26 जून, 2022 को लोक राज संगठन ने नई दिल्ली में “राष्ट्रीय आपातकाल 1975-77: आज के लिए सबक” – इस विषय पर एक जनसभा का आयोजन किया। मानव अधिकारों और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए लोक राज संगठन (एल.आर.एस.) के साथ लगातार काम कर रहे कई संगठनों के प्रतिनिधियों ने सभा में भाग लिया और सभा को संबोधित किया। प्रस्तुत विषय पर गंभीर चर्चा हुई, जिसमें समाज के विभिन्न तबकों के लोगों, छात्र-छात्राओं, युवाओं, महिलाओं और कामकाजी लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और अपने विचार व्यक्त किए।

लोक राज संगठन के सचिव प्रकाश राव ने जून 1975 में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा के कारणों और आज के लिए सबक के बारे में विस्तार से बताया। (हम इस रिपोर्ट के साथ उनके भाषण का संपादित संस्करण प्रस्तुत कर रहे हैं)।

बाद, प्रतिभागियों ने बारी-बारी से आगे आकर अपनी बातें रखीं ।

मज़दूर एकता कमेटी के संतोष कुमार ने इस बात पर ध्यान आकर्षित किया कि सरकार अध्यादेशों – यानि अपनी आपातकालीन शक्तियों – का बढ़-चढ़कर प्रयोग करके, लोगों को अब तक प्राप्त अधिकारों से वंचित करने के लिए, नए-नए क़ानूनों को ला रही है। उन्होंने उदाहरण दिया कि कैसे किसान-विरोधी क़ानूनों और मज़दूर-विरोधी श्रम संहिताओं को लाने के लिए कोविड-19 संकट का इस्तेमाल किया गया था। विरोध करने के अधिकार पर सुनियोजित रूप से हमला किया जा रहा है और हर प्रकार के विरोध को अपराध करार दिया जा रहा है। न्याय के लिए लड़ने वाले लोगों को यू.ए.पी.ए. जैसे कठोर क़ानूनों के तहत बंद कर दिया गया है। श्रमिकों के घरों के क्रूर विध्वंस और इसके साथ ही साथ, अधिकांश मेहनतकश लोगों को पीने के पानी, स्वच्छता और सम्मान से रहने की स्थिति से वंचित करने के लिए अधिकारियों की निंदा करते हुए, उन्होंने हमारे अधिकारों की संवैधानिक गारंटी के लिए संघर्ष का आह्वान किया।

विश्वविद्यालय के शिक्षक प्रो. मनभंजन ने हमारे देश में व्याप्त “अघोषित आपातकाल” की स्थिति की बात की, जिसके तहत लोगों के अधिकारों का लगातार उल्लंघन किया जा रहा है और हर तरह के विरोध को अपराध करार दिया जा रहा है। यू.ए.पी.ए., राजद्रोह क़ानून, आदि का असली निशाना युवा, मज़दूर, किसान, आदिवासी, दलित, महिलाएं और वे सभी हैं जो अपने अधिकारों की मांग कर रहे हैं और भेदभाव व उत्पीड़न को ख़त्म करने के लिए लड़ रहे हैं। हमारे लोगों की एकता को तोड़ने के लिए, हमारे शासकों ने बार-बार सांप्रदायिक हिंसा आयोजित किया है। हिन्दोस्तानी राज्य बड़े कारपोरेट घरानों के एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम करता है। उसने लोगों को कुचलने के नए-नए तरीक़े निकाले हैं। प्रो. मनभंजन ने कहा कि हमें एकजुट होने और अपने हाथों में राजनीतिक सत्ता के लिए लड़ने की ज़रूरत है।

पुरोगामी महिला संगठन की सुश्री पूनम ने कहा कि हमारे अधिकारों के लिए हमारे एकजुट संघर्ष को कुचलने के लिए राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंक, यह हमेशा ही शासकों के हाथों में एक पसंदीदा हथियार रहा है। लोगों के सबसे बुनियादी अधिकारों, जैसे स्वच्छ पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा आदि को सुनिश्चित करने में राज्य की विफलता का उल्लेख करते हुए, उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि संविधान हमें अपने अधिकारों की गारंटी नहीं देता है। महिलाओं को हर क़दम पर, काम पर और समाज में शोषण, भेदभाव और हिंसा का सामना करना पड़ता है। जब हम अन्याय के खि़लाफ़ लड़ते हैं, तो राज्य स्वयं महिलाओं को ही अपने हाल के लिए दोषी ठहरता है। इस सच्चाई को बड़े भावुक रूप से व्यक्त करते हए, उन्होंने कहा कि, “महिलाओं के लिए हर दिन आपातकाल की स्थिति जैसी है”।

जमात-ए-इस्लामी हिंद के मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने इस महत्वपूर्ण चर्चा के आयोजन के लिए एल.आर.एस. को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि हमारे लोगों ने एक लोकतांत्रिक और समावेशी समाज के निर्माण के सपने के साथ आज़ादी की लड़ाई लड़ी, लेकिन उस सपने को क्रूरता से धोखा दिया गया। उन्होंने कहा कि न्याय के लिए लड़ने वालों को अपराधी बताने और कुचलने की हमारे शासकों की बढ़ती प्रवृत्ति, उनकी कमज़ोरी और लोगों को मूर्ख बनाने में उनकी नाक़ामयाबी का संकेत है। वे ऐसा करके बच सकते हैं क्योंकि इस प्रणाली में लोगों के पास कोई शक्ति नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर हमारे हाथ में राजनीतिक शक्ति है तो हम अपने चुने हुए प्रतिनिधियों पर नियंत्रण कर सकते हैं और सत्ता में बैठे लोगों को हमारे अधिकारों को छीनने से रोक सकते हैं। उन्होंने लोगों के सशक्तिकरण के लिए एक मजबूत, एकजुट आंदोलन बनाने का आह्वान किया।

युवा कार्यकर्ता लोकेश कुमार और राकेश ने कई उदाहरणों के ज़रिये, बहुत प्रभावशाली रूप से दिखाया कि असली शासक बड़े इजारेदार कॉरपोरेट घराने हैं, जो हर चुनाव में करोड़ों रुपये खर्च करते हैं, उस राजनीतिक पार्टी को सरकार में लाने के लिए, जो सबसे बेहतर तरीके़ से कॉर्पोरेट घरानों का एजेंडा पूरा करेगी और लोगों को सबसे अच्छे तरीके़ से बेवकूफ बनायेगी। हमारे पास अपने उम्मीदवारों का चयन करने, अपने चुने हुए प्रतिनिधियों को जवाबदेह ठहराने या उन्हें वापस बुलाने की शक्ति नहीं है। हमारे पास क़ानून बनाने की शक्ति नहीं है। उन्होंने युवाओं से लोगों के सशक्तिकरण के संघर्ष में आगे आने की अपील करते हुए समझाया कि केवल सरकार बदलने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

निर्मल ने हमारे समाज में उपनिवेशवाद की विरासत की बात की। इस व्यवस्था के अन्दर, राज्य के संस्थानों का काम है लोगों को सत्ता से बाहर रखना, पर साथ ही साथ, यह भ्रम फैलाते रहना कि लोग चुनावों से अपनी हालत को सुधार सकते हैं।

एडवोकेट कसाना ने प्रतिभागियों से यह सवाल किया कि 1977 की तुलना में, जब यह दावा किया गया था कि “लोकतंत्र बहाल किया गया है”, क्या आज हम लोगों के अधिकारों के मामले में बेहतर हैं या बदतर। वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था की विभिन्न खामियों पर प्रकाश डालते हुए, उन्होंने कहा कि लोगों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी सारी शक्ति निर्वाचित प्रतिनिधियों को सौंप दें, परन्तु ये निर्वाचित प्रतिनिधि लोगों के हितों की रक्षा नहीं करते हैं। हमें निर्वाचित प्रतिनिधियों पर लोगों के नियंत्रण का प्रयोग करने के लिए, ज़रूरी तंत्रों की आवश्यकता है। उन्होंने यह दिखाने के लिए कई उदाहरण दिए कि कैसे संविधान सभी शक्तियों को केंद्रीय राज्य के हाथों में संकेंद्रित करता है, जिसकी वजह से केन्द्रीय राज्य विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में लोगों के अधिकारों और आकांक्षाओं को कुचल कर, फ़ैसले लेने में सक्षम होता है। उन्होंने राजनीतिक व्यवस्था और प्रक्रिया में उन बदलावों को लाने के लिए एक शक्तिशाली, एकजुट आंदोलन बनाने का आह्वान किया, जो लोगों के हाथों में सत्ता सुनिश्चित करेगा।

क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के हरीश ने इस बात को सामने लाने के लिए विभिन्न उदाहरण दिए, कि वर्तमान व्यवस्था में, लोग “आपातकाल” की औपचारिक घोषणा के बिना, विरोध करने के अधिकार सहित सब बुनियादी अधिकारों से वंचित हैं। संसदीय लोकतंत्र लोगों को सत्ता से बाहर रखने का एक साधन है, जबकि हमें मूर्ख बनाकर रखा जाता है कि हम चुनावों के ज़रिये अपनी किस्मत बदल सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमें इस मायाजाल से बाहर निकलने की ज़रूरत है, जिसमें हमारे शासकों ने हमें बांध रखा है, और लोगों के सशक्तिकरण के लिए एक आंदोलन खड़ा करना है।

अंत में, प्रकाश राव ने इस महत्वपूर्ण चर्चा में अपने मूल्यवान योगदान देने के लिए प्रतिभागियों को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि हमें शासकों और उनके मीडिया की हमें बांटने की तमाम कोशिशों को बेनकाब करना होगा और लोगों के सशक्तिकरण के एजेंडे के इर्द-गिर्द एकजुट होना होगा।

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