दिल्ली और देश के अन्य इलाकों में 37 बरस पहले सिखों का जो बेरहमी से जन संहार किया गया था, उसके विरोध में लोक राज संगठन ने आज नई दिल्ली के मंडी हाउस पर, कई अन्य संगठनों के साथ मिलकर एक विरोध प्रदर्शन आयोजित किया. मंडी हाउस से संसद तक विरोध मार्च होने वाला था पर पुलिस ने निषेधाज्ञा बताकर उस मार्च को होने नहीं दिया. परंतु लोक राज संगठन और दूसरे कार्यकर्ता डटे रहे तो अंत में जाकर मंडी हाउस पर विरोध प्रदर्शन हुआ.
सभा में मुख्य बैनर पर लिखा था: “फिरकापरस्ती और सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ संघर्ष में एकजुट हो!”, “एक पर हमला सब पर हमला!”.
कार्यक्रम में भाग लेने वालों ने अपने हाथों में बैनर और प्लेकार्ड लेकर रखे थे, जिन पर बहादुरी से यह ऐलान किया गया था कि —  राजकीय आतंकवाद मुर्दाबाद!, राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंकवाद मुर्दाबाद!, 1984 में सिखों के जनसंहार को आयोजित करने वालों को सजा दो!, 1984, 1992, 2002 और अनेक दूसरे जन संहारों को आयोजित करने वालों को सजा दो!, एक पर हमला सब पर हमला!
लोक राज संगठन ने यह कार्यक्रम संयुक्त रूप से आयोजित किया था. अन्य संयोजक संगठन थे – हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी, वेलफेयर पार्टी आफ इंडिया, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आफ इंडिया, द सिख फोरम, यूनाइटेड मुस्लिम्स फ्रंट, सीपीआई (एमएल) न्यू प्रोलेतेरियन, हिन्द नौजवान एकता सभा, लोकपक्ष, सिटीजन फोर डेमोक्रेसी, आल इंडिया मुस्लिम मजलिस ए मुशावरत, देसिय मक्कल सक्ति कच्ची, जमात ए इस्लामी हिन्द, पुरोगामी महिला संगठन, पीयूसीएल (दिल्ली), मजदूर एकता कमेटी, स्टूडेंट्स इस्लामिक ओरगेनाइजेशन आफ इंडिया, पोपुलर फ्रंट आफ इंडिया, एपीसीआर, एनसीएचआरओ और अन्य।
दिल्ली और दूसरे शहरों में 1 नवंबर 1984 से शुरू करके कई दिनों तक लगातार चलने वाले सिखों का जो जनसंहार हुआ था, उसके बाद 37 बरस बीत चुके हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार सिर्फ दिल्ली में ही 3000 से अधिक सिखों का कत्ल किया गया था और देश के अन्य इलाकों में हजारों और लोगों का कत्ल किया गया था. परंतु उस भयानक अपराध के लिए कुछ गिने-चुने लोगों को ही गिरफ्तार किया गया था.  उस पूरे जनसंहार को आयोजित करने वाले राजनीतिक मालिक थे, उनकी अपराधी भूमिका को छुपा कर रखा गया है. उसके बाद कई सरकारें आई और गई परंतु जिन्होंने उस जनसंहार को आयोजित किया था उन्हें सजा नहीं दी गई है. बीते वर्षों में, 1984 के बाद, राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और आतंकवाद हमारे हुक्मरानों का शासन करने का पसंदीदा तरीका बन गया है, चाहे सरकार में कोई भी पार्टी रही हो.
लोक राज संगठन की ओर से बिरजू नायक ने सभा का संचालन किया. उन्होंने इस ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शन में शामिल सभी लोगों का स्वागत किया और भागीदार संगठनों के प्रतिनिधियों को सभा को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया.
भागीदार संगठनों के वक्ताओं ने सांप्रदायिक आधार पर लोगों को बांटने की राजनीति की कड़ी निंदा की. उन्होंने कसम खाई कि लोगों की एकता की डट कर रक्षा करेंगे और राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंक का विरोध करेंगे.
लोक राज संगठन के अध्यक्ष, श्री एस. राघवन ने ऐलान किया कि नवंबर 1984 मंा सिखों का जनसंहार वास्तव में सरकार के उच्चतम स्तरों पर रची गई एक साज़िश थी, जिसका मकसद था अमीर बड़े-बड़े कारपोरेट घरानों के एजेंडे को बढ़ाना और हुक्मरानों के “आर्थिक सुधारों” के एजेंडे के प्रति लोगों के विरोध को कुचल देना. धर्म के आधार पर लोगों की एकता को बांटने और लोगों को एक दुसरे के खिलाफ भिड़ाने की वह एक कोशिश थी. इस प्रकार के तौर-तरीकों को हमारे हुक्मरानों ने अंग्रेजों से सीखा है और आज तक इनका इस्तेमाल करते रहते हैं. हम देख सकते हैं कि किस प्रकार आज किसानों के आंदोलन को बदनाम किया जा रहा है, उन्हें खालिस्तानी और आतंकवादी बताया जा रहा है. लोक राज संगठन दूसरे संगठनों के साथ नजदीकी से काम कर रहा है यह सुनिश्चित करने के लिए कि लोगों की जुझारू एकता को मजबूत किया जाए ताकि हम हुक्मरानों की इन घिनावनी योजनाओं को नाकामयाब कर सकें.
यूनाइटेड मुस्लिम फ्रंट के एडवोकेट शाहिद अली ने कहा कि धर्म के आधार पर लोगों को बांटना हमारे हुक्मरानों के हित में जाता है. 37 वर्ष पहले सिखों का जनसंहार न तो पहला ऐसा जनसंहार था और न ही आखिरी होगा. पिछले साल मुसलमानों पर कोरोना वायरस फैलाने के लिए हमला किया गया था. लोगों की एकता जिसके लिए लोक राज संगठन और यहां मौजूद सारे संगठन काम कर रहे हैं, यह बहुत महत्वपूर्ण है. हमें नाइंसाफी के खिलाफ एकजुट होकर अपनी आवाज उठानी होगी.
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की ओर से सुचारिता ने लोक राज संगठन को लाल सलाम किया, जो हर साल सिखों के जनसंहार की बरसी के दिन पर विरोध प्रदर्शन आयोजित करता है. हर साल इस दिन पर विरोध प्रदर्शन आयोजित करना, देश के लोगों के खिलाफ हमारे हुक्मरानों के अनगिनत अपराधों के लिए उन्हें सज़ा देने के संघर्ष तो तेज़ करने का एक आह्वान है. राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंक हमारे हुक्मरानों का शासन का पसंदीदा तरीका बन गया है. यह इजारेदार पूंजीवादी घरानों का पसंदीदा हथकंडा बन गया है, जो आज हमारे देश का एजेंडा तय कर रहे हैं. यही तौर-तरीके बार-बार अपनाए जाते हैं, जब जब हुक्मरानों की हकूमत को कोई खतरा होता है. हमारा आज का विरोध प्रदर्शन हमारी एकता को मजबूत करने और सांप्रदायिक बंटवारे व राजकीय आतंकवाद की इस राजनीति को खत्म करने के लिए एक आह्वान है.
जमात ए इस्लामी हिंद की ओर से इनाम उर रहमान ने लोक राज संगठन को बधाई दी और लोक राज संगठन और अन्य सभी संगठनों को यह विरोध कार्यक्रम आयोजित करने के लिए बधाई दी. हमें “एक पर हमला सब पर हमला”, इस असूल की हिफाजत करनी चाहिए, उन्होंने कहा.
पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पी.यू.सी.एल.) दिल्ली की ओर से अरुण मांझी ने कहा कि नवंबर 1984 में हुक्मरानों का फासीवादी चरित्र स्पष्ट हो गया,  जिसे लोकतंत्र के परदे के पीछे छिपा कर रखा जाता है. हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए. आजादी के बाद से लेकर आज तक से आज तक, कुछ मुट्ठी भर अमीरों के अलावा किसी और को कोई फायदा नहीं हुआ है. हमें अपने लोकतान्त्रिक अधिकारों को हासिल करने के लिए संघर्ष को जारी रखना होगा.
सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एस.डी.पी.आई.) की ओर से निजामुद्दीन खान ने लोक राज संगठन को हर साल इस दिन पर  प्रदर्शन विरोध प्रदर्शन आयोजित करने के लिए बधाई दी. अगर हुकमरान धर्म और जाति के आधार पर हमारे ऊपर हमला करते हैं और अगर मास मीडिया भी उस हमले में भाग लेते हैं, तो यह पूरे राष्ट्र के लिए बहुत खतरनाक है. लोगों की एकता, इस नफरत और बर्बादी की राजनीति को खत्म करने के लिए बहुत आवश्यक है, ऐसा उन्होंने कहा.
सभा के अंत में सभी भागीदारों ने लोगों की एकता की हिफाजत में और 1984 जैसे जनसंहरों को आयोजित करने वालों की सजा की मांग करते हुए, जुझारू नारे बुलंद किए.

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