राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के लाखों किसान अपने खेतों के लिये सिंचाई के लिये पर्याप्त पानी की मांग को लेकर संघर्षरत हैं। यह संघर्ष किसान, मजदूर व्यापार संघर्ष समिति की अगुवाई में लगातार जारी है। इस संघर्ष के समर्थन में लोक राज संगठन की नोहर समिति के सदस्य और लोक राज संगठन के सर्व हिन्द परिषद के उपाध्यक्ष हनुमान प्रसाद शर्मा पूरी सक्रियता के साथ अगुवाई दे रहे हैं।
रिपोर्ट लिखे जाने तक 5 जून, 2016 को रतनपुरा महापंचायत हो चुकी थी और 8 जनू, 2016 को होने वाली महापंचायत की तैयारी में सभी नेता जुटे हुये थे।
विदित रहे कि 15 मई, 2016 को नोहर में, संघर्ष किसान, मजदूर व्यापार संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने सभा की और यह फैसला किया कि पानी की समस्या को लेकर किसानों के बीच सरकार के खिलाफ़ संघर्ष को तेज़ किया जाये। रामसरा में 24 जून को महापड़ाव करके किसानों के बीच संघर्ष की रणनीति बनाई जायेगी और किसानों को लामबंध किया जायेगा।
महापड़ाव के लिये तय कार्यक्रम के अनुसार 23 मई रामसरा में किसानों का महापड़ाव हुआ जिसमें राजपुरिया, पदमपुरा, गुडिया, फेफाना, जसाना, रतनपुरा, माधूवाली ढाणी, परलीका, रामगढ़ और रामसरा गांवों के हजारों किसान शामिल हुये।
महापड़ाव को संबोधित करने वालों में शामिल थे – जिला परिषद सदस्य मंगेज चैधरी, रामगढ़ के पूर्व सरपंच और लोक राज संगठन के सर्व हिन्द परिषद सदस्य ओम साहू सहित आमित चारण, विनोद स्वामी, मनीराम गढ़वाल, महंत गोपालनाथ, दलीप स्वामी, श्रवण तंवर, रणजीत, हनुमान सिहाग, मदन बेनीवाल, पूर्णमल नैण, ओमप्रकाश बिजारणिया, लियाकत अली, बलवान रजोतिया तथा पूर्व पालिका अध्यक्ष राजेन्द्र चाचण।
सभा को संबोधित करते हुये सभी वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि सरकारों के किसान-विरोधी और समाज विरोधी हमलों के खिलाफ़ हमें एकजुट होकर संघर्ष करना होगा। वक्ताओं ने बताया कि हमें पार्टीवादी विचार को भुलाकर, सभी किसानों के अधिकारों के लिये एकजुटता कायम करनी होगी तभी हम पानी की इस मांग को हासिल कर सकते हैं। नेताओं ने किसानों से अपील की कि हम सभी को कंधे से कंधा मिलाकर हमें अपनी एकजुटता दिखानी होगी।
वक्ताओं ने बताया कि राजस्थान में इन दिनों पानी का भारी संकट है और पूंजीवादी राज्य सरकारों ने किसानों की पानी समस्याओं का करने से लगातार इंकार किया है। हमारे टिब्बा क्षेत्र के 54 गांवों के किसान अपनी 80,000 हैक्टेयर भूमि को सिंचित घोषित करने के लिये एटा-सिंगरासर नहर के निर्माण के लिये पिछले 35 सालों से संघर्षरत हैं। मार्च, 2016 से उनका संघर्ष फिर जारी है। इससे पता चलता है कि पूंजीवादी सरकारें चाहे किसी भी पार्टी की हों किसानों की समस्याओं को हल नहीं कर सकती हैं।