लोक राज संगठन का बयान 11 अगस्त 2015: स्वराज अभियान द्वारा आयोजित जय किसान आन्दोलन में सैंकड़ो लोगों ने पंजाब के ठीक्रिवाल गांव (बरनाला जिला) से शुरू करके 10 दिन की ट्रैक्टर यात्रा निकाली जो हरियाणा और उत्तर प्रदेश से होकर दिल्ली आयी। यात्रा 9 अगस्त को दिल्ली सीमा पर कापसहेड़ा पहुंची। दिल्ली पुलिस ने ट्रैक्टरों को दिल्ली में आने की अनुमति देना नामंजूर कर दिया और सैंकड़ो प्रदर्शनकारी वहां से जंतर मंतर के लिये पैदल जाना पड़ा। 10 अगस्त को जंतर मंतर में किसानों की दुर्दशा पर ध्यान खींचने के लिये एक रैली आयोजित की गयी थी। जंतर मंतर की रैली के बाद पर महाराष्ट्र से आयी 20 महिलायें देश के हजारों गांवों से आयी मिट्टी के कलशों को रेस कोर्स में रखना चाहती थीं। अभियान चाहता है कि देश के 300,000 किसानों की आत्महत्या करने की मज़बूरी को, रेस कोर्स में स्थापित एक स्मारक द्वारा देश याद रखे।

 

दिल्ली पुलिस पूरी कोशिश में रही है कि किसानों की समस्या पर ध्यान आकर्षित करने का यह प्रदर्शन न हो पाये। ट्रैक्टरों को दिल्ली न आने देने के अलावा, दिल्ली पुलिस ने कापसहेडा से जंतर मंतर जाते हुये प्रदर्शनकारियों पर हमला किया। इस हमले में एक नवयुवति के साथ 6 नौजवान घायल हुये। पुलिस ने इतनी बर्बरता से हमला किया था कि कई नौजवानों की हड्डियां तक टूट गयी थीं। रैली के बाद भी पुलिस ने महिलाओं में कलश की मिट्टी रखने नहीं दी। पुलिस का बहाना था कि इसके लिये अभियान ने इजाज़त नहीं ली थी। यह ध्यान देने योग्य बात है कि अगर यातायात में बाधा नहीं पड़ने वाली थी, तब इस तरह के शांतिपूर्वक संाकेतिक प्रदर्शन के लिये पुलिस की इजाज़त लेने की आवश्यकता नहीं होती है। जब पुलिस ने इसकी भी इजाज़त नहीं दी, तब प्रदर्शनकारियों ने निर्णय लिया कि वे जंतर मंतर पर ही बने रहेंगे जब तक कि पुलिस उन्हें रेस कोर्स जाने की इजाज़त नहीं देती। परन्तु पुलिस ने फिर से हमला किया। कई प्रदर्शनकारियों को हस्पताल में भर्ती करना पड़ा। इसके बाद श्री योगेन्द्र यादव जो अभियान का नेतृत्व दे रहे थे और श्री पंकज पुश्कर (विधायक) समेत पुलिस ने 80 से 90 प्रदर्शनकारियों को उठा कर ले गये। उन्होंने प्रदर्शनकारियों को धक्का दिया और चांटा भी मारा। उन्हें डरानवी धमकी दी गयी परन्तु यह नहीं बताया कि उन्हें बंदी क्यों बनाया गया है।

पुलिस का बर्ताव बहुत निंदनीय है। नागरिकों को पूरा अधिकार है कि वे शांतिपूर्वक तौर पर प्रदर्शन करें और अपनी मांगें सार्वजनिक करें। यह स्पष्ट है कि पुलिस लोगों के इस लोकतांत्रिक अधिकार को कुचल रही है। लोक राज संगठन पुलिस की कार्यवाई पर अपना गुस्सा जाहिर करता है और मांग करता है कि प्रदर्शनकारियों को तुरंत रिहा किया जाये, पुलिस मार-पीट करने के लिये माफी मांगे और भविष्य में शांतिपूर्वक प्रदर्शनकारियों पर हमले न करे।

कदाचित दिल्ली पुलिस का व्यवहार सरकार के उच्च अधिकारियों के आदेशों का पालन करने में था। लोक राज संगठन यह मांग करता है कि जो भी पुलिस के इस आचरण के लिये जिम्मेदार हैं, उन्हें जनता के सामने समझाना होगा कि उनके विचार में, हिन्दोस्तानी किसानों की दुर्दशा पर ध्यान दिलाने के लिये किसानों व जय किसान अभियान के कार्यकत्र्ताओं व नेताओं के शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन को अनुमति क्यों नहीं होना चाहिये?

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