19 सितम्बर, 2021 को लोक राज समिति, संगम विहार, ने ‘बेरोज़गारी पर महंगाई की मार’, इस विषय पर एक चर्चा आयोजित की. यह चर्चा ओन लाइन सभा के माध्यम से की गयी. इस सभा में नौजवानों व छात्र-छात्राओं, शिक्षकों और विभिन्न पेशों के मजदूरों व महिलाओं ने बड़े उत्साह के साथ भाग लिया.

एक बहुत ही विस्तृत और आकर्षक पॉवर पॉइंट प्रस्तुति के जरिये, लोक राज समिति के नौजवान कार्यकर्ता, राकेश ने बीते चार महीनों में मौलिक आवश्यकता की चीज़ों की तेज़ी से बढ़ती महंगाई के बारे में सब को याद दिलाया. पेट्रोल और डीजल के आसमान छूते दामों और इसके बारे में सरकार के झूठे दावों का पर्दाफाश करते हुए, उन्होंने समझाया कि पेट्रोल और डीजल पर सरकार द्वारा वसूले गए टैक्स को क्रमश: बढाया जाता रहा है. पेट्रोल-डीजल पर टैक्स को बढ़ाकर मेहनतकशों की जेब काटी जा रही है जब कि केंद्र सरकार के राजस्व में लाखों-करोड़ों रुपये की बढ़ोतरी हो रही है. पेट्रोल-डीजल की कीमतों के बढ़ने की वजह से, लगभग सभी मूलभूत ज़रूरत की चीज़ों की कीमतें भी बहुत बढ़ गयी हैं.

यानि, केंद्र सरकार मेहनतकशों पर टैक्स का बोझ बढ़ा रही है, जो पहले से ही आर्थिक गिरावट और लॉक डाउन की समस्याओं से जूझ रहे हैं. दूसरी ओर, देश के सबसे बड़े पूंजीवादी घराने और भी तेज़ी से अमीर होते जा रहे हैं.

बढ़ती बेरोज़गारी के आंकड़े पेश करते हुए बताया गया कि इस समय, बेरोजगारों की संख्या लगभग 3.6  करोड़ तक पहुँच चुकी है. कविड-19 और लॉक डाउन के कारण नौकरी खोने वाले दिहाड़ी मजदूरों की संख्या कुछ 1 करोड़ 72 लाख अनुमान लगाया गया है. करीब 6 करोड़ युवा नौकरी की तलाश में भटक रहे हैं. भारतीय रेल और तमाम सरकारी व सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में कई सालों से हजारों-हजारों रिक्त पदों पर भर्ती नहीं की गयी है और इनके निजीकरण के चलते, बड़ी संख्या में छंटनी की जा रही है. इससे बरोजगारी और बढ़ रही है. प्रस्तुति में यह याद दिलाया गया कि बेरोज़गारी सिर्फ एक मजदूर की ही समस्या नहीं है बल्कि उसकी रोज़गार पर निर्भर पूरे परिवार की समस्या है.

स्किल इंडिया, ट्रेनी व अपरेंटिसशिप जैसे कार्यक्रम नौजवानों को झूठे वादों से बुद्धू बनाने और पूंजीपतियों के लिए सस्ते श्रम मुहैया कराने के कार्यक्रम हैं, यह स्पष्ट किया गया. कविड महामारी के दौरान बड़ी संख्या में मजदूरों की छंटनी करके और शोषण को कई गुना बढ़ाकर, बड़े-बड़े कॉर्पोरेट घरानों, टाटा, बिरला, अम्बानी, आदि ने खूब मुनाफे बनाये हैं, अपनी अमीरी को खूब बढ़ाया है, जब कि मजदूर-मेहनतकश और गरीब होते जा रहे हैं.

पूंजीपतियों के मुनाफों को लगातार बढाने के लिए, बेरोजगारों की फौज का भी बढ़ते रहना ज़रूरी है, ताकि पूंजीपतियों को कम से कम वेतन पर और किसी भी अधिकार की मांग किये बिना काम करने को मजबूर, सस्ता श्रम हमेशा उपलब्ध हो. यही बढती बेरोज़गारी का मुख्य कारण है, प्रस्तुति में यह साफ़-साफ़ समझाया गया. यानि, कहा जा सकता है कि बेरोज़गारी पूंजीवादी व्यवस्था का हमसफ़र है.

राजनीतिक व्यवस्था और चुनाव प्रक्रिया के बारे में बताते हुए, प्रस्तुति में यह समझाया गया कि सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो, वह बड़े-बड़े इजारेदार कॉर्पोरेट घरानों के पहले से तय किये हुए अजेंडा को ही लागू करती है. ये कॉर्पोरेट घराने लाखों-करोड़ों रुपये खर्च करके चुनाव में उसी पार्टी को जिताते हैं जो सबसे बेहतर तरीके से उनका अजेंडा लागू करेगी और साथ साथ लोगों को बुद्धू बनाएगी.

प्रस्तुति से सभा के भागिदार इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि उत्पादन के सारे साधनों और संसाधनों पर मुट्ठीभर इजारेदार पूंजीवादी घरानों का वर्चस्व है. हर आवश्यक वस्तु की कीमत इन इजारेदार पूंजीवादी घरानों के अधिक से अधिक मुनाफों को सुनिश्चित करने की नज़र से तय की जाती है. इजारेदार पूंजीवादी घरानों की अमीरी को बढाने के लिए मजदूर-मेहनतकशों से वसूली की जाती है. यही बढती महंगाई की असली वजह है. अगर उत्पादन के सारे साधनों और संसाधनों पर जनता का नियंत्रण होता तो सब को रोज़गार और सब की खुशहाली सुनिश्चित करना मुमकिन होता. यही बढती बेरोज़गारी और महंगाई का एकमात्र इलाज है.

प्रस्तुति के बाद, सभा में उपस्थित अनेक लोगों ने अपने विचार रखे. कई नौजवानों ने ट्रेनी बतौर काम करने के अपने दुखद अनुभवों के बारे में बताया. इस बात पर काफी चर्चा हुई कि बड़े-बड़े देशी-विदेशी पूंजीपतियों के मुनाफों को बढाने के लिए ही केंद्र सरकार ने मजदूरों के सभी अधिकारों का हनन करके चार लेबर कोड लागू किया है. कृषि क्षेत्र पर भी इन कॉर्पोरेट घरानों की नज़र है, इसलिए केंद्र सरकार किसान विरोधी कानूनों को रद्द करने की किसानों की मांगों को मानने को तैयार नहीं है.

नौजवानों और सभी मजदूर-मेहनतकशों को इस वर्तमान हालत को बदलने और एक खुशहाल व उज्जवल भविष्य का निर्माण करने के लिए एकजुट होना होगा – इस प्रेरणादायक सन्देश के साथ सभा को समाप्त किया गया.

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