राजस्थान चुनाव के मौके पर लोक राज संगठन का आह्वान, 23 नवंबर, 2018

7 दिसम्बर को राजस्थान विधान सभा के लिए चुनाव आयोजित किये जा रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस पार्टी सहित राजस्थान लोकतांत्रिक मोर्चा, बहुजन समाज पार्टी और कई अन्य पार्टियां चुनाव के मैदान में उतरी हैं। कई चुनाव क्षेत्रों में जन संघर्ष समितियों ने अपनेअपने उम्मीदवार खड़े किए हैं, वे भी इस चुनाव में लड़ रहे हैं।

ये चुनाव ऐसे वक़्त पर आयोजित किये जा रहे हैं जब किसान, फैक्ट्री मज़दूर, सड़क परिवहन मज़दूर, डॉक्टर, शिक्षक, नौजवान, छात्र सभी अपने अधिकारों की मांग को लेकर सड़कों पर उतर रहे हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा और सार्वजनिक सेवाओं के निजीकरण के ख़िलाफ़ जनआक्रोश व्यापक होता जा रहा है। श्रम कानूनों में पूंजीपरस्त बदलावों के ख़िलाफ़ विरोध बढ़ता ही जा रहा है। नौजवान अपने लिए सुरक्षित रोज़गार के अधिकार की मांग कर रहे हैं। शहरों और गांवों में लोग खाद्य सुरक्षा की मांग को लेकर सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं।

किसान मांग कर रहे हैं कि सरकार उनकी रोज़ीरोटी की सुरक्षा की गारंटी दे। बीते 10 वर्षों से किसान स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की मांग कर रहे हैं। केन्द्र और राज्य सरकारों ने इसे लागू करने से इनकार किया है। जब सरकार किसी फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा भी करती है, तो उस फसल की खरीदी का कोई इंतजाम नहीं किया जाता। बैंकों और दूसरे साहूकारों के बढ़ते कर्ज़ों के बोझ के तले पिसकर, ज्यादा से ज्यादा किसान खुदकुशी का रास्ता अपनाने को मजबूर हैं। लोगों में इस बात पर बहुत गुस्सा है कि जो सरकार बड़ेबड़े इजारेदार पूंजीवादी घरानों के लाखोंकरोड़ों रुपयों के कर्ज़ों को माफ़ कर सकती हैं, वह सरकार किसानों के कर्ज़ों को माफ़ करने से इनकार कर रही है।

ज्यादा से ज्यादा लोग यह समझने लगे हैं कि चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में हो, वह मुट्ठीभर अति अमीरों के हित में काम करती है और ये अति अमीर लोग ही देश की आर्थिक दिशा को तय करते हैं। ये मुट्ठीभर अति अमीर लोग ही समाज का कार्यक्रम तय करते हैं और उसी कार्यक्रम को लागू करना सत्ता में बैठी पार्टियों का काम होता है। इसमें लोगों की कोई भूमिका नहीं होती है। सिर्फ चुनाव के समय लोगों को अमीरों की इस या उस पार्टी के लिए अपना वोट डालना होता है। लोग खुद समाज का कार्यक्रम तय करने की मांग कर रहे हैं और वर्तमान व्यवस्था का असली विकल्प चाहते हैं। लोग खुद शासक बनना चाहते हैं, सिर्फ नाम के लिए नहीं बल्कि हक़ीक़त में।

अपने इन संघर्षाें के बीच मेहनतकश लोगों ने अपने एकजुट संघर्ष के हथियार बतौर पक्षनिरपेक्ष आधार पर कई संगठनों का निर्माण किया है। किसान, मज़दूर, व्यापारी संघर्ष समितियों, लोक संघर्ष समितियों, जैसे कई अन्य जनसंगठन पार्टीवादी संकीर्ण होड़ से ऊपर उठकर लोगों के अधिकारों की हिफ़ाज़त में बहादुर संघर्ष चला रहे हैं। विभिन्न पार्टियों में संगठित कम्युनिस्ट एकजुट होकर मज़दूरों और किसानों के संघर्षों को अगुवाई दे रहे हैं।

पांच साल पहले भाजपा ने बेरोज़गार नौजवानों को 15 लाख नौकरियां देने का वादा करते हुए सत्ता पर कब्ज़ा किया था। लेकिन इन पिछले पांच वर्षों में सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र में केवल 1,57,000 नौकरियों का ही ऐलान किया गया और हक़ीक़त में केवल 41,800 नौकरियों के लिए ही भर्ती की गयी। अब जब उनके झूठ की पोल खुल गयी है तो भाजपा के प्रवक्ता अपने इस वायदे से साफ़ मुकर गए हैं और दावा कर रहे हैं कि उन्होंने तो केवल कौशल विकासकी बात की थी! अब ऐसे कौशल विकास का क्या फायदा जो रोज़गार की गारंटी नहीं देता हो?

कांग्रेस पार्टी वादा कर रही है कि अगर वह सत्ता में आती है तो, बेरोज़गार नौजवानों को 3500 रुपये प्रति माह बेरोज़गारी भत्ता देगी। ऐसा करते हुए अब वह खुलकर यह स्वीकार कर रही है कि सभी के लिए सुरक्षित रोज़गार देने का उसका कोई इरादा नहीं है।

भाजपा हो या कांग्रेस पार्टी, किसानों की मांगों को पूरा करने का उनका कोई इरादा नहीं है। किसानों की मांग है कि सरकार उनकी सभी फसलों और कृषि उत्पादों के लिए लाभकारी मूल्य की गारंटी दे, जिसमें दूध, सब्जियां, अनाज, दालें और तिलहन शामिल हों। ये पार्टियां उन बड़ी निजी कंपनियों के हितों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहती हैं जो सालदरसाल कृषि उत्पादों के बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाती ही जा रही हैं। अब तो सरकार ने दूध पाउडर के बाज़ार में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को प्रवेश करने की छूट दे दी है और ये बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां राजस्थान के स्थानीय दूध निर्माताओं को बर्बादी की ओर धकेल रही हैं।

राजस्थान में हर पांच साल में भाजपा और कांग्रेस बारीबारी से एक दूसरे की जगह पर सत्ता में आती रही हैं। इसके बावजूद अर्थव्यवस्था की मज़दूरविरोधी, किसानविरोधी और जनविरोधी दिशा में कोई परिवर्तन नहीं आया है और न ही उनकी फरेबी, बंटवारे और भटकाने वाली राजनीति के चरित्र में कोई बदलाव आया है।

राजस्थान राज्य में सांप्रदायिक हिंसा में बड़ी वृद्धि हुई है। किसी न किसी बहाने से, मुसलमानों और दलितों पर बेरहम हमले किए गए हैं। प्रशासन ने अपराधियों पर कोई कार्यवाही न करके, इन अपराधों को पूरा समर्थन दिया है। बल्कि, पीड़ितों के ख़िलाफ़ मुकदमे चलाए जा रहे हैं। इन तबकों के आप्रवासी मज़दूर अपनी जान के ख़तरे की वजह से राज्य से पलायन कर गए हैं। इस प्रकार के हमलों के ज़रिए शासक सभी लोगों के बीच में ख़ौफ और असुरक्षा का वातावरण फैलाना चाहते हैं। भाजपा और कांग्रेस पार्टी, दोनों खुलेआम और गुप्त रूप से जातिवादी और धार्मिक मतभेदों को भड़का रही हैं। यह सब इसलिए किया जा रहा है ताकि लोग अपने कार्यक्रम के इर्दगिर्द एकजुट न हों और अपने संघर्ष के संगठन न बनाएं।

जब ये पार्टियां सत्ता में होती हैं तब दोनों भाजपा व कांगे्रस पार्टी भूमंडलीकरण, उदारीकरण और निजीकरण का एक ही कार्यक्रम लागू करती हैं। यह कार्यक्रम टाटा, रिलायंस, बिरला जैसे अन्य औद्योगिक घरानों के लिए अधिकतम मुनाफ़ों की गारंटी देने का कार्यक्रम है। सार्वजनिकनिजी भागीदारी (पी.पी.पी.) के नाम पर निजी कंपनियों के मोटे मुनाफ़ों को सुनिश्चित करने के मकसद से शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन और अन्य सार्वजनिक सेवाओं से सार्वजनिक खर्चे में कटौती की गयी है। नोटबंदी और जी.एस.टी. की वजह से कई छोटे व्यापार बर्बाद हो गए हैं। बड़े पैमाने पर रोज़गार का विनाश हुआ है।

लोक राज संगठन राजस्थान के सभी मतदाताओं से आह्वान करता है कि वे दोनों, भाजपा और कांग्रेस पार्टी को ठुकरा दें! इन पार्टियों में से किसी को भी वोट देने का मतलब है चंद मुट्ठीभर अतिअमीर तबके के राज को समर्थन देना। जहां तक मेहनतकश लोगों का सवाल है, ये दोनों ही पार्टियां एक दूसरे से कुछ कम बुरी नहीं हैं और लोगों की बर्बादी के लिए ज़िम्मेदार हैं।

मेहनतकश लोगों की कई पार्टियां और संगठन अपने जांचेपरखे कार्यकर्ताओं को आने वाले चुनाव में खड़ा कर रहे हैं। लेकिन उनके सामने भारी चुनौती है। मौजूदा चुनावी अखाड़े में बड़े पैसे वालों की पार्टियों का ही पलड़ा भारी होता है। टीवी चैनलों पर भाजपा और कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ताओं को ही अधिकतम समय मिलता है। इन दोनों पार्टियों की तूतू मैंमैं”, आपसी दोषारोपण और झूठे वादों के खेल में लोगों के असली मुद्दों पर गंभीरता से चर्चा करना नामुमकिन सा हो गया है।

मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था में चुनाव को इस तरह से आयोजित किया जाता है, जिससे लोगों को अमीर सत्ताधारी वर्ग की किसी एक या दूसरी पार्टीं के पीछे लामबंध कर दिया जाये। औद्योगिक घराने अपनी वफादार पार्टी के चुनावी प्रचार में हजारों करोड़ रुपये खर्च करते हैं। ये पार्टियां लोगों को धर्म और जाति के आधार पर लामबंध करती हैं। ऐसा करते हुए वे अपने ख़ुदगर्ज़ कार्यक्रम की दिशा के ख़िलाफ़ लोगों के एकजुट प्रतिरोध को कमजोर करने के लिए लोगों को एक दूसरे के ख़िलाफ़ लड़वाती हैं।

यह झूठी धारणा फैलाई जाती है कि कौन राज करेगा और समाज को किस तरह से चलाया जाएगा, इसका फैसला लोग करते हैं। हक़ीक़त में सारे अहम सार्वजनिक फैसले एक छोटे से गिरोह द्वारा लिए जाते हैं। लोगों के विशाल जनसमुदाय को फैसले लेने की प्रक्रिया से बाहर रखा जाता है। यदि ऐसा नहीं होता तो फिर यह कैसे संभव हो सकता है कि राजस्थान सरकार ऐसे कानून पारित करे और ऐसी नीतियां लागू करे जिससे मेहनतकश लोगों के हितों को चोट पहुंचती है।

इन सभी समस्याओं की जड़ यह व्यवस्था है जो केवल नाम के लिए ही जनतांत्रिक है। हक़ीक़त में यह व्यवस्था चंद मुट्ठीभर लोगों की हुक्मशाही है, जिसको हिन्दोस्तानी और विदेशी बड़े पूंजीवादी घराने अगुवाई देते हैं। ये पूंजीवादी घराने चुनावों को अपने निजी ख़ुदगर्ज़ हितों के लिये इस्तेमाल करते हैं। जब उनकी एक वफादार पार्टी बदनाम हो जाती है तो ये पूंजीवादी घराने अपनी दूसरी वफादार पार्टी को चुनावों के द्वारा सत्ता में बैठाते हैं, लेकिन अर्थव्यवस्था या राजनीति की दिशा में कोई बदलाव नहीं आता है।

राज करने की मौजूदा व्यवस्था में राजनीतिक पार्टियों का बोलबाला है और यह राजनीतिक प्रक्रिया लोगों को सत्ता से बाहर रखने के मकसद से बनाई गयी है। लोगों को ऐसे उम्मीदवारों में से एक को चुनने के लिए कहा जाता है जिन्हें लोगों की पीठ के पीछे निहित स्वार्थों की पार्टियों द्वारा चयनित किया जाता है। लोगों का इन चुने गए प्रतिनिधियों पर कोई नियंत्रण नहीं होता है। कार्यकारिणी क्या फैसले लेती है और क्या कार्य करती है, इस पर चुनी हुई विधिपालिका का कोई नियंत्रण नहीं होता है।

लोक राज संगठन का यह मानना है कि यदि हमें सभी के लिए सुख और सुरक्षा की गारंटी देनी है तो मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था और चुनावी प्रक्रिया में बुनियादी परिवर्तन की ज़रूरत है। जबकि वर्तमान व्यवस्था में राजनीतिक सत्ता मुट्ठीभर अति अमीरों के शासन का हथकंडा है, तो उसे बदलकर, ऐसा साधन बनाना है, जिसके सहारे लोग खुद अपना शासन कर सकें। जब लोगों के हाथ में राजनीतिक सत्ता होगी तो वे यह सुनिश्चित कर पाएंगे कि सभी को सुख और सुरक्षा मिलेगी, चाहे उनका धर्म, जाति, भाषा या इलाका कोई भी हो। लोग यह सुनिश्चित कर पाएंगे कि मानव अधिकार सबको मिले और कानून से इसकी रक्षा की जाए, हरेक को उत्पीड़न के डर से मुक्त होकर अपने अपनी आस्था पालन करने का अधिकार हो।

हमें लोगों को सत्ता में लाने के लिए राजनीतिक व्यवस्था और चुनावी प्रक्रिया में मौलिक परिवर्तन लाने के लिए संघर्ष करना होगा।

कार्यकारिणी को निर्वाचित विधिपालिका के प्रति और चुने गए प्रतिनिधियों को लोगों के प्रति जवाबदेह होना होगा।

लोगों को खुद अपने उम्मीदवारों का चयन करना होगा और इस काम को परस्परविरोधी पार्टियों के आला कमान के हाथों में नहीं छोड़ा जा सकता, जिनके पीछे बड़े पूंजीपतियों के पैसे की ताक़त है। न केवल राजनीतिक पार्टियां, बल्कि लोगों के तमाम जनसंगठन, जैसे मज़दूरों की यूनियनों, किसान संगठनों, महिला संगठनों और संघर्ष समितियों, इन सभी को अपने उम्मीदवारों का चयन करने का बराबरी का अधिकार होना चाहिए। इस तरह से लोगों द्वारा चयनित सभी उम्मीदवारों को अपने विचार पेश करने के लिए बराबर का समय और मौका दिया जाना चाहिए। इस पूरी प्रक्रिया को राज्य के खजाने से चलाया जाना चाहिए और किसी भी अन्य तरह से चुनाव में पैसा लगाये जाने पर पाबंदी लगायी जानी चाहिए, चाहे वह व्यक्तिगत उम्मीदवार हो या फिर कोई राजनीतिक पार्टी।

लोगों की भूमिका केवल वोट देने के दिन तक सीमित नहीं की जा सकती। मतदाताओं को अपने द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों को जवाबदेह ठहराने और किसी भी वक्त वापस बुलाने का अधिकार होना चाहिए। नए कानून और नीतिगत बदलाव प्रस्तावित करने का उनको अधिकार होना चाहिए और अहम फैसलों पर जनमतसंग्रह द्वारा स्वीकार करने का अधिकार होना चाहिए।

चुनाव क्षेत्र समितियों का गठन किया जाना चाहिए जिनके तहत लोग अपने बीच में से उम्मीदवारों का चयन करने और उनको चुनने के अधिकार को लागू कर सकें और साथ ही चुने गए उम्मीदवारों को वापस बुलाने का और नए कानून का प्रस्ताव पेश करने का अधिकार लागू कर सकें।

इस संदर्भ में राजनीतिक पार्टियों की भूमिका को भी पुनः परिभाषित करने की ज़रूरत है। राजनीतिक पार्टियों का काम है लोगों को सत्ता में बनाये रखना, न कि सत्ता को हड़पना और लोगों के नाम पर अपनी हुकूमत चलाना।

लोक राज संगठन तमाम संघर्ष समितियों से आह्वान करता है कि इस चुनाव का इस्तेमाल लोगों के हाथों में सत्ता देने के अपने कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए करें। वे खुद अपने बीच से ऐसे उम्मीदवारों का चयन करें जिन्होंने लोगों के अधिकारों के संघर्ष में खुद को खरा साबित किया है। संघर्ष समितियां यह मांग करें कि जो लोग चुने जाते हैं वे समयसमय पर लोगों के सामने अपने कार्य का हिसाबकिताब पेश करें।

आओ, हम सब मिलकर पूंजीवादी घरानों की हुक्मशाही को ख़त्म करने और लोगों के हाथों में सत्ता देने के मक़सद से अपनी राजनीतिक एकता बनाएं और मज़बूत करें।

आओ, हम सब मिलकर उन तमाम ताक़तों को पराजित करें जो धर्म, जाति और तमाम अन्य संकीर्ण गुटवादी आधारों पर लोगों के बीच बंटवारा पैदा कर रही हैं और अन्याय पर आधारित मौजूदा व्यवस्था को बरकरार रखने के लिये लोगों को भटकाने की कोशिश कर रही हैं।

आओ, हम सब मिलकर भाजपा और कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवारों को ठुकराएं और हरायें!

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