लोक राज संगठन की सर्व हिन्द परिषद द्वारा पारित, 8 अप्रैल, 2018, नई दिल्ली
15 अगस्त, 1947 की आधी रात को हमारे देश में उपनिवेशवादी बरतानवी सरकार की जगह पर एक हिन्दोस्तानी सरकार बिठाई गयी थी। यह देश के सांप्रदायिक बंटवारे के दौरान हुआ था, जिसमें लगभग 1 करोड़ 40 लाख लोग विस्थापित हुए और 20 लाख लोग मारे गए थे।1 प्रधानमंत्री नेहरू ने ऐलान किया था कि बंटवारे के दौरान हुए भयानक हत्याकांड फिर कभी नहीं होंगे। परन्तु हमारे देश में सांप्रदायिक हिंसा बार-बार होती रही है, उसकी गति और तीव्रता बढ़ती जा रही है। उपनिवेशवादी शासन के पश्चात, हिन्दोस्तान में “बांटो और राज करो”, यही शासकों का पसंदीदा तरीका बना रहा है।
आज़ाद हिन्दोस्तान के नए शासकों ने यह दावा किया था कि हम, हिन्दोस्तानी लोग, अब गुलाम नहीं रहे, कि हम अब अपने समाज के मालिक बन गए हैं। परन्तु हकीक़त यह है कि हमारे अधिकांश लोग आज तक एक दमनकारी व्यवस्था के बेबस गुलाम बने हुए हैं।
“गरीबी हटाओ” और “सबका विकास” जैसे नारे खोखले शब्द बनकर रह गए हैं। बेशुमार दौलत वाले मुट्ठीभर तबके और बहुसंख्यक जनसमुदाय के बीच की खाई साल दर साल और चैड़ी होती जा रही है। जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव और दमन बद से बदतर होता जा रहा है। महिलाओं पर हिंसा बढ़ गयी है। नौजवान, बेरोज़गारी और अन्धकारमय भविष्य का सामना करते हुए, अपराधीकरण और नशीले पदार्थों के शिकार बन रहे हैं। जवाहरलाल नेहरू से लेकर नरेन्द्र मोदी तक, सत्ता पर बैठे लोगों के वादे बार-बार झूठे साबित हुए हैं।
सत्ता में चाहे कोई भी पार्टी हो, केंद्र सरकार ने हमेशा धर्म, जाति, राष्ट्रीयता और भाषा के आधार पर लोगों को बांटने की कोशिश की है। उसने नदियों के पानी, राज्यों की सीमाओं, धन के आबंटन और दूसरे मुद्दों पर पड़ोसी राज्यों के बीच झगड़े भड़काए हैं। जनता की एकता को हमेशा ख़तरे में डाला जा रहा है।
राजकीय आतंकवाद और राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हत्याकांड यह हमारे देश में शासन का पसंदीदा तरीका बन गया है। राज्य ने खुद को तरह-तरह के फासीवादी कानूनों से लैस कर रखा है, जिनके ज़रिये दसों-हजारों बेकसूर लोगों को सालों-सालों तक उत्पीड़ित किया जाता है और जेलों में बंद कर दिया जाता है। कश्मीर, असम, मणिपुर व अन्य जगहों में लोगों को सेना की संगीनों के साये में जीने को मजबूर किया जाता है।
यह कैसी व्यवस्था है जिसमें लोगों को अपने धर्म, वेशभूषा, भोजन, संस्कृति या राजनीतिक विचारों के आधार पर निशाना बनाया जाता है या उनका कत्ल किया जाता है? यह कैसा समाज है जिसमें महिलाएं निडर होकर सड़कों पर नहीं चल सकती हैं, जिसमें कदम-कदम पर उनके साथ भेदभाव किया जाता है तथा उन्हें बेइज्ज़त किया जाता है? क्या यह सच नहीं है कि कोई भी मां-बाप तब तक चैन की सांस नहीं ले सकता है जब तक उनके बेटे-बेटियां सुरक्षित घर वापस नहीं आतीं?
यह कैसे संभव हो सकता है कि सेना, जिसका काम है सभी हिन्दोस्तानियों की रक्षा करना, सरकार के आदेश पर स्वर्ण मंदिर जैसे धर्मस्थल पर हमला करती है? केन्द्र और राज्य में सरकारें चलाने वाली पार्टियां कैसे खुलेआम, बाबरी मस्जिद का विध्वंस करवा सकती हैं? हम यह कैसे मान सकते हैं कि जिन्होंने 1984 में सिखों के जनसंहार को आयोजित किया था, जिन्होंने 1992 में बाबरी मस्जिद का विध्वंस करवाया था, जिन्होंने 1993 में मुसलमानों और हिन्दुओं का कत्लेआम आयोजित किया था तथा 2002 में गुजरात का जनसंहार आयोजित किया था, वे आज भी खुलेआम घूम रहे हैं, यहां तक कि ऊंचे से ऊंचे सरकारी पदों पर भी पहुंच चुके हैं?
यह कैसा लोकतंत्र है जिसमें मुट्ठीभर, विशेष अधिकार वाले लोगों के हाथों में राजनीतिक सत्ता संकेन्द्रित है और वे इस राजनीतिक सत्ता का इस्तेमाल करके देश को लूटकर, लोगों को बांटकर उन पर राज करते हैं? हमें अपने बुनियादी अधिकारों से वंचित किया जाता है परंतु इसे रोकने के लिए हमारे पास कोई ताक़त नहीं है।
राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण, बढ़ते राजकीय आतंकवाद और राजनीतिक प्रक्रिया से लोगों को बाहर रखा जाना – इन सबका मुकाबला करने के लिए, लोगों को सत्ता में लाने का एक ज़ोरदार आन्दोलन शुरू हुआ। उस आन्दोलन में से प्रेपरेटरी कमेटी फोर पीपल्स एम्पावरमेंट का जन्म हुआ, जिसे आगे चलकर, लोक राज संगठन के रूप में फिर से संगठित किया गया।
प्रेपरेटरी कमेटी फोर पीपल्स एम्पावरमेंट (सी.पी.ई.) की स्थापना अप्रैल 1993 में, बाबरी मस्जिद के विध्वंस और उसके बाद आयोजित सांप्रदायिक हिंसा के खि़लाफ़, जनसमुदाय के आक्रोश के वातावरण में हुई थी। सांप्रदायिक और फासीवादी आतंक के खि़लाफ़ संघर्ष को अगुवाई देने वाली, जागरुक ज़मीर वाली महिलाओं और पुरुषों ने मिलकर उसकी स्थापना की थी। उनमें मानव अधिकार कार्यकर्ता, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता, महिला आंदोलन के कार्यकर्ता, सेवानिवृत्त न्यायाधीश और सरकारी अफसर, शिक्षक, वकील, मज़दूर, महिलाएं, नौजवान और किसान शामिल थे।
आगे के वर्षों में, सी.पी.ई. ने कई महत्वपूर्ण गोष्ठियां आयोजित कीं, जिनमें समाज के सभी तबकों के चिंतित नागरिकों ने भाग लिया। सांप्रदायिक हिंसा के खि़लाफ़ और मानव अधिकारों व जनवादी अधिकारों की हिफाज़त में संघर्ष के अनुभवों की इन गोष्ठियों में समीक्षा की गयी। इन चर्चाओं से यह निष्कर्ष निकला कि लोकतंत्र की वर्तमान व्यवस्था और उसकी राजनीतिक प्रक्रिया में बुनियादी नुक़्स हैं।
प्रतिनिधित्ववादी लोकतंत्र की वर्तमान राजनीतिक प्रक्रिया में, कुछ-कुछ सालों बाद निहित स्वार्थों की प्रतिस्पर्धी पार्टियों द्वारा चयनित एक या दूसरे उम्मीदवार के लिए वोट देने तक ही जनता की भूमिका सीमित होती है। चुनावों के नतीजे धनबल, बाहुबल और मीडिया बल से निर्धारित होते हैं। वोट डाल देने के बाद, लोगों की कोई भूमिका नहीं होती है। सत्ताधारी पार्टी अभिजात अमीरों द्वारा निर्धारित कार्यक्रम को ही लागू करती है।
वर्तमान व्यवस्था का विश्लेषण करके यह निष्कर्ष निकला कि हिन्दोस्तान का संविधान एक बहुत ही छोटे गुट के हाथों में संप्रभुता को सीमित रखता है। वह गुट है संसद के अन्दर मंत्रिमंडल, जिसकी सलाह का पालन करने को राष्ट्रपति बाध्य है।
इन नुक़्सों को दूर करने के लिए, ऐसे परिवर्तन लाने आवश्यक हैं, ताकि फैसले लेने की प्रक्रिया में जनता की मुख्य भूमिका हो। संविधान को संप्रभुता जनता के हाथों में देनी चाहिए। लोगों को चुनाव से पहले उम्मीदवारों का चयन करने का अधिकार होना चाहिए। लोगों को चुने गए प्रतिनिधि को किसी भी समय वापस बुलाने और कानून प्रस्तावित करने का अधिकार होना चाहिये। राजनीतिक पार्टियों की भूमिका की नयी परिभाषा देनी पड़ेगी। राजनीतिक पार्टियों का काम होगा लोगों को सत्ता में कायम रखना, न कि लोगों का नाम लेकर सत्ता हड़प लेना और खुद शासन करना।
लोगों को सत्ता में लाने के कार्यक्रम पर विस्तृत सलाह-मशवरा और चर्चा करने के बाद, जनवरी 1999 में सी.पी.ई. को लोक राज संगठन बतौर पुनर्गठित किया गया। लोक राज संगठन एक राजनीतिक संगठन है। लोगों को सत्ता में लाने के लक्ष्य से सहमत सभी लोग इसके सदस्य बन सकते हैं। 2001 में लोक राज संगठन ने “लोगों को प्रभुसत्ता प्रदान करना ही उन्नति का एकमात्र मार्ग है” इस शीर्षक वाले कार्यक्रम को अपनाया।2
अपनी स्थापना के समय से ही, लोक राज संगठन ने सांप्रदायिकता, सांप्रदायिक हिंसा और सभी प्रकार के राजकीय आतंकवाद के खि़लाफ़, सभी के अधिकारों की हिफाज़त के लिए राजनीतिक एकता बनाने के उद्देश्य से काम किया है। उसने समाज के किसी भी तबके पर सांप्रदायिक हिंसा आयोजित करने वाले गुनहगारों को सज़ा देने की मांग को लगातार उठाया है। छोटे-मोटे भेदभाव और पार्टीवादी दुश्मनियों से ऊपर उठकर, उसने स्थानीय इलाकों में पक्ष-निरपेक्ष आधार पर जन-समितियां गठित करने के लिए लगातार काम किया है। लोगों के मानव अधिकारों और जनवादी अधिकारों को हासिल करने के लिए एकजुट संघर्ष करने के दौरान, लोक राज संगठन ने इन समितियों को बनाया और मजबूत किया है।
लोक राज संगठन का निम्नलिखित कार्यक्रम उसकी स्थापना के समय से लेकर आज तक, संगठन को बनाने के पूरे अनुभव पर आधारित है।
कार्यक्रम
लोक राज संगठन जनता की सभी समस्याओं पर चर्चा तथा जन आन्दोलन आयोजित करता है। इनमें शामिल हैं:
- सभी मानव अधिकारों व जनवादी अधिकारों की संवैधानिक गारंटी की मांग करना
- हर इंसान के ज़मीर के अधिकार की हिफाज़त करना, यानी अपनी विचारधारा, जीवन शैली और धार्मिक आस्था का, हमले या बदले के डर के बिना, पालन करने के अधिकार की हिफाज़त करना
- महिलाओं के साथ भेदभाव और महिलाओं के दमन के खि़लाफ़ आन्दोलन चलाना और मांग करना कि उन्हें महिला बतौर और मानव बतौर अधिकार मिलने चाहियें
- जाति, धर्म, राष्ट्रीयता या किसी अन्य आधार पर भेदभाव व दमन का विरोध करना
- यह मांग करना कि राज्य किसानों और सभी मेहनतकश लोगों की रोज़ी-रोटी की सुरक्षा और खुशहाली सुनिश्चित करे
- जनता और पूरे समाज को लूटकर, मुट्ठीभर बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों की अमीरी को बढ़ाने वाली नीतियों का विरोध करना
- जनता की दौलत की लूट और सार्वजनिक संसाधनों के निजी कंपनियों को बेचे जाने के कदमों का विरोध करना
- यह मांग करना कि राज्य सबको पौष्टिक आहार, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, आवास, स्वच्छ पेय जल, शौच प्रबंध तथा आधुनिक, सम्मानजनक मानव जीवन की सभी अन्य मूल ज़रूरतों को मुहैया कराने की अपनी जिम्मेदारी निभाये
- राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं की प्रतिक्रिया में राज्य द्वारा बल प्रयोग का विरोध करना
- देश के अंदर सभी राष्ट्रों, राष्ट्रीयताओं और लोगों के अधिकारों की हिफाज़त करना
- ”एक पर हमला, सब पर हमला“, इस असूल के अनुसार, जनता के किसी भी तबके पर किसी भी प्रकार के अत्याचार का विरोध करना
- धर्म, जाति या किसी अन्य सामुदायिक आधार पर हमें बांटने की कोशिशों का विरोध करते हुए, जनता की एकता की हिफाज़त करना
- राजनीति के अपराधीकरण और सांप्रदायिकीकरण को ख़त्म करने के लिए अभियान चलाना
- सांप्रदायिक हिंसा और जनसंहार आयोजित करने वाले गुनहगारों की सज़ा की मांग करना
- पार्टी प्रधान प्रतिनिधित्ववादी लोकतंत्र की व्यवस्था की कमियों का खुलासा करना
- एक ऐसी आधुनिक राजनीतिक व्यवस्था और प्रक्रिया विकसित करना, जिसमें लोग संप्रभु होंगे; यानी जिसमें चुनाव से पहले उम्मीदवारों का चयन करने में राजनीतिक पार्टियों की नहीं बल्कि जनता की निर्णायक भूमिका होगी, जिसमें लोगों को अपने चुने गए प्रतिनिधियों को जवाबदेह ठहराने का अधिकार होगा, किसी भी समय अयोग्य प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार होगा और कानून प्रस्तावित करने का अधिकार होगा
- एक आधुनिक आर्थिक व्यवस्था को विकसित करना, जिसका लक्ष्य होगा सभी के लिए सुरक्षित रोज़ी-रोटी और खुशहाली सुनिश्चित करना
- अमरीका के साथ हिन्दोस्तान के सैनिक गठबंधन का विरोध करना, और
- दक्षिण एशिया में विदेशी सैनिक दखलंदाज़ी का विरोध करना, सभी पड़ोसी देशों के साथ शांतिपूर्ण और मित्रतापूर्ण संबंध के लिये अभियान चलाना।
इन मांगों के इर्द-गिर्द लोगों की एकता बनाने के लिए, लोक राज संगठन चुनावों में भाग लेने समेत, तरह-तरह के मंचों और कार्यक्रमों का इस्तेमाल करता है।
हिन्दोस्तानी समाज को इस संकट से बाहर निकालना है, जिसमें वह आज फंसा हुआ है। हिन्दोस्तान की जनता ही लोक राज की स्थापना करके, इस ऐतिहासिक काम को पूरा कर सकती है। आइये, इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए, अपनी-अपनी विचारधाराओं और पार्टी-संबंधों से ऊपर उठकर, जनता की राजनीतिक एकता बनाएं! हम, हिन्दोस्तान की जनता, देश के भविष्य को अपने हाथों में लेने के लिए संगठित हों! लोक राज संगठन को बनाएं और मजबूत करें!
लोक राज संगठन के सदस्य बनें
हिन्दोस्तान के लोगों का अन्याय के खि़लाफ़ संघर्ष करने का लंबा इतिहास है। हमने हमेशा ही इस असूल को माना है कि जनता की रक्षा करना और उसकी खुशहाली को सुनिश्चित करना राज्य का फ़र्ज़ है। परंतु जब राज्य, जनता और उसके अधिकारों की रक्षा करने के बजाय, उन पर हमला करता है, तो हमें क्या करना चाहिए? यह अन्याय की हद है और हम इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते। जनता का यह अधिकार और फ़र्ज़ बनता है कि हम एकजुट हो जायें और इस हालत को बदलने के लिये ज़रूरी कदम लें। इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है लोक राज संगठन का सदस्य बनना।
सभी हिन्दोस्तानी नागरिक और हिन्दोस्तानी मूल के व्यक्ति, लोक राज संगठन के सदस्य बन सकते हैं। जो भी लोगों को सत्ता में लाने के काम में भाग लेना चाहता है, वह इसका सदस्य बन सकता है। सदस्यता शुल्क प्रति वर्ष 10 रुपये है। लोक राज संगठन के सभी कार्यक्रमों के लिये पैसा सदस्यों के योगदानों और लोगों को सत्ता में लाने के उद्देश्य का समर्थन करने वालों के योगदानों से आता है।
लोक राज संगठन का सर्व हिन्द अधिवेशन, जिसे वर्ष में एक बार आयोजित किया जाता है, वह संगठन का सर्वोच्च फैसले लेने वाला निकाय है। सर्व हिन्द अधिवेशन में संगठन की सभी मुख्य नीतियों और कार्यक्रमों पर चर्चा होती है तथा फैसले लिए जाते हैं और उन फैसलों को लागू करने के लिए एक सर्व हिन्द परिषद का चुनाव किया जाता है। अलग-अलग इलाकों में चुनी गई इलाका परिषदें वहां के काम को अगुवाई देती हैं। लोक राज संगठन के सदस्य जहां भी रहते हैं या काम करते हैं, वहां लोगों को अपने अधिकारों और जायज़ मांगों के लिए एकजुट और संगठित करने का काम करते हैं।
संदर्भ
- “द पार्टिशन आॅफ इंडिया (न्यू अप्रोचेस टू एशियन हिस्टरी)”, इअन टैलबोट और गुरहरपाल सिंह, केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, 23 जुलाई, 2009
- “लोगों को प्रभुसत्ता प्रदान करना ही उन्नति का एकमात्र मार्ग है”, लोक राज संगठन का 2001 में अपनाया गया कार्यक्रम।