23 अप्रैल को हुए दिल्ली नगर निगम चुनाव के अभियानों में एक चुनाव अभियान जो दूसरों से अलग दिखा, वह था दक्षिण दिल्ली के हरकेश नगर वार्ड में जनता के उम्मीदवार और लोक राज संगठन के कार्यकर्ता, शिवाजी का अभियान।
युवा कार्यकर्ता, शिवाजी इसी निर्वाचन क्षेत्र के अन्दर, संजय कालोनी का निवासी है। बीते कई वर्षों से वह इस इलाके के लोगों के, नागरिक सुविधाओं और मौलिक अधिकारों के लिए संघर्षों में सक्रिय रहा है। वह सांस्कृतिक कलाकार भी है और लोगों को राजनीतिक व सामाजिक विषयों के बारे में जागरुक करने के लिए उसने नाटक और नृत्य के माध्यमों का इस्तेमाल करने में सक्रिय भूमिका निभायी है। वह इस समय लोक राज समिति, संजय कालोनी का अध्यक्ष है।
शिवाजी का चुनाव अभियान लगभग तीन हफ्तों तक लगातार चला। लोक राज समिति के कार्यकर्ताओं व समर्थकों, 20-25 नौजवानों और इलाके के वरिष्ट निवासियों के दल, पूरे जोश और अनुशासन के साथ, हर रोज सुबह से इस निर्वाचन क्षेत्र की अनेक झुग्गी-बस्तियों की गलियों में घर-घर जाते हुए दिखाई देते थे। उम्मीदवार और उसके चुनाव चिन्ह “सीटी” के चित्र वाले बैनरों के साथ चलते हुए, उन्होंने अपने जोश भरे नारों और गीतों से चारों ओर उत्साह फैला दिया। कई नौजवानों ने स्कूलों-कालेजों व नौकरियों से समय निकालकर इस चुनाव अभियान में भाग लिया। अक्सर यह चुनाव अभियान दोपहर की कड़ाके की धूप में और शाम व देर रात तक चलता रहा। बीच-बीच में, उनमें से कुछ गायक, खास कर इस अभियान के लिए तैयार किया गया भोजपुरी गीत गाने लग जाते थे। लोकप्रिय धुन “कहब तो लाग जाई धक से, बोलब तो लाग जाई धक से” पर बनाया गया यह गीत एक ओर सत्ता में बैठे धनवानों और दूसरी ओर मज़दूरों व किसानों की हालतों में ज़मीन-आसमान के अन्तर को बड़े रोचक तरीके से आगे लाता है। अपने अधिकारों के संघर्ष में सभी मेहनतकशों की एकता के नारे बुलंद किये जाते थे। इस गीत और नारों से थके हुए कार्यकर्ता भी, फिर से जोश में आ जाते थे। चाय के अवकाशों के दौरान तथा पूरे दिन के काम के अंत में, कार्यकर्ता अपने-अपने अनुभवों की समीक्षा करते थे और अगले दिन के अभियान की योजना बनाते थे।
चुनावों के समाप्त हो जाने के बाद, लोक राज समिति संजय कालोनी के कार्यालय में, अभियान में भाग लेने वाले सभी कार्यकर्ताओं की एक बैठक आयोजित की गयी। उस बैठक में कामरेडों ने बताया कि किस-किस तरह से यह चुनाव अभियान दूसरों से अलग था।
सबसे पहली खासियत यह थी कि हमारे उम्मीदवार को कालोनी के निवासियों ने, अपने ही बीच में से चयनित किया था। लगभग सभी दूसरे अभियानों में उम्मीदवार जिस राजनीतिक पार्टी का प्रतिनिधि था, उस पार्टी के हाई कमान से उसे टिकट मिला था। मान्यता प्राप्त पार्टियों से टिकट पाने के लिए कई उम्मीदवारों को ढेर सारा पैसा खर्च करना पड़ा था और वे बहुत चिंतित थे कि अगर नहीं जीते तो सारा पैसे खोएंगे।
दूसरी खासियत उम्मीदवार द्वारा दिया गया शपथ पत्र था, जिसकी प्रतियां पूरे निर्वाचन क्षेत्र में दूर-दूर तक बांटी गयीं। इस शपथ पत्र में उम्मीदवार ने वादा किया है कि अगर वह चुना जाता है तो वह क्षेत्र के निवासियों के साथ मिलकर, खुली जनसभाओं में, सबकी ज़रूरतों और समस्याओं के बारे में तथा किस मद पर कितना पैसा खर्च किया जाना चाहिए उस पर चर्चा करके फैसला लेगा। वह समय-समय पर मतदाताओं के सामने अपने काम का हिसाब देगा। अगर मतदाता उसके काम से खुश नहीं हैं तो वह अपने पद से इस्तीफा देने को तैयार है। यह शपथ पत्र एक नयी चीज थी, जिसका लोगों पर बहुत गंभीर असर पड़ा। लोग इस बात से प्रभावित हुए कि यह एक ऐसा उम्मीदवार है जो खुद संघर्षरत लोगों में से है, जो मतदाताओं के प्रति जवाबदेह होने का वादा कर रहा है। अगर मतदाता उसके काम से संतुष्ट न हों, तो वह मतदाताओं को उसे पद से वापस बुलाने का अधिकार दे रहा है।
जनता के उम्मीदवार का चुनाव अभियान कम से कम खर्च के साथ किया गया। क्षेत्र के निवासियों ने अपने उम्मीदवार के लिए खुद ही दिल खोलकर योगदान दिये। प्रचार करने वाले कार्यकर्ता गली-गली व घर-घर जाकर लोगों से बात करते थे, पर्चे बांटते थे और अपने उम्मीदवार का सन्देश पहुंचाते थे। कई नुक्कड़ों पर, जहां से बहुत सारे लोग गुजरते हैं, प्रचार दल का नेता किसी सीढ़ी या ऊंची जगह पर खड़ा होकर भाषण देता था। भारी संख्या में लोग इकट्ठे होकर उनकी बात सुनते थे और उसके बाद बहुत ही उत्साहित राजनीतिक चर्चा होती थी।
अभियान के सभी प्रचारकर्ता उम्मीदवार शिवाजी के कामरेड व मित्र थे, लोक राज समिति के कार्यकर्ता थे, जिन्होंने स्वेच्छा से इस काम के लिए अपना समय और तन-मन-धन समर्पित किया। कार्यकर्ताओं में यह जागरुकता और समझदारी थी कि यह एक ऐसा अभियान था जो लोगों के सामने एक बेहतर भविष्य का नज़रिया पेश कर रहा था। कोई भी किराए के प्रचारक नहीं थे। गाना गाते, नारे लगाते, पर्चे बांटते और लोगों से बात करते हुए, इन नौजवानों के अभियान से बहुत ही आशावादी और जोशभरा माहौल रहा, जबकि कई और चुनाव अभियानों में वर्तमान राजनीतिक स्थिति की निराशा दिख रही थी।
यह अभियान एक नए प्रकार की राजनीति की ज्वलंत मिसाल थी, जो वर्तमान व्यवस्थागत पार्टियों, कांग्रेस, भाजपा आदि की विभाजनकारी राजनीति के बिलकुल विपरीत था। इसमें जनता और उम्मीदवार के बीच एक नए प्रकार के संबंध की झलक थी। आधुनिक लोकतान्त्रिक व्यवस्था कैसी होनी चाहिए, उसकी इसमें झलक थी।