लोक राज संगठन का बयान, 3 दिसम्बर 2017

बाबरी मस्जिद के विध्वंस की 25वीं बरसी, जो 6 दिसम्बर को पड़ती है, उस दिन अनेक शहरों में लोग गुनहगारों को सज़ा दिलाने और न्याय की मांग को लेकर बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरेंगे।

25 साल पहले इसी दिन, अनेक राजनेताओं के नेतृत्व में, लोगों के झुंड ने स्मारक पर हमला करके इसको ढहा दिया था। इसकी सफाई में कहा गया था कि पांच शताब्दी पहले मुगल साम्राट बाबर द्वारा उसी स्थान पर तथाकथित एक राम मंदिर को तोड़ने के लिये यह हिन्दुओं का बदला है।

बाबरी मस्जिद का विध्वंस यह एक गुस्साई भीड़ का काम नहीं था जैसा कि सत्ताधारी बताते हैं। यह एक पहले से नियोजित काम था जिसके लिये उत्तर प्रदेश में भाजपा नीत सरकार और केन्द्र में कांग्रेस पार्टी नीत सरकार, दोनों, मिलकर जिम्मेदार थीं। बाबरी मस्जिद के विध्वंस के तुरंत बाद मुंबई, सूरत व अन्य स्थानों में बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिक हिंसा की गयी। इसमें हजारों निर्दोष लोग मारे गये। श्रीकृष्णा आयोग, जिसे मुंबई की हिंसा की जांच करने के लिये बनाया गया था, उसने बताया कि साम्प्रदायिक कत्ल आयोजित करने में भाजपा, शिव सेना और कांग्रेस पार्टी के हाथ थे। लीबरहान आयोग, जिसे बाबरी मस्जिद के विध्वंस की जांच के लिये गठित किया गया था, उसने अपनी रिपोर्ट 17 साल के बाद दी और दोषियों में भाजपा और कांग्रेस पार्टी, दोनों पार्टियों के नेताओं के नाम को शामिल किया। बाबरी मस्जिद के विध्वंस के 25 साल बाद भी लोगों को न्याय नहीं मिला है। किसी भी सरकार ने उनको सज़ा देने का कोई कदम नहीं उठाया है जो एक एतिहासिक राष्ट्रीय स्मारक के विनाश और हजारों को मौत के घाट उतारने वाली साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने के लिये जिम्मेदार थे।
जहां बाबरी मस्जिद खड़ी थी उस जमीन की   मालिकी का फैसला सुनाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय 5 दिसम्बर को अगली सुनवाई करेगा। सबसे ऊंची अदालत न्याय और गुनहगारों को सज़ा के प्रश्न को नहीं उठायेगी। एक राष्ट्रीय स्मारक के विनाश और हजारों की मौत को नजरअंदाज करके इस मुद्दे को एक जमीन के विवाद के रूप में कैसे उठाया जा सकता है? गुनहगारों को सज़ा दिये बिना न्याय हो ही नहीं सकता!

बाबरी मस्जिद के विध्वंस ने इस तथ्य का पर्दाफाश कर दिया कि राजनीति का साम्प्रदायिकीकरण और गुनहगारीकरण एक नये शिखर तक पहुंच चुका था। इसने इस कंपकंपा देने वाला सत्य उजागर किया कि सत्ताधारी पार्टी और प्रमुख विपक्षी पार्टियां वोट बटोरने और उन्हें चंदा देने वाले बड़े कार्पोरेट घरानों के हितों को पूरा करने के लिये कोई भी जानलेवा अपराध करके बच निकल सकती हैं। इसने दिखाया कि प्रतिनिधित्व का लोकतंत्र लोगों द्वारा, लोगों का और लोगों के लिये नहीं है। इसके विपरीत, मौजूदा राजनीतिक प्रक्रिया में लोग पूरी तरह से सत्ताहीन हैं। निर्वाचित प्रतिनिधि लोगों के प्रति जवाबदेह नहीं हैं बल्कि अपनी पार्टी के प्रति जवाबदेह हैं जिसने उन्हें चुनाव लड़ने का टिकट दिया होता है। अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों को या सरकारी अफसरों को सज़ा दिलाने के लिये लोगों के पास कोई तंत्र नहीं हैं चाहे उन्होंने लोगों के खिलाफ सबसे भयंकर अपराध ही क्यों न किये हों।

बाबरी मस्जिद के विध्वंस ने इस सच्चाई का पर्दाफाश किया कि लोग सत्ताहीन हैं। हिन्दोस्तानी संविधान के कथन के विपरीत, संप्रभुता लोगों के हाथों में नहीं है। असली सत्ता राजनीतिक कार्यकारिणी के हाथों में है, यानेकि मंत्रीमंडल के हाथों में। इस कार्यकारिणी के पास कार्पोरेट घरानों के हितों में नीतियां लागू करने के और जन-विरोधी कानून पास करने के अपार अधिकार होते हैं। लोक सभा में निर्वाचित सदस्यों की बहुसंख्या का समर्थन पाने वाली पार्टी या गठबंधन द्वारा इसका गठन होता है। यह कार्यकारिणी संसद की सहमती के बिना ही  फैसले ले सकती है, जिससे संसद सिर्फ बातें करने की दुकान ही रह जाती है।

न्यायतंत्र जो कार्यकारिणी और विधायकी के बीच विवादों को सुलझाने के लिये बताई जाती है, उसका चुनाव नहीं होता है। इसका चयन कार्यकारिणी करती है। अदालतें कार्यकारिणी की इच्छा के अनुसार चलती हैं।

दिसम्बर 1992 की विनाशक घटनाओं ने आंखों से पट्टी हटाने का काम किया। यह हिन्दोस्तानी राजनीति में एक आमूल परिवर्तन काल था। अप्रैल 1993 में इसने तरह-तरह के जमीर वाले महिलाओं व पुरुषों को लोगों को सत्ता में लाने के लिये प्रारंभिक समिति में एक साथ लाया। इस समिति ने 1999 में लोक राज संगठन के गठन के हालात तैयार किये जो एक राजनीतिक जन संगठन है, जिसका उद्देश्य लोगों को संप्रभु बनाना है।

लोक राज संगठन न्याय के लिये संघर्ष को जारी रखने, लोगों को सत्तासंपन्न करने तथा साम्प्रदायिक हिंसा व लोगों के अधिकारों के हर प्रकार के हनन को खत्म करने के लिये वचनबद्ध है।

मौजूदा राजनीतिक प्रक्रिया को ऊपर से नीचे तक बदलने की जरूरत है। इसे लोक-केंद्रित बनाना होगा। वर्तमान में शासकों की राजनीतिक पार्टियां लोगों को सत्ता से बाहर रखने का काम करती हैं जिससे लोग देश को चलाने के फैसले लेने में एक निर्णायक भूमिका अदा करने से वंचित हैं। इस परिस्थिति का अंत करना होगा। लोगों व उनके प्रतिनिधियों के बीच का सम्बंध तथा राजनीतिक पार्टियों की भूमिका में परिवर्तन लाने होंगे।

चुनावों में उम्मीदवारों का चयन लोगों के द्वारा होना चाहिये, न कि कार्पोरेट धनबल समर्थित पार्टियों द्वारा। लोगों के सभी जन संगठन उम्मीदवारों को नामांकित करने के लिये सक्षम होने चाहिये। नामांकित किये सभी उम्मीदवारों को उनके मतदान क्षेत्र में मतदाताओं के द्वारा एक चयन की प्रक्रिया से गुजरना चाहिये। लोगों को अपनी पूरी ताकत अपने प्रतिनिधि को नहीं सौंपना चाहिये। लोगों को अपने उन प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार होना चाहिये जो उनके हित में काम नहीं करते हैं। लोगों के पास कानून बनाने में पहलकदमी करने का अधिकार होना चाहिये।

पिछले 25 सालों में, विभिन्न राजनीतिक पार्टियों, मानव व नागरी अधिकार संगठनों व कार्यकर्ताओं, मज़दूरों व महिला संगठनों, वकीलों, न्यायाधीशों, शिक्षकों, सेवानिवृत्त अधिकारियों तथा अन्य प्रगतिशील व्यक्तियों के साथ राजनीतिक एकता बनाने की हमारी कोशिशों को काफी सफलता मिली है।

इन सालों में बहुत से संगठन व कार्यकर्ता राजनीतिक प्रक्रिया में लोगों की सत्ताहीनता को अंत करने की मांग लेकर बार-बार एक साथ आये हैं। लोक राज संगठन ने लोगों के भिन्न-भिन्न तबकों की एकता को ”एक पर हमला, सब पर हमला!“ के सिद्धांत के आधार पर मज़बूत किया है। हमने अपराधियों को कठोर सज़ा देने तथा यू.ए.पी.ए. व एफ्स्पा जैसे काले कानूनों को रद्द करने की मांगें उठाई हैं। हमने सत्तारूढ़ व प्रमुख विपक्षी पार्टियों द्वारा साम्प्रदायिक हिंसा आयोजित करने व लोगों को बांटने वाली राजनीति का पर्दाफाश किया है और दिखाया है कि यह कार्पोरेट घरानों की निजीकरण व उदारीकरण की नीतियों को थोपने का पसंदीदा तरीका है, जिनका उद्देश्य बाकि समाज को लूट कर अपने मुनाफों को अधिकतम बनाना है।

लोक राज संगठन का दृढ़ विश्वास है कि अपने लोग साम्प्रदायिक नहीं हैं। यह राज्य ही है जो साम्प्रदायिक है। जिन लोगों को राज्य धार्मिक पहचान के आधार पर निशाना बनाता है, उन्हें अपने सम्प्रदाय की रक्षा में एकजुट होने का अधिकार है। साम्प्रदायिक हिंसा के पीड़ितों की धर्म के आधार पर एक साथ आने के लिये निंदा नहीं की जा सकती है।

बाबरी मस्जिद के विध्वंस की 25वीं बरसी के अवसर पर जमीर वाले सभी महिलाओं व पुरुषों को न्याय की मांग के समर्थन में एकजुट होना चाहिये। जब सर्वोच्च न्यायालय अपराधियों को सज़ा देने के बजाय ढहाए गये स्मारक की जमीन की मालिकी के विवाद पर ”अंतिम सुनवाई“ करना चाहता है तब हमें चुप नहीं रहना चाहिये।

चलों हम अपने-अपने शहरों में हजारों और लाखों की संख्या में सड़कों पर आकर, 6 दिसम्बर की रैलियों को सफल बनाएं। चलो हम सत्तारूढ़ संस्थानों द्वारा धर्म के आधार पर अपनी एकता को तोड़ने की कोशिशों को नाकामयाब करें! चलो हम हिन्दू-मुस्लिम विवादों की आग भड़काने की हर कोशिश को नाकामयाब करें!

चलो हम एकजुट होकर लोगों को संप्रभुता सौंपने और साम्प्रदायिक हिंसा व सभी तरह के राजकीय आतंकवाद का अंत करने के संघर्ष को आगे बढ़ाएं! चलो हम प्रत्येक व्यक्ति के जमीर के जन्म सिद्ध अधिकार का समर्थन करें और उसकी रक्षा करें! अपनी एकता ही हिन्दोस्तान को विनाश से बचा सकती है!

गुनहगारों का सज़ा दें!
एक पर हमला, सब पर हमला है!
साम्प्रदायिक हिंसा का एक ही इलाज – लोक राज! लोक राज!

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