लोक राज संगठन की महाराष्ट्र क्षेत्रीय परिषद का बयान, दिसंबर 2018

नागरिकों !

महाराष्ट्र राज्य सरकार ने कलवा-मुंब्रा क्षेत्रों में बिजली वितरण का निजीकरण करने का निर्णय लिया है। बिजली के अलावा, ठाणे और अन्य कुछ शहरों में जल वितरण का निजीकरण भी विचाराधीन है। हमें एकजुट होकर सरकार को यह योजनाएं लागू करने से रोकना होगा । सार्वजनिक सेवाओं का निजीकरण एक समाज-विरोधी योजना है, क्योंकि इसका प्रभाव हमारे नागरिकों, उपयोगकर्ताओं और मजदूरों सभी के लिए विनाशकारी होगा ।

क्यों ?

आइये, भिवंडी तथा अन्य स्थानों के लोगों के वास्तविक जीवन और उनके अनुभव जानें जहाँ बिजली वितरण का निजीकरण किया गया है :

  • की दरें जानबूझ कर बढ़ाई गईं, जिससे यह सेवा कई उपयोगकर्ताओं की पहुंच से बाहर हो गईं;
  • को बिजली के मीटर बदलने के लिए मनमानी  उच्च लागत देनी पड़ती थी;
  • खपत की तुलना में बिजली के मीटर तेज गति से चलते हैं;
  • लोगों को दसों हज़ारों रुपये के बढ़े चढ़े बिल मिले। कभी-कभी घरेलू उपयोगकर्ताओं को लाखों रुपयों तक का बिल भरना पड़ा! उन्हें पहले बिल का भुगतान करना पड़ता है, अन्यथा उनका कनेक्शन काट दिया जाता है। यदि हुआ भी तो, शिकायत का निवारण भुगतान के पश्चात किया जाता है।
  • कंपनियां स्थानीय नगर पालिका और राज्य सरकार को नियमानुसार दिए जाने वाले  शुल्कों का भुगतान तक नहीं करती हैं और इस प्रकार  सार्वजनिक धन की खुलेआम लूट की जाती है।
  • कंपनियां निपुण नौकरियों पर अकुशल मजदूरों को नियुक्त कर अपना मुनाफा बढ़ाती हैं। यह उपयोगकर्ताओं को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है।
  • के बारे में सबसे भयानक बात यह है कि 150 से अधिक कॉन्ट्रेक्ट मजदूरों की मौत उनके काम के दौरान लगे बिजली के झटके से हुई है, लेकिन अधिकारियों की मिलीभगत से इस पर चुप्पी बाँधी गयी है।

विभिन्न सार्वजनिक सेवाओं का तेजी से निजीकरण किया जा रहा है। यह, हम नागरिकों से, जो इन सेवाओं के प्राप्तकर्ता हैं, उनसे परामर्श किए बिना किया जा रहा है। यह केंद्र और राज्य स्तरों पर सत्ता में आई सभी पार्टियों द्वारा किया गया है।

पानी, बिजली, राशन, परिवहन, बैंकिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार कुछ बुनियादी आवश्यक सेवाएं हैं, जो हम, नागरिकों को सस्ती कीमत पर मिलनी चाहिए। हमारे देश में यह प्राचीन काल से ही राज्य का कर्तव्य रहा है कि वह लोगों की “सुरक्षा” और “सुख” सुनिश्चित करे। इस प्रकार सभी नागरिकों को सस्ती कीमतों पर अच्छी गुणवत्ता की सभी आवश्यक सेवाएं प्रदान करवाना प्रत्येक सरकार का प्राथमिक कर्तव्य है। हम,  इस देश के नागरिक, कभी भी ऐसी सरकार को स्वीकार नहीं कर सकते जो इन सेवाओं का लाभ कमाने के लिए उपयोग करे। फिरभी एक के बाद एक सरकारें सार्वजनिक सेवाओं के निजीकरण की दिशा में अपने अभियान को उचित ठहरा रही हैं तथा यह दावा करती आ रही हैं कि इन सेवाओं को प्रदान करने में घाटा हो रहा है और उन्हें चलाने के लिए आवश्यक धनराषि नहीं बची है । इस बकवास पर कौन विश्वास कर सकता है? जब वही सरकारें बिना पलक झपकाए बड़े औद्योगिक घरानों के लाखों-करोड़ों के अतिदेय ऋण माफ कर सकती हैं तो यह क्यों नहीं ?

हम कैसे विश्वास कर सकते हैं कि निजीकरण से नागरिकों के लिए सेवाओं में बड़े स्तर पर सुधार होगा? यह तो एक बच्चा भी समझ सकता है कि निजी कंपनियां मजदूरों और उपयोगकर्ताओं से फायदा उठा कर अधिकतम मुनाफा कमाने के लिए चलाई जाती हैं |

विभिन्न सेवाओं के निजीकरण के उपरान्त  नागरिकों पर पड़े प्रभावों का हमें पहले से ही अनुभव है :

परिवहन क्षेत्र

  • भाड़ों में बढ़ौतरी;
  • निजी कंपनियों द्वारा महत्वपूर्ण कुशल कार्य करने के लिए अप्रशिक्षित कॉन्ट्रेक्ट मजदूर नियोजित करके सुरक्षा से समझौता किया जाता है;
  • जिन मार्गों पर यात्रियों की संख्या कम होती है वहाँ यातायात को बेजिझक बंद कर दिया जाता है;
  • जब भीड़ कम होती है, उस दौरान सेवाओं में भारी कटौती की जाती है।

शिक्षा

  • इसे इतना महंगा बनाया जाता है कि उच्च शिक्षा अधिकांश नागरिकों की पहुंच से बाहर हो जाती है;
  • मनमाने तरीके से फीस बढ़ाई जाती है;
  • निजी शिक्षा संस्थान अलग-अलग बहानों के तहत बड़े पैमाने पर धन की मांग करते हैं। और तो और इसे चुनौती तक नहीं दी जा सकती ।
  • माता-पिता के द्वारा अर्ज़ की गयी शिकायत का निवारण बद से बदतर हो जाता है। 
  • शिक्षकों और यहां तक कि प्रोफेसरों को कॉन्ट्रेक्ट पर या घंटे के आधार पर नियुक्त किया जाता है। उन्हें बहुत शोषणकारी परिस्थितियों में काम करना पड़ता है और इससे शिक्षण की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है

स्वास्थ्य

  • एक्स-रे, डायलिसिस, रक्त और मूत्र परीक्षण, एमआरआई आदि जैसी विभिन्न चिकित्सा सेवाओं और उपचारों को जो सरकारी अस्पताल पहले प्रदान करते थे, उन्हें कम करना शुरू कर देते हैं;
  • स्वास्थ्य सेवाएं बहुत महंगी हो जाती हैं;
  • अनावश्यक परीक्षण और ऑपरेशनों में वृद्धि होती है|

बैंकिंग क्षेत्र

  • खाताधारकों द्वारा जमा किए गए धन की सुरक्षा के साथ अत्याधिक समझौता किया जाता है क्योंकि जमा राषि पर कोई सरकार समर्थित गारंटी नहीं होती है;
  • ऋण पर ब्याज दरें बढ़ जाती हैं;
  • आवश्यक उद्देश्यों के लिए ऋण लेना बेहद कठिन हो जाता है;
  • पासबुक प्रिंटिंग, चेक बुक, स्वयं के पैसों की निकासी आदि जैसी सरल सेवाओं पर मोटा सेवा शुल्क लगाया जाता है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि इन सभी मामलों में

– निजी रूप से संचालित सेवाओं पर नियंत्रण बेहद मुश्किल है क्योंकि वे साफ़ साफ़ दावा करते हैं कि वे नागरिकों के लिए जवाबदेह नहीं हैं ।

– निजीकरण के बाद, सूचना प्राप्त करने के लिए आरटीआई का उपयोग करना अत्यंत कठिन हो जाता है।

– सेवा क्षेत्र रोजगार के अधिकतम अवसर पैदा करता है। लेकिन सार्वजनिक सेवाओं के निजीकरण से नौकरियों का कौन्त्रकतीकरण होता है, जिसके परिणामस्वरूप अत्याधिक असुरक्षित और शोषणकारी रोजगार बढ़ता है।

निजीकरण को रोका जा सकता है और इसे वापस भी लिया जा सकता है !

उत्तर प्रदेश में कई मेट्रो शहरों में बिजली वितरण के निजीकरण का सफलतापूर्वक विरोध किया गया है| अर्जेंटीना और ब्रिटेन में मजदूरों और उपयोगकर्ताओं ने सफलतापूर्वक रेलवे के निजीकरण को वापस लेने के लिए मजबूर किया है। भारत में विभिन्न क्षेत्रों के मजदूर पहले से ही निजीकरण के खिलाफ लड़ रहे हैं| हाल ही में हरियाणा रोडवेज के मजदूर सरकार द्वारा उस सेवा के निजीकरण के प्रयासों को रोक सके हैं। इससे यात्रियों को भी फायदा हुआ है।

यह हम नागरिकों के हित में है कि हम श्रमिकों के साथ एकजुट होकर यह मांगें करें :

– किसी भी सार्वजनिक सेवा को निजी संस्थानों के हाथों में नहीं सौंपा जाना चाहिए।

– सार्वजनिक सेवाओं की दक्षता में सुधार के लिए नागरिकों और कर्मचारी समितियों को प्रत्यक्ष रूप से शामिल किया जाना चाहिए

– सरकार को कभी भी सार्वजनिक सेवाओं को लाभ कमाने की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए |

कोई भी सरकार, जो कहती है कि वह अपने दम पर सार्वजनिक सेवाएं देने में असमर्थ है, उसे बने रहने का  कोई अधिकार नहीं है!

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