3.pngअपने देश के मजदूर, किसान एवं सभी मेहनतकश जनता पर अपना राज बरकरार रखने के लिए, हिन्दोस्तान के सत्ताधारी बड़े सरमायदार वर्ग ने सांप्रदायिक हिंसा के अपने पसंदीदा हथियार को लगातार इस्तेमाल किया है। अलग-अलग धर्म समुदायों को अलग-अलग वक्त पर शिकार बनाया जाता है। अपने देश की आबादी को “हिन्दू-बहुसंख्या” तथा “धार्मिक अल्पसंख्या” में बाँट दिया गया है।

सांप्रदायिक हिंसा का इस्तेमाल करके लोगों के बीच फूट डाली जाती है ताकि, उनकी सभी परेशानियों की जड़, सत्ताधारी वर्ग के खिलाफ़ संघर्ष करने के बजाय, वे आपस बीच ही लड़ते रहें। जब-जब सत्ताधारी वर्ग बड़ी जन-विरोधी नीतियाँ या कदम उठाते हैं, तब-तब उन गतिविधियों से मेहनतकश जनता का ध्यान दूसरी तरफ हटाने के लिए इस हथियार का उपयोग किया जाता है।

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सत्ताधारी वर्ग एवं उनकी राजनीतिक पार्टियाँ लोगों को बताते हैं की सांप्रदायिक हिंसा रोकने के लिए तथाकथित “धर्मनिरपेक्ष” पार्टियों को चुनकर उनके हाथों में सत्ता देनी चाहिए। हिंसा भड़काने के लिए कुछ सांप्रदायिक पार्टियों को जिम्मेदार बताया जाता है। तो कभी-कभी लोगों को ही सांप्रदायिक तथा हिंसा भड़काने के लिए जिम्मेदार बताया जाता है। कुछ पार्टियों पर “धर्मनिरपेक्ष” तो कुछ पर “सांप्रदायिक” लेबल लगाया गया है। इस समस्या के समाधान के लिए या तो पार्टियों के “धर्मनिरपेक्ष” गठबंधन या “सांप्रदायिक” गठबंधन इनमें से एक को चुनने का विकल्प लोगों के सम्मुख रखा जाता है।

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सांप्रदायिक हिंसा की इस समस्या पर विचार-विमर्श करने के लिए लोक राज संगठन ने अगस्त महीने में मुंबई एवं ठाणे में दो सभाएं आयोजित की। इस समस्या की जड़ क्या है, इसके क्या कारण है, उसके लिए कौन जिम्मेदार है, इससे समाज के किस तबके को लाभ होता है और किसे हानि पहुंचती है, और इस समस्या को हमेशा के लिए खत्म करने के लिए क्या करना जरूरी है, आदि सवालों पर चर्चा हुई। बड़ी संख्या में मजदूर, विद्यार्थी, शिक्षक, युवा, महिला, कार्यकर्ताओं एवं लोक राज संगठन के सदस्यों ने सभाओं में सहभाग किया।

दोनों सभाओं की शुरुवात जोशीले गानों से हुई। उसके बाद एक बहुत ही रोचक पावर प्वाइंट प्रस्तुति, जो कि कई वीडिओ तथा ऑडियो क्लिप्स, कई फोटोग्राफ, एवं कविताओं से भरपूर थी, पेश की गई। सभी उपस्थित कई घंटों तक प्रस्तुति बड़ी ही रूची से देखे।

प्रस्तुति की शुरुवात में, आजादी के बाद से अब तक अपने देश में सांप्रदायिक हिंसा की जो प्रमुख घटनाएं हुई हैं, उनके आंकड़े पेश किये गए। उनमें से ज्यादातर हादसे कांग्रेस पार्टी जब सत्ता पर थी तब हुए हैं, इस सत्य से, कांग्रेस जैसी तथाकथित “धर्मनिरपेक्ष” पार्टी सत्ता पर है तो सांप्रदायिक हिंसा पर रोक लगाई जा सकती है, यह मिथ्यक झूठ साबित हुआ। उसके बाद सांप्रदायिक हिंसा की शुरुवात कैसे हुई इस विषय पर रोशनी डाली गई। सभा में उपस्थित सभी यह समझकर दंग रह गए, की अंग्रेज शासन के पूर्व, राजनीतिक उद्देश्य से की गई सांप्रदायिक हिंसा की कोई घटना की रिपोर्ट नहीं है! अंग्रेजों ने ही इस हथियार को उनके “फूट डालो और राज करो” नीति के लिए इस्तेमाल किया। उन्होंने ही “हिन्दू बहुसंख्या” एवं “मुसलमान अल्पसंख्या” की संकल्पना जानबूझकर प्रचलित की और पूरे राज्य के ढांचे को इस तरह बनाया कि यह दरार और गहरी हो एवं लोगों को एक दूसरे के खिलाफ भड़काया जा सके। 1857 के ग़दर के दौरान अलग-अलग धर्म के लोगों की जो एकजुटता अंग्रेजों ने देखी, उससे अंग्रेज सत्ता जड़ तक हिल गई। उसके बाद जब कभी लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष छेड़ा तब सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को आयोजित किया गया।
आजादी के बाद हिन्दोस्तानी राज्य के सांप्रदायिक गुणधर्म पर प्रस्तुति में रोशनी डाली गई। अंग्रेजों से हिन्दोस्तान के जिस वर्ग ने सत्ता की बागडोर थामी है, उसने भी अंग्रेजों की “फूट डालो और राज करो” की नीति वैसे ही जारी रखी है। बस्तीवादी सत्ता को चलाने के लिए, अंग्रेजों ने सांप्रदायिक राज्य के जो संयंत्र बनाए थे उन्हें इस वर्ग ने करीब करीब वैसे ही बरकरार रखा है। इसलिए चाहे, कांग्रेस पार्टी सत्ता पर हो या भाजपा, बड़े सरमायदार सत्ताधारी वर्ग के खिलाफ संघर्ष करने वाले लोगों के बीच फूट डालने के लिए तथा उनका ध्यान असली समस्याओं से दूर हटाने के लिए, सांप्रदायिक हिंसा का उपयोग लगातार किया गया है।

प्रस्तुति के अंत में लोक राज संगठन के वक्ता ने बताया कि “सांप्रदायिक” होने का इल्जाम लोगों पर लगाना गलत है। असलियत तो यह है कि सभी सांप्रदायिक हिंसा की वारदातों में मेहनतकश जनता खुद की जान खतरे में डालकर लक्ष्य बनाये तबके के लोगों को बचाती है। सरमायदारों की “सांप्रदायिक” एवं तथाकथित “धर्मनिरपेक्ष” पार्टियाँ, दोनों ही हिंसा करती हैं, मगर इस समस्या की जड़ तो हिन्दोस्तानी राज्य है जो खुद ही सांप्रदायिक है। समस्या की जड़ तो वह मुट्ठीभर अमीर हैं जो खुद की सत्ता बरकरार रखने के लिए सांप्रदायिक हिंसा का उपयोग करते हैं, ठीक अंग्रेजों की ही तरह! इसीलिए इस समस्या का समाधान, इस अल्पसंख्यक अमीरों की सत्ता की जगह पर लोगों की सत्ता प्रस्थापित करना है। “सांप्रदायिक पार्टियों” की सरकार की जगह पर तथाकथित “धर्मनिरपेक्ष पार्टियों” की सरकार लाने से यह समस्या हल नहीं होगी। बल्कि उससे लोग उनके असली बुनियादी संघर्ष की राह से, यानी कि लोक राज प्रस्थापित करने की राह से, भटक जायेंगे।

इस महत्वपूर्ण विषय पर लोगों के बीच चर्चा आयोजित करने के लिए, कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के वक्ता ने लोक राज संगठन को बधाई दी। उन्होंने बताया कि, मजदूर वर्ग को सत्ताधारी सरमायदार वर्ग की सत्ता के खिलाफ संघर्ष छेड़कर मजदूरों एवं किसानों की सत्ता प्रस्थापित करने के संघर्ष से भटकाने के लिए, मजदूर वर्ग के बीच अलग-अलग पार्टियों तथा संगठनों ने बहुत भ्रम फैलाए हैं। उन्हें मौजूदा सत्ताधारी पार्टी की जगह पर “धर्मनिरपेक्ष गठबंधन” को विराजमान करने के संघर्ष में भटकाया गया है। वक्ता ने उपस्थित लोगों को आह्वान किया कि अपने असली दुश्मन को ठीक से पहचानें एवं उनके खिलाफ संघर्ष को तेज़ करें ताकि सांप्रदायिक हिंसा की समस्या को हल किया जा सके।

कई लोगों ने अपने विचार रखे। लोक राज संगठन के युवा सदस्यों ने जिस रोचक ढंग से एवं स्पष्ट रूप से प्रस्तुति पेश की उसकी भी सराहना की गई। सांप्रदायिक हिंसा के इस विषय पर जो कई खतरनाक भ्रम फैलाए गए हैं, उन्हें स्पष्ट करने एवं इस समस्या के समाधान के लिए दिशा स्पष्ट करने के लिए, उन्होंने लोक राज संगठन का धन्यवाद किया। सभा से प्रेरित होकर कई उपस्थित लोग तुरंत लोक राज संगठन के साथ जुड़ गए एवं इस विषय पर लोक राज संगठन की सोच कोे और लोगों के बीच ले जाने के लिए उन्होंने जिम्मेदारी भी उठाई।

कविताएँ 

सच कहूँगी की तो ताज़्ज़ुब करेंगे सभी,
झूट बोलना तो मुझे आता नहीं।
अंग्रेज़ सरकार की नींव थी साम्प्रदायिक,
क्या ये बात इतिहास में सुनी है कहीं?

ये वो ग़दर की गाथा है,
जहाँ जात-पात की बात लोगोंने मानी न थी।
ब्रिटिश राज को हिलाकर रख दिया,
कुछ ऐसी १८५७ की ग़दर की कहानी थी।

१८५७ के ग़दर को देखकर
अंग्रेज बुरी तरह डर गये।
इसी के बाद तो रानी विक्टोरिया ने
हिन्दोस्तान पर सीधी हुकूमत के ऐलान किये।

जाति धर्म मजहब के नाम पर
बाँटा गया लोगों को हर घड़ी,
हुकूमत बनाये रखने के लिए,
अंग्रेज़ों ने चलायी कानून की छड़ी।

ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना,
यही था अंग्रेज़ी कानून का काम।
शांति के नाम पर हरदम किया,
क्रांति और क्रांतिकारियों का कत्लेआम।

व्यवस्था के नाम पर रखा
लोगों के विचारो को सीमित।
क्यों न हो कितने ही झूट और ढोंग से भरे,
आयोजित करते थे चुनाव तथाकथित।

रूलिंग पार्टी और विरोधी पार्टी,
कुछ इस तरह बदलते अपना स्थान।
के किसी का भी आए राज,
अंत में हो केवल अमीरों का काम आसान।

न था कोई हिंदू ना कोई मुसलमान,
सब मिलकर रहते बहन भाई।
लोगों पर हिंदू बहुसंख्यक और अन्य अल्पसंख्यक कहकर
अंग्रेज़ों ने ही तो पहली बार छाप लगाई।

तुम हो हिंदू, तुम मुसलमान
येही अंग्रेज़ो का नारा था।
हिंदू मेजोरिटी और मुस्लिम माइनॉरिटी कहकर
लोगों की एकता को इन्होनें मारा था।

जिनपर लगाई छाप हिंदू होने की,
उनमें सभी की विचारधारा कभी एक ना थी।
लाखों की तादाद में मजदूर और किसानों ने
अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मिलाए हाथ,
तो दूसरी ओर अमीरों और ज़मींदारों ने
दिया निर्दयी अंग्रेज़ो का साथ।

कभी ये बनते हिन्दुओं का सहारा,
तो कभी बन जाते मुसलमानों के रक्षक।
खुदको दोनों वर्ग का अम्पायर बतानेवाले ये अंग्रेज़
तो सही मायने में थे दोनों के भक्षक।

ब्रिटिश राज के खि़लाफ़ जनता को हक्क दिलाना,
कहनेको कांग्रेस और मुस्लिम लीग का काम था।
किन्तु अमीर वर्ग से बनी इन पार्टियों को जनम देनेवाले थे अंग्रेज़,
ए. ओ. हूम इनमें से एक का नाम था।

चुनावों के लिए उन्हें हक़दिया जाता,
जो पुरुष थे सम्पत्तिवान।
हिंदू चुन सकते केवल हिंदू
और मुसलमान चुन सकते केवल मुसलमान।

सच कहेंगे तो ताज़्जुब करेंगे सभी,
खैरझूट बोलना मुझे आता नहीं।
ये नहीं है केवल इतिहास,
पर आज़ादी के इतने सालों बाद
आज भी चुनावों के नाम पर हमारे
साथ किया जाता है यही उपहास।

लोगों की एकता और भाईचारे को देख कर,
अंग्रेज़ तो गये थे डर।
समझ गये थे, बांटो और राज करो
वरना जाना पड़ेगा अपने घर।

१९०५ के बंग भंग के खिलाफ आवाज़उठाकर
पूरे हिंदोस्तान ने किया भाईचारे का प्रदर्शन।
जिसके जवाब में अंग्रेज़ो ने
बढ़ा दिया लोगों का शोषण।

१९१५ के ग़दर और सोवियत यूनियन की
सफल क्रान्ति से लेते हुए सीख,
हिन्दोस्तानी ग़दरियों ने संगठित
होते हुए रखी क्रान्ति की नींव।

अंग्रेज़ो ने लोगों की साथ आने की
हर कोशिश को किया नाकाम।
हर जगह मचाए दंगे
और बेहरमी से किए कत्लेआम।

ये तो हुई गुजरी कल की बाते,
चलो आज का सच समझते हैं।
मुझे जरा बताइए, इन में से कोई भी
किस्सा हमें क्यों नहीं पढ़ाते हैं?

सच कहूँगी की तो ताज़्जुब करेंगे सभी,
झूट बोलना तो मुझे आता नहीं।
अंग्रेज़ सरकार का सांप्रदायिक इतिहास,
क्यों हमें बतलाया जाता नहीं?
 

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आज़ादी के वक्त दिखाए लोगों को बड़े सपने,
सबको लगा अब ख्वाब होंगे पूरे अपने।
हम सबको किया गुमराह “समाजवादी समाज” की आशा देकर
पर सच तो यह था जनाब, ये तो थे बड़े धोकेबाज।

जब खुली जनता की आंखे, आशा निराशा में तब्दील हुई,
तब लगा इन गद्दारों को डर…
आपातकाल में किया लोगों का दमन
और राज्य था फांसीवादी।
उसके तुरंत बाद लोगों का मजाक उड़ाने
डाले संविधान में शब्द, धर्म-निरपेक्ष और समाजवादी।

थी इन गद्दारो को और पूंजी की आस,
भूमंडलीकरण का लिया इन्होंने ध्यास।
पर भारत का समाज के प्रति कर्तव्य का है इतिहास
तो सोचा इन गद्दारों ने कैसे बंद करेंगे लोगों की आवाज़।

लोगों को भटकाने की शुरू की साजि़श
औरसिखों पे किया ऑपरेशन ब्लू स्टार।
उस के बाद आया १९८४ का दंगा
मासूमों का किया कत्लेआम
ताकि कोई गद्दारोंसे न ले पंगा।

ऐसे मचा आतन्क, अयोध्या पर भी लोगों का मचाया मातम.
कहानी है यह लोगोंको अलग करके उनपे राज करनेकी
इन्हें तो आदत सी है मासूमों का खून बहानेकी।

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