Hung Delhi Assembly and games parties play

 

We are told that through elections the people get the government they deserve. However, the situation in Delhi reveals that we, the people, have no say in government formation under the existing system. Whether a government gets formed is now in the hands of the elected MLAs. We are only fed with rumours about this or that political party engaging in horse-trading to try and form a government without having to seek the people’s vote once again.

People of Delhi cast their votes in December 2013, with hopes and expectations of finding solutions to their burning problems including electric power, water, sanitation, education and health care. Just because no one party got a majority of seats, the Delhi Assembly has been in suspended animation for the past six months. Is this what we deserve?

Whether fresh elections should be held for the state assembly is a question of concern to all the people of Delhi. Should the answer depend on whether or not some political party is prepared for elections at this time? Should it depend on whether some party has enough money stocked up for the campaign? What about the wish of the majority of people of Delhi? Can we be silent spectators of the games being played by parties backed by big money power?

Lok Raj Sangathan would like to encourage maximum discussion among the people about the need to change the existing system in which we are reduced to voting cattle and in which parties of vested interests play with our fate. What must we do so that we, the people, can have a decisive say in the decisions that affect our lives? You are cordially invited to take part in the discussion meeting, whose details are given below.

Date: Sunday, 6th July 2014, Time: 10:00 AM
Place: Indian Social Institute, Lodhi Road (Near Sai Baba Mandir), New Delhi
Contact: Birju Nayak 9818575435
Organised by Lok Raj Sangathan

अधर में विधानसभा और पार्टियों का खेल

अंग्रेजी में कहावत है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे काबिल होते हैं। परन्तु दिल्ली में अभी सरकार बनेगी या नहीं, यह मतदाताओं पर निर्भर नहीं है बल्कि पार्टियों, विधायकों और उनके पीछे खड़ी ताकतों के हाथ में है। प्रसार माध्यम यह अंदाजा लगाने में व्यस्त हैं कि कौन-कौन सी राजनीतिक पार्टियां, फिर चुनाव किये बिना, जोड़-तोड़ से सरकार बनाने में सफल होंगी।

दिसम्बर 2013 में दिल्ली के लोगों ने इस उम्मीद के साथ मतदान में भाग लिया था कि नयी सरकार, उनकी बिजली, पानी, साफ-सफाई, शिक्षा व स्वास्थ्य, इत्यादि समस्याओं का कुछ हल निकालेगी। परन्तु विधान सभा अधर में लटकी है सिर्फ इसीलिये कि किसी भी पार्टी को
बहुमत नहीं मिला।

दिल्ली में फिर से चुनाव होना चाहिये या नहीं, यह प्रश्न दिल्ली के सभी लोगों का है। क्या इस प्रश्न का जवाब इस पर निर्भर होना चाहिये कि कोई पार्टी चुनाव के लिये तैयार है कि नहीं? या इस पर निर्भर होना चाहिये कि उनके पास चुनावी अभियान के लिये धन है कि नहीं? क्या इसका जवाब दिल्ली के लोगों की इच्छा पर निर्भर नहीं होना चाहिये? क्या हमें इसे बड़े धन पर आश्रित पार्टियों पर ही छोड़ देना चाहिये?

मौजूदा व्यवस्था, जिसमें लोगों की भूमिका चुनावों में मात्र वोट देने तक सीमित है, और निहित स्वार्थ की पार्टियां लोगों के भाग्य से खिलवाड़ करती हैं, लोक राज संगठन इसमें परिवर्तन के विषय पर लोगों के बीच ज्यादा से ज्यादा चर्चा चाहता है। हमें वह सब करना होगा जिससे हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले सभी फैसलों में हम हिस्सा ले सकें। निम्नलिखित विषय पर विचार-विमर्श के लिए आयोजित
गोष्ठी में भाग लेने के लिये आप सभी आमंत्रित हैं।

दिनांक 6 जुलाई, 2014, रविवार, समय सुबह 10 बजे,
स्थान: इंडियन सोशल इंस्टिट्यूट, लोधी रोड़, (साई बाबा मंदिर करीब), नई दिल्ली।
सम्पर्कः बिरजू नायक 9818575435
आयोजकः लोक राज संगठन