लोक राज संगठन के सर्व हिन्द परिषद के सचिव दल की 12 मई, 2022 को हुयी बैठक में देश की वर्तमान राजनीतिक स्थिति पर चर्चा की गयी थी. उस चर्चा के मुख्यों मुद्दों को हम यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं. सर्व हिन्द परिषद लोक राज संगठन की सभी समितियों और परिषदों से आह्वान करता है कि इस विषय पर चर्चा आयोजित की जाये. 

आज देश भर में लोग, मजदूर व किसान बतौर, महिला बतौर, नौजवान और छात्र बतौर, इंसान बतौर अपने अधिकारों की मांग कर रहे हैं.

देशभर में लोग सरकार के उदारीकरण व निजीकरण के कार्यक्रम का विरोध कर रहे हैं. रेलवे, बिजली, बैंक, बीमा, कोयला, इस्पात, पेट्रोलियम. सड़क परिवहन, बंदरगाह, रक्षा क्षेत्र — इन सभी क्षेत्रों के मज़दूर निजीकरण के खिलाफ बड़े-बड़े विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों के लाखों-लाखों मजदूर एक सांझे झंडे तले संघर्ष में एकजुट हो रहे हैं. निजीकरण के खिलाफ बढ़ते संघर्ष की वजह से, कुछ क्षेत्रों में सरकार को कुछ समय के लिए पीछे हटने को मजबूर होना पड़ा है, जैसे कि बिजली संशोधन अधिनियम के मामले में. अगर यह अधिनियम कानून बन जाता तो निजी कंपनियों को ज्यादा से ज्यादा मुनाफा बनाने के लिए, बिजली के वितरण को पूरी तरह अपने हाथों में ले लेने की खुली छूट दी जाती. इस बिल को दिसंबर 2021 में संसद में पारित करने की घोषणा की गयी थी, परंतु मजदूरों और किसानों के विरोध के कारण सरकार इसे वापस लेने को मजबूर हुयी.

बीते दो वर्षों में रोजी-रोटी की सुरक्षा के लिए किसानों का संघर्ष देश भर में फैल गया है. सरकार ने तीन किसान विरोधी कानूनों को पास किया, जिनका मकसद था कृषि व्यापार पर इजारेदारी पूंजीवादी कंपनियों का वर्चस्व सुनिश्चित करना. इन कानूनों के खिलाफ किसानों के साल भर के संघर्ष की वजह से सरकार इन्हें वापस लेने को मजबूर हुई. देशभर के किसान रोजगार की सुरक्षा की गारंटी की मांग कर रहे हैं. वे मांग कर रहे हैं कि राज्य एक सर्वव्यापक सार्वजनिक खरीदी व्यवस्था स्थापित करे और यह सुनिश्चित करे कि किसानों को सभी कृषि उपज के लिए लाभकारी दाम मिले.

इस अवधि के दौरान, मजदूरों और किसानों तथा व्यापक जनसमुदाय की एकता बहुत बढ़ गई है. किसान संगठनों और मजदूर यूनियनों ने मिलकर, कुछ सांझी मांगो के इर्द-गिर्द, कई सर्व हिन्द हडतालें आयोजित की हैं. इन मांगों में शामिल हैं —  किसानों के लिए रोजी-रोटी की गारंटी देना, चार श्रम कोड को रद्द करना, निजीकरण कार्यक्रम को रोकना, खेत मजदूरों समेत सभी मजदूरों के लिए सामाजिक सुरक्षा देना, तथा अन्य बहुत सारी मांगे. शहरों और गाँवों में, दसों-करोड़ों लोगों ने इन सभी संघर्षों में भाग लिया है.

देश के लाखों-लाखों बेरोजगार नौजवान नौकरी न मिलने पर, बहुत गुस्से में हैं. वे जबरदस्त विरोध प्रदर्शन करके अपना गुस्सा जाहिर कर रहे हैं. कुछ दिन पहले देशभर में नौजवानों ने विरोध करके यह मांग की कि सेना में फिर से भर्ती शुरू की जाए. कुछ महीने पहले रेलवे में भर्ती में अनियमितताओं को लेकर, नौजवानों और अधिकारियों के बीच में घमासान लड़ाई हुयी थी. रेलवे अधिकारियों को यह घोषणा करनी पड़ी थी की भर्ती के लिए फिर से परीक्षा ली जाएगी.

इन सब गतिविधियों से यह साफ हो जाता है कि हमारे देश के लोग अपने अधिकारों की मांग कर रहे हैं. लोग यह मांग कर रहे हैं कि केंद्र और राज्य सरकारें सभी को खुशहाली और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए काम करें. लोग इस बात पर गुस्से में हैं कि केंद्र और राज्य सरकारें  सिर्फ मुट्ठी भर देशी-विदेशी शोषकों के हित के लिए ही काम करती हैं.

सरकार चाहे किसी भी पार्टी के हाथ में हो, पर यह साफ दिखता है कि वह हुक्मरान वर्ग द्वारा निर्धारित, एक ही एजेंडा को लागू करने पर वचनबद्ध है. यह एजेंडा है मुट्ठीभर मालदार पूंजीपतियों के धन को बढ़ाने के लिए मजदूरों के शोषण, किसानों की लूट और देश के प्राकृतिक संसाधनों की लूट-खसोट को और तेज कर देना.

वर्तमान बहुपार्टीवादी, प्रतिनिधित्ववादी  राजनीतिक व्यवस्था में मूलभूत खामियां स्पष्ट होती जा रही है. यह स्पष्ट होता जा रहा है कि संप्रभुता, यानी फैसले लेने की ताकत, लोगों के हाथ में नहीं है.

इसके अलावा, यह भी स्पष्ट  हो रहा है कि इस व्यवस्था की रक्षा करने वाली राजनीतिक पार्टियों की भूमिका है लोगों को सत्ता में आने से रोकना.

यह स्थिति लोगों को मंज़ूर नहीं है. लोग बार-बार यह मांग कर रहे हैं कि इस व्यवस्था की खामियों पर ध्यान दिया जाए और इनमें ऐसी तब्दीलियां लाई जाएं, ताकि राज्य सत्ता लोगों के हाथ में हो.

हुक्मरानों को इस बात की बड़ी चिंता है कि मजदूर और किसान एक वैकल्पिक कार्यक्रम के इर्द-गिर्द अपनी एकता को मजबूत कर रहे हैं. हुक्मरान वर्ग इस एकता को चकनाचूर करना चाहता है. उसने लोगों को बांट कर, इस व्यवस्था को बरकरार रखने के इस काम में अपनी सभी राजनीतिक पार्टियों को लामबंध कर दिया है.

हुक्मरान बड़े सुनियोजित तरीके से लोगों को अलग-अलग पार्टियों के आधार पर बांट देते हैं और यह भ्रम फैलाते हैं कि अगर लोग सरकार में बैठी हुयी पार्टी को बदल कर किसी दूसरी पार्टी को सरकार में बिठा दें, तो सारी समस्याएं हल हो जाएंगी. ऐसी पार्टियां बार-बार धर्म और जाति के आधार पर लोगों के बीच में बंटवारा करती रहती हैं, ताकि लोगों की एकता को तोड़ दिया जाये. इन पार्टियों के ये सारे कारनामे लोगों को अपने अधिकारों के लिए और अपने हाथ में सत्ता लेने के लिए एकजुट होकर संघर्ष करने से रोकते हैं.

इस समय तरह-तरह के मुद्दे उठाए जा रहे हैं, जैसे कि दिल्ली और कई अन्य शहरों में अधिकारियों ने लोगों के आवास और रोजगार के साधनों को उजाड़ने का अभियान चालू कर दिया है. कुछ निजी दल कुतुब मीनार जैसी ऐतिहासिक इमारतों के नाम को बदलने का प्रस्ताव कर रहे हैं. कुछ और दल यह मांग कर रहे हैं कि वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और ताजमहल जैसी इमारतों में जांच की जाए कि वहां हिंदू धर्म के प्राचीन प्रतीक मौजूद हैं या नहीं. कुछ दल यह मांग कर रहे हैं कि मस्जिद में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए, तो कुछ और दल धमकी दे रहे हैं कि मस्जिद के सामने दूसरे धर्म के पाठ पढ़े जाएंगे, इत्यादि. इजारेदार पूंजीपतियों के नियंत्रण में काम करने वाली टीवी मीडिया, सोशल मीडिया और सत्ता पक्ष व विपक्ष, दोनों की सभी पार्टियां लोगों को भड़काने में लगी हुई हैं.

पंजाब और कुछ अन्य जगहों पर फिर से अलगाववाद और सांप्रदायिकता का हव्वा खड़ा किया जा रहा है. पटियाला में मुठभेड़ और तरह-तरह के कांड आयोजित किए जा रहे हैं ताकि लोगों को धर्म के आधार पर बांटा जा सके.

हुक्मरान वर्ग अपनी सभी राजनीतिक पार्टियों का इस्तेमाल करके, लोगों को सांप्रदायिक और धर्म निरपेक्ष, इन दो छावनियों में बांटने की कोशिश कर रहा है.

तोड़फोड़ का वर्तमान अभियान

जिन जगहों पर लोगों ने बीते कई दशकों से अपने घर-बार और दुकान-कारोबार बसा रखे हैं, ऐसी जगहों पर यह तोड़फोड़ का अभियान चलाया जा रहा है. यह जानी-मानी बात है कि राज्य और उसकी एजेंसियों ने ही पहले तो इन झुग्गी बस्तियों को बसाया था. इसमें हुक्मरान वर्ग की सारी राजनीतिक पार्टियों की मिलीभगत रही है. ये झुग्गी बस्तियां पूंजीपतियों के लिए सस्ते श्रम का स्रोत हैं. इसके साथ-साथ, इन झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लोग हमेशा ही अधिकारियों की दया पर जीने को मजबूर हैं. पल भर के नोटिस पर, उनके घरों और उनकी सारी संपत्ति को उजाड़ा जा सकता है.

पूंजीपति वर्ग अपने हितों के अनुसार, यह फैसला करता है कि कब-कब, किस-किस निर्माण को “अवैध” घोषित किया जाएगा. इस अभियान को करने के पीछे हुक्मरानों का असली इरादा है कि उस जमीन को पूंजीवादी रियल स्टेट कंपनियों  के हाथों में सौंप दिया जाए. इस तोड़फोड़ के शिकार हैं मेहनतकश लोग, उनके घर और उनकी संपत्तियां. इस समय जो तोड़फोड़ का अभियान चलाया जा रहा है, उससे साफ दिखता है कि सभी तबकों के मेहनतकश लोगों और अलग-अलग प्रकार की कालोनियों को निशाना बनाया जा रहा है.

इस तोड़फोड़ के अभियान को एक सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है ताकि लोग एकजुट होकर इसका विरोध न करें. इसका मकसद है कि जिन लोगों पर हमला हो रहा है उन्हें अलग-थलग कर दिया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि हमला के शिकार बनाए गए लोगों की हिफाजत में व्यापक जनसमुदाय बढ़-चढ़कर, एक होकर आगे न आए.

इन हमलों का निशाना सभी मेहनतकश लोग और शोषण दमन के खिलाफ उनका एकजुट संघर्ष है.

हुक्मरान वर्ग और उसकी राजनीतिक पार्टियां लोगों के अधिकारों और इंसाफ के लिए संघर्ष को बांटने और सांप्रदायिक खून-खराबे में बहा देने की कोशिश कर रही हैं.

हिन्दोस्तान में संघर्ष एक तरफ, सत्ता पर नियंत्रण करने वाले और समाज का एजेंडा तय करने वाले मुट्ठी भर शोषकों और दूसरी तरफ, राज्य सत्ता से वंचित बहुसंख्यक लोगों, इनके बीच में है.

वर्तमान राज्य और उसका संविधान लोगों के जज़बातों के पूरे होने के रास्ते में एक रुकावट हैं. लोगों के पास कोई साधन नहीं है यह सुनिश्चित करने के लिए, कि उन्हें रोज़गार मिलेगा, खाने को मिलेगा, सुरक्षित आवास मिलेगा, पीने का पानी और शौच-प्रबंध मिलेगा, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा मिलेंगी. वर्तमान राज्य अपने सभी नागरिकों की खुशहाली और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के बजाय, इन्हें विशेष अधिकारों के रूप में, सत्ता में बैठी ताकतों की मर्जी के अनुसार, कभी किसी को देता है तो कभी किसी से छीन लेता है.

वर्तमान राज्य हिन्दोस्तान के लोगों की एकता की हिफाज़त करने का साधन नहीं है. बल्कि इसके विपरीत, यह राज्य सांप्रदायिक बंटवारे का कारक है. संविधान में इस सांप्रदायिक धारणा को जारी रखा गया है कि हिन्दोस्तानी लोग एक “बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय” और अनेक धार्मिक “अल्प संख्यक समुदायों” में बंटे हुए हैं. यह राज्य मजदूरों और किसानों के व्यापक जनसमुदाय पर मुट्ठी भर शोषकों की हुकूमत की हिफ़ाज़त करता है.

हमें एक ऐसी नई व्यवस्था के लिए संघर्ष करने की ज़रूरत है, जिसमें सभी लोगों के मानव अधिकारों और लोकतान्त्रिक अधिकारों की हिफाज़त की जायेगी और व्यापक जनसमुदाय को फैसले लेने का अधिकार प्राप्त होगा. ऐसी नई व्यवस्था की स्थापना करके लोग अर्थव्यवस्था को सब की सुख-सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में संचालित कर सकेंगे.

लोगों के हाथ में सत्ता के लिए संघर्ष को आगे बढ़ाएं!

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