

जब किसी का पुनर्वास किया जाता है तो लोगां की एक पीढ़ी खत्म हो जाती है क्योंकि सभी जरूरतों के लिये नये सिरे से जनता को शुरुआत करनी पड़ती है। ऐसे में पूरी एक पीढ़ी बर्बाद हो जाती है जिसकी जिम्मेदार सरकार होती है।

2009 में शिक्षा का अधिकार कानून लागू हो गया है। लेकिन कानून कितना धरातल पर है वह मदनपुर खादर के स्कूल को देखकर पता चलता है। प्राइमरी स्कूलों में एक अध्यापक को पढ़ाने के लिये 100-100 बच्चे हैं। पीने के पानी का कोई प्रबंध नहीं है और न ही बच्चों के लिये शौचालय है। कई बार तो क्लास रूम की कमी के कारण बच्चों को शिफ्ट वाईज में पढ़ाया जाता है। सरकार ने शिक्षा का अधिकार कानून तो लागू कर दिया लेकिन उसके लिये राज्य सरकार, पैसे देगी या केन्द्र सरकार यह अभी तक तय नहीं किया गया है।

शौचालय तो यहां भगवान भरोसे ही चलता है। शौचालय में गंदकी इतनी होती है कि इंसान जाये तो इसमें बदबू से ही बेहोश जायेगा। ऐसे में शौच करना या पेशाब करना तो दूर की बात है। इसकी साफ-सफाई का कोई भी उचित प्रबंधन नहीं है। ज्यादातर शौचालय बंद पड़े हैं, कई शौचालय में पानी ही नहीं है। कुछ एकआद चलते हैं तो उसमें उसमें साफ-सफाई नहीं होती। टीवी पर अभिनेता और सरकार यह प्रचार करती है कि जिस घर में शौचालय नहीं तो बेटी की शादी नहीं हो सकती। शौचालय बनवाने और उसको चलाने कि जिम्मेदारी सरकार, एम.पी, एम.एल.ए., निगम पार्षद की है, वे अपनी जिम्मेदारियां नहीं निभाते। शौचालय न होने से मजबूर होकर निवासियों को घर में शौचालय बनवाना पड़ता है। लेकिन उसके लिये यहां सीवर नहीं है। जिसके कारण लोग गड्ढा खोदकर शौचालय बनवाते हैं जो पर्यावरण की दृष्टि से ठीक नहीं है।

रास्तों की तो पूरे विधान सभा में खस्ता हालत है। यह कहा जाता है कि रास्तों में गड्ढा नहीं होना चाहिये। लेकिन ओखला में तो गड्ढों में रास्ता है। पूरे जामिया में रास्तों पर धूलभरी आंधी चलती रहती है। कालिंदीकुंज से मदनपुर खादर पैदल नहीं जाया जा सकता। गांव में तो सारा गटर का पानी सड़कों पर बहता है।

ये सारी समस्याएं सिर्फ एक विधान सभा की नहीं है। ज्यादातर हर क्षेत्र की यही समस्या है। कांग्रेस पार्टी हो, भाजपा हो, या बसपा हो कहीं न कहीं किसी न किसी पद पर इन पार्टियों के लोग वहां बैठे हैं। लेकिन इस लूट खसौट को इन सबने बरकरार रखा है। ऐसे में पार्टियों की जकड़ को तोड़कर मजदूर वर्ग की राजनीतिक को लागू करना होगा और हमें पार्टियों की नयी परिभाषा को तय करना होगा, तथा लोगों को द्वारा अपने चयनित उम्मीदवारों को खड़ा करें और उसकी डोर जनता के हाथों में होना चाहिये।

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