1984 में राज्य द्वारा आयोजित सिखों के कत्लेआम की 33वीं बरसी के अवसर पर कई नागरिकों और संगठनों ने मिलकर सुप्रीम कोर्ट के सामने एक संयुक्त प्रदर्शन रैली आयोजित की. इस रैली का आयोजन लोक राज संगठन, जमात-इ-इस्लामी हिंद, पोपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया, हिन्दोस्तान की कम्यूनिस्ट ग़दर पार्टी, सिख फोरम, यूनाइटेड मुस्लिम फ्रंट, सी.पी.आई. (एम्.एल) न्यू प्रोलेतारियन, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया), सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया, एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ सिविल राइट्स, एस.ए.एच.आर.दी.सी., मजदूर एकता कमिटी, वेल्फर पार्टी ऑफ़ इंडिया,सिटीजन फॉर डेमोक्रेसी, आल इंडिया मजलिस-ए-मुशावरत (दिल्ली राज्य), पुरोगामी महिला संगठन, साइंटिफिक सोशलिज्म जरनल, हिन्द नौजवान एकता सभा, एन.सी.एच.आर.ओ., स्टूडेंट इस्लामिक आर्गेनाईजेशन, और कई अन्य संगठनों ने संयुक्त रूप से किया. सभी संगठनों के वक्ताओं ने रैली को संबोधित किया.
लोक राज संगठन के अध्यक्ष एस राघवन ने हिन्दोस्तानी राज्य पर सवाल उठाते हुए कहा कि, हम इस राज्य को जनतांत्रिक कैसे कह सकते है, जब यह राज्य इंसाफ के संघर्ष कर रहे रहे लोगों को रैली निकालने से रोकता है. इस अवसर पर इतने सारे संगठनों का एक साथ आना यह साफ़ दिखता है कि 1984 की इस कत्लेआम को ना तो हम भूल सकते है और ना ही हम गुनाहगारों को माफ़ कर सकते है. 1984 के कत्लेआम में हिन्दोस्तानी राज्य की भूमिका की निंदा करते उन्होंने कहा कि यह राज्य इस घटना के लिए पुरे सिख समुदाय को “सांप्रदायिक” करार देते हुए दोषी ठहरता आया है, जबकि असलियत यह है कि इस कत्लेआम के शिकार लोगों और उनके परिवार वालो की हिफाजत में सभी लोग एकजुट खड़े थे. उन्होंने कहा कि 1857 से आज तक हमारे देश के हुक्मरान “फुट डालो और राज करो” की निति चलाते आये है. 1984 में सिख लोगों का कत्लेआम, 1992-93 में बाबरी मस्जिद को गिराया जाना, 2002 में गुजरात में मुसलमानों पर हमले, इसका जीता जागता उदहारण है. उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि यह सब एक सोची समझी योजना के तहत किये गए हमले है, और लोगों ने आयन हमलों में राज्य की भूमिका की छानबीन की मांग करनी चाहिये, और किसी एक या दुसरे व्यक्ति पर दोष लगाने के झांसे में नहीं आना चाहिए. हिन्दोस्तान में राज्य सत्ता पर टाटा, बिरला और अंबानी जैस कॉर्पोरेट घरानों का नियंत्रण है, और सत्ताधारी पार्टी केवल इन कॉर्पोरेट घरानों के हितों में नीतियाँ बनाते है और उनको अमल में लाते हुए सरकार चलाती है. इस तरह के कत्लेआम इन कॉर्पोरेट घरानों की सत्ता को बरकरार रखने और उसको मजबूत बनाने के लिए आयोजित किये जाते है. इस सब के लिए राज्य की मशीनरी जिम्मेदार है, फिर सरकार चाहे कांग्रेस की हो या भाजपा की, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि इन सब की मिलीभगत के बीना बीना इतने बड़े पैमाने पर हमले आयोजित करना संभव नहीं है.
उन्होंने लोगों से आवाहन किया कि 1984 में हुए सिखों के कत्लेआम के गुनाह्गारों को सजा दिलाने की मांग उठाये. लोगों को एक ऐसे समाज के निर्माण के लिये भी संगठित होना होगा जहाँ सभी के अधिकारों की हिफाजत होगी, जहां ना तो गरीबी होगी और ना ही बेरोजगारी, और सत्ता असली मायने में लोगों के हाथों में होगी. मौजूदा व्यवस्था में सत्ता लोगों क हाथों में नहीं है. हमें लोगों क हाथों में सत्ता के लिए संघर्ष करना होगा ताकि, धर्म और जाती के नाम पर फासीवादी हिंसा से हमारे संघर्ष को कही कुचल न दिया जाए. हमें एकजुट होकर समाज के नवनिर्माण के लिए संघर्ष करना होगा, इस काम को और मजबूत बनाने के लिए देश के कोने-कोने में लोक राज समितियों का गठन करना होगा.
सिख फोरम के महासचिव प्रताप सिंह, ने बताया कि 1984 में दिल्ली में पुरे तीन दिन तक कत्लेंआम चलता रहा. इससे यह साबित होता है कि यह कत्लेआम “राज्य द्वारा आयोजित” किया गया था. इसके अलावा कानपूर, बंगाल, बोकारो, और हरियाणा में भी लोग मारे गए. अधिकारिक आंकड़े बताते है कि हजारों लोग मारे गए, लेकिन असलियत में 1984 में तीन लाख से भी अधिक लोग पुरे देश भर में मार डाले गए. ये इस राज्य की “बांटों और राज करो” निति का एक जीता जागता उदहारण है, और इस निति का अंत करना होगा.
कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के वक्ता कामरेड प्रकाश राव ने लोगों से जनतंत्र के अर्थ पर विचार करने का आवाहन किया. जनतंत्र का मतलब है लोगों का राज. लेकिन जब लोग इंसाफ के लिए संघर्ष करते है, तो उनकी आवाज को तुरंत दबा दिया जाता है. लेकिन यह संभव नहीं की हुक्मरान हमेशा लोगों की आवाज़ को दबाने में कामयाब रहे. 1984 में आज ही के दिन दिल्ली की सडकों पर खून बह रहा था और आग जल रही थी, जबकि राजनितिक पार्टियों के नेता यह बर्बादी का नज़ारा अपने घरों में बैठकर देख रहे थे, और दावा कर रहे थे की वो कुछ भी नहीं कर सकते. यहाँ तक की पुलिस भी मौन खडी रही और उसने कोई भी कार्यवाही नहीं की. लेकिन उस वक़्त भी कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी अन्य संगठनों के साथ मिलकर लोगों के साथ खडी थी, जैस की आज खडी है, और हिन्दोस्तान के लोगों के खिलाफ इस तरह की हिंसा का अंत करने के लिए काम कर रही है. हमारे देश में 150 कॉर्पोरेट घरानों की सत्ता है, जो लूट और डाके से, लोगों को बाँटते हुए, उनके खिलाफ हिंसा आयोजित करते हुए, कांग्रेस और भाजपा जैसी मुख्यधारा की राजनितिक पार्टियों की सहायता से अपना राज चलाते है. यह कॉर्पोरेट घराने अपने मुनाफों के लिए राज कर रहे है. चुनाव में वोट देने के अधिकार के अलावा लोगों के पास और कोई अधिकार नहीं है. उन्होंने लोगों से एक झंडे के तले लामबंद होकर सत्ता को अपने हाथों में लेने के लिए संघर्ष करने का आवाहन किया.
आजकल मीडिया चैनलों के जरिये दिन-रात इस्लाम धर्म के खिलाफ लोगों को भड़काया जा रहा है. 1984 में इन्ही मीडिया चैनलों ने ऐसा प्रचार किया कि सिखों ने पानी में जहर मिला दिया दिया है और इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद सिख लड्डू बाँट रहे है. इस मीडिया को भी राज्य यह नियंत्रित करता है, और यह सारा प्रचार बड़े ही सुनियोजित तरीके से चलाया जाता है. यह राज्य जो कि एक सांप्रदायिक और फासीवादी राज्य है, जो लोगों की एकता को तोड़ने के लिए उनके खिलाफ बार-बार सांप्रदायिक हिंसा आयोजित करता है, ऐसे राज्य की हम निंदा करते है. इंकलाब जिंदाबाद !
एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ डेमोक्रेटिक राइट्स के मुश्फिक खान ने बताया कि 1984 के कत्लेआम के ३३ वर्ष बाद भी लोगों को इंसाफ नहीं मिला है, जबकि कत्लेआम के गुनाहगार खुले सडकों पर घूम रहे है. एक एसआईटी का भी गठन किया गया, लेकिन उसने भी कुछ नहीं किया और लोग आज भी इंसाफ से वंचित है. कत्लेआम के शिकार लोगों को कोई भी मुआवजा नहीं दिया गया है, और कई लोग आज भी बेघर है. हमें एक आवाज में इंसाफ में लिए आवाज़ उठानी होगी.
जमात-इ-इस्लामी हिन्द के महासचिव सलीम इंजिनियर ने इस बात से अपनी सहमति जताई कि कत्लेआम के शिकार लोगों को आज भी इंसाफ नहीं मिला है और गुनाहगारों को सजा नहीं दी गयी है. उन्होंने कहा कि आज हम सभी यहाँ इंसाफ के लिए इकठ्ठा हुए है. हमारे देश को जब आज़ादी मिली, तो उसे दो टुकड़ों में बाँट दिया गया, और उसके एक ही साल के भीतर गांधीजी की हत्या की गयी. देश में नफरत फ़ैलाने के लिए देश को धर्म और जाती के आधार पर बांटा गया. सभी पार्टियों ने बांटो और राज करो की निति को अपनाई और कोई भी पार्टी ऐसी नहीं जिसने लोगों के खिलाफ हिंसा का इस्तेमाल ना किया हो. मुसलमानों के खिलाफ रोज हमले आयोजित किये जाते है, कंधामल ओरिसा में लोगों को जिंदा जला दिया गया, आदिवासियों पर हमले किये जा रहे है. ऐसे बड़े पैमाने पर हिंसा इसलिए संभव है क्योंकि इसमें हिन्दोस्तानी राज्य शामिल है.
सिटीजन फॉर डेमोक्रेसी के डॉ. एन डी पंचोली ने कहा कि इतिहास को याद किया जाना ज़रूरी है, और उसकी हकीकत पेश की जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि यदि 1984 के गुनहगारों को सजा दी जाती तो बाबरी मस्जिद का विनाश नहीं होता और 2002 में गुजरात में मुसलमानों का जनसंहार नहीं होता. 1984 में 1 से 4 नवम्बर के बीच चार दिन तक कत्लेआम चलता रहा और पुलिस के एक भी केस दर्ज नहीं की. सभी सरकारें अपना राज बचाने के लिए पुलिस का इस्तेमाल करती है. हमें इसके खिलाफ आवाज़ उठानी होगी.
यूनाइटेड मुस्लिम फ्रंट के अधिवक्ता शाहिद ने कहा कि इस तरह के संयुक्त कार्यक्रम लोगों की एकता बनाते है. हमारे देश में धर्म और जाती के नाम पर बड़े पैमाने पर राज्य द्वारा कत्लेआम आयोजित किया जाता है. 1992 में उत्तर प्रदेश सरकार ने कोर्ट में हलफनामा दिया कि बाबरी मस्जिद को गिराया नहीं जायेगा. लेकिन इतिहास ने दिखा दिया कि इस वादे का उल्लंघन किया गया, बाबरी मस्जिद का खुलेआम विनाश किया गया और मुसलमानों को कत्ल किया गया. श्रीकृष्ण आयोग की रिपोर्ट भी मुसलमानों को इंसाफ नहीं दिला पाई. इसके अलावा 2002, 2008, 2013 में राज्य द्वारा दलितों, सिखों, और अल्पसंख्यक पर हमले कराये गए, ताकि उनका दमनकारी राज बरकरार रहे.
सी.पी.आई. (एम्.एल) न्यू प्रोलेतारियन के शिवमंगल सिद्धांतकार के कहा कि 1984 में आयोजित किये गए सिखों के कत्लेआम को कभी भी जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है. स्वर्ण मंदिर पर सेना द्वारा फासीवादी हमला किया गया और हजारों बेगुनाह लोगों का खून बहाया गया. इस सबके लिए यह राज्य जिम्मेदार है.
सभा के अंत में सभी ने इंसाफ की हिफाजत में जोरदार नारे लगाये.