लोक राज संगठन की राजस्थान परिषद् पिछले कई वर्षों से राजस्थान के शिक्षकों, किसानों, और सरकारी कर्मचारियों के कई संगठनों के साथ हनुमानगढ़ जिले और आसपास के इलाकों में कार्य करती आई है। इस सामूहिक कार्य का नतीजा यह हुआ है कि सरकार की जन-विरोधी नीतियों के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा बनाने का कार्य काफी आगे बढ़ा है। शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ शिक्षकों का आंदोलन, कृषि की उत्पादों के लिए लाभकारी मूल्य और सिंचाई के पानी के लिए किसानों का आंदोलन, और सरकारी कर्मचारियों का आंदोलन मजबूत हुआ है और उसे गति मिली है। इन संगठनों के सदस्यों का हौसला बहुत बढ़ गया है। सभी संगठनों की संघर्ष में एकता को मजबूत करने और अगले कदमों की योजना बनाने के लिए लोक राज संगठन की राजस्थान परिषद् ने एक जन सभा का सफल आयोजन किया।
गुरूजी हनुमान प्रसाद शर्मा सभा को संबोधित करते हुए।
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इस सभा का आयोजन 21 मई को किया गया था। सभा का शीर्षक था “1857 महान गदर की 160 वीं वर्षगांठ, और 1917 की महान अक्टूबर क्रांति की 100 वीं वर्षगाँठ- पूंजीवादी हिन्दोस्तानी राज्य में लोगों को सत्ता में लाने की चुनौतिया”। इस सभा का आयोजन हनुमानगढ़ में डॉ. राम मनोहर लोहिया अपर मिडिल स्कूल में किया गया था।
सभा का अध्यक्ष मंडल में शामिल थे, लोक राज संगठन के अध्यक्ष श्री राघवन, लोक राज संगठन के उपाध्यक्ष टीचर्स यूनियन की ओर से गुरूजी हनुमान प्रसाद शर्मा, मजदूर यूनियन के लीडर अमर सिंह सरन, भूतपूर्व जिला अधिकारी जयदेव जोशी, लोक राज संगठन के सक्रिय सदस्य हरिलाल ढाका, लोक राज संगठन के राजस्थान परिषद् के सचिव दुनीचंद, डॉक्टर सुमन चावला, और दिल्ली लोक राज संगठन से निर्मला। सभा में कई न्यायाधीश, वकील, डॉक्टर, शिक्षक, पत्रकार, प्रोफेसर, महिला, नौजवान और किसानों ने हिस्सा लिया।
श्री दुनीचंद ने सभा की शुरुआत करते हुए कहा कि 1857 का गद़र और रषिया की अक्टूबर क्रांति दोनों की जुल्म और अन्याय के खिलाफ़ एक लड़ाई थी। उन्होंने बताया कि किस तरह से लोक राज संगठन का जन्म 6 दिसम्बर 1992 में गहरे आर्थिक संकट के दौरान बाबरी मस्जिद के गिराए जाने वाली हालातों में हुआ था। आज हिन्दोस्तान में 150 ऐसे इजारेदार घराने है जो हमारे लोगों का शोषण कर रहे हैं, इन इजारेदार घरानों की अगुवाई टाटा, बिरला, अंबानी इत्यादि कर रहे हैं। उन्होंने इस बात पर जोरे देते हुए कहा कि राजस्थान के लोग बहादुर होने के साथ- साथ देश की हालातों के जानकार भी है और हम सबको मिलकर लोगों और नौजवानों के बीच इस बात का प्रचार करना होगा की किस तरह से लोगों के हाथों में सत्ता, उनके हाथों के संप्रभुता देने की जरूरत है।
कर्मचारी संघ के भगवती प्रसाद के कहा कि जैसे-जैसे लोगों की समझ बढ़ेगी वो भी संघर्ष में जुड़ते चले जायेंग। हम चाहते है कि हमारा देश सही मायने में आजाद हो और न की चंद मुट्ठीभर हुक्मरानों के हाथों की कठपुतली बना रहे। हमारे देश के लोग और महिलाएं सुरक्षित नहीं है, और दौलतमंद हुक्मरानों के हाथों में गुलाम है। जब महंगाई बढाती है तब मजदूरों उसका मुआवाजा मिलना चाहिए। लेकिन ऐसा कभी नहीं होता है। हनुमानगढ़ में दो मिले थी, जो अब बंद हो गयी है, ऐसे हालत में इस इलाके के किसान किस तरह से अपना गुजारा कर पायेंगे।
हरिलाल ढाका ने कहा कि लोगों को इस बात को समझना होगा कि हमें संगठित होने की जरूरत है। उन्होंने लोगों को सत्ता अपने हाथों में लेने के लिए आव्हान किया। उन्होंने कहा की हमारे आंदोलन के भीतर ही कुछ गद्दार है जो हमारे रास्ते में रुकावटें खड़ी करते हैं।
अमर सिंह सारण ने कहा कि हमारे ऊपर इसलिए हमले हो रहे हैं, क्योंकि हम सब बिखरे हुए है, बंटें हुए हैं। यदि हम एकजुट नहीं हो पाते तो फिर कोई उम्मीद नहीं है।
हेतराम धानिया के कहा कि लोक राज संगठन एक राजनीतिक संगठन है जिसका मकसद लोगों को सत्ता में लाना है। उसने सभी लोगों और चुने हुए प्रतिनिधियों को एक मंच पर लाना होगा। हमारे देश के पूंजीपति हमें बाँटते हैं।
हरियाणा के किसान नेता राजेंद्र जाडू ने कहा कि वो कई बार नेताओं के पास गए थे, लेकिन उनकी कोई भी मांग पूरी नहीं हुई है। इस व्यवस्था में मजदूरों को सही वेतन नहीं मिलता है। मजदूरों को अपना अधिकार चाहिए, जबकि पूंजीपति बुलेट ट्रेन, और हवाई जहाज में उड़ना चाहते है। ऐसी चर्चाओं में और अधिक नौजवानों को शामिल करना चाहिए।
डॉ सुमन चावला ने यह सवाल उठाया कि क्या वाकई में लोग सरकार बनाते है? हमारे देश के किसान दिन-रात मेहनत करते हैं, लेकिन उनको भूखा सोना पड़ता है। उनको अपनी फसल के लिए लाभकारी दाम नहीं मिलता है। हमारे परिवार इस चिंता में रहते हैं कि क्या हमारी महिला सुरक्षित घर लौट पायेगी। हर व्यक्ति को शिक्षा का अधिकार है। हमारे देश में दो हिन्दोस्तान हैं – एक हिन्दोस्तान है एक्सप्रेस वे और बड़े-बड़े बंगलो का, औए एक हिन्दोस्तान है जहां लोगो को रोटी तक नसीब नहीं हैं। उन्होंने बताया की एक मिल जिसकी कीमत 500 करोड़ है उसे सरकार 40-50 करोड़ में बेच रही है।
लोक राज संगठन के अध्यक्ष श्री राघवन ने कहा की जो काम राजस्थान में किया जा रहा है, उसका पूरे देश पर असर हुआ है। राजस्थान के किसानों के संघर्ष ने तमिलनाडू के किसानों को प्रेरित किया है। राजस्थान के शिक्षकों और सरकारी कर्मचारियों के संघर्ष ने दिल्ली और महाराष्ट्र के शिक्षकों और सरकारी कर्मचारियों को प्रेरित किया है। उन्होंने बताया कि कांग्रेस पार्टी ने वही कानून और नीतियां अपनाई जो अंग्रेजों ने 1857 के ग़दर को कुचलने की लिए अपनाई थी। हमारे संविधान का 80 प्रतिषत हिस्सा अंग्रेजों के 1935 गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट से लिया गया है। यहाँ तक कि संविधान सभा की चर्चा अंग्रेजी में चलायी गयी। कांग्रेस पार्टी में भले ही हिन्दोस्तानी चेहरे बैठे हैं, मगर उनकी आत्मा अंग्रेजी है। यह हिन्दोस्तानी दौलतमंद घराने और व्यापारी थे। संविधान सभा में (1946-1950) तक चार साल चर्चा करने के बाद उसने एक ऐसी व्यवस्था को अपनाया जो पूरी तरह से बस्तिवादी थी। हमारे देश में 5000 साल से भी लंबे इतिहास में जो कुछ भी अच्छा था, उसे इस संविधान सभा ने ठुकरा दिया। इस संविधान सभा की चर्चा में कम्युनिस्टों को नहीं बुलाया गया था।
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उत्तर प्रदेश में हाल ही में हुए चुनाव इस बात का उदाहरण है कि किस तरह से हिन्दोस्तानी राज्य चुनाव में धांधली करता है। उत्तर प्रदेश के लोग अपने हालातों से बेहद परेशान थे और भा.ज.पा. को सत्ता से बाहर रखना चाहते थे, लेकिन इसके बावजूद भा.ज.पा. को बहुमत हासिल हुआ। यह कैसे संभव हुआ, लोगों ने ई.वी.एम. की जांच की मांग करनी चाहिए। अमरेश मिश्रा की 1857 में लिखी किताब का हवाला देते हुए श्री राघवन ने बताया कि 1857 में 1 करोड़ से अधिक हिन्दोस्तानियों को मौत के घात उतारा गया था। नौजवान की बढ़ी भूमिका है, और उन्हे हमारे संविधान पर सवाल उठाने चाहिए। राजनीतिक पार्टियों का काम है लोगां को जागरूक करना और उन्हें सत्ता खुद अपने हाथों में लेने ले लिए तैयार करना, और न कि सत्ता को राजनितिक पार्टियों के हाथों में देने के लिए। 1857 का ग़दर सही मायने में लोगों द्वारा अपने हाथों में सत्ता लेने का एक उदहारण है, क्योंकि हथियारबंद लोगो ने खुद अपना नेता चुना था उसके लिए अपने जान की कुर्बानी दी थी। हिन्दोस्तानी गदर पार्टी और भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु भी इसी रास्ते पर चले, और देश के लिए कुर्बानी दी। हमारे देश का भविष्य नौजवानों के हाथों में है और हमें उनको जागरूक करना जरूरी है ताकि वह हमारे लोगों के लिए एक उज्जवल भविष्य का निर्माण कर सकें।
सभा का समापन करते हुए लोक राज संगठन के उपाध्यक्ष गुरूजी हनुमान प्रसाद शर्मा ने कहा कि 1857 का ग़दर लोगों की क्रांति थी। इसमें कई देशभक्त जमीनदारों और जागीरदारों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। नाना फंडवीस(स्वयं एक जागीरदार) थे ने क्रांति के संदेष को फैलाया। बर्तानवी सेना के सिपाहियों ने इसमें मुख्य भूमिका अदा की और उसे नेतृत्व दिया। हिन्दोस्तान के विद्रोही लोगों ने बहादुर शाह जफर को अपना नेता चुना, क्योंकि वह एक सच्चे नेता का प्रतीक था। उनको इस बात का एहसास था कि नेतृत्व देना एक बड़ी जिम्मेदारी थी। 1917 की रूस में क्रांति एक और उदहारण है, लोगों द्वारा सत्ता को अपने कब्जे़ में करने का। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु आज़ादी के सच्चे सिपाही थे और अंग्रेजों ने उनपर गलत इल्ज़ाम लगाये। नौजवानों को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। हमको अपने इतिहास को और भी आलोचनात्मक नजरिये से देखना होगा। आज की व्यवस्था लोकतंत्र नहीं, बल्कि पूंजीतंत्र है : मतलब दौलतमंद लोगों के लिए लोकतंत्र। यदि हम आज भी नहीं जागे तो हम इन पूंजीपतियों की तिजोरी भरने वाले सांप बन जाएंगे। आज की व्यवस्था में पार्टियों को बढ़ावा दिया जाता है ताकि लोग सत्ता में न आ पाए। अक्तूबर क्रांति में रूस के लोगों ने सत्ता अपने हाथों में ली थी। हम युवाओं को दोष नहीं दे सकते, हमें उन्हें जागरूक करना होगा, और एक दिन यही युवा (वायु) बन जायेंगे और एक ऐसी ताकत बन जायेंगे की सभी जुल्म अन्याय को खत्म कर देंगे। हमारे देश के पूंजीपतियों के बीच गहरा टकराव है, लेकिन जरूरत पड़ने पर यह एक हो जाते हैं। दुनिया भर में सबसे बड़ा जंगफरोश देश अमरीका है जिसने लोगों के खिलाफ सबसे बड़े गुनाह किये है। इराक, अफगानिस्तान, सीरिया, इरान, उत्तरी कोरिया, इत्यादि कई देशों पर उसने आक्रमण किया। हम सबको एकजुट होकर लोगों के हाथों में सत्ता का संदेश चारो ओर फैलाना चाहिए।
इस जन सभा का सफल आयोजन सभी संगठनों के सदस्यों के लिए प्रोत्साहन की बात है। जिन्होंने बड़ी बहादुरी के साथ सभी लोगों के अधिकारों के लिए संघर्ष चलाया है। जन सभा में फौरी कार्यों पर चर्चा तो हुई ही, लेकिन साथ ही देशभर के लोगों के हाथों में सत्ता लेने के नजरिये पर भी चर्चा की गयी। लोक राज संगठन को मजबूत करने और लोक राज समितियों के द्वारा लोगों की एकता बनाने के रास्ते में यह एक महत्वपूर्ण कदम था।