लोक राज संगठन का निवेदन, 1 जनवरी 2015

भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनव्र्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिनियम में संशोधन करने के लिये अध्यादेश जारी करने का मंत्रीमंडल का हाल में लिया गया फैसला पूर्णरूप से लोकविरोधी है। लोक राज संगठन इस अध्यादेश का सख्ती से विरोध करता है।
बड़े कार्पोरेटों के पूंजी निवेश के दावों के दबाव में राजग सरकार ने इस अध्यादेश को जल्दबाजी में पारित किया है। ऐसा अनुमान है कि भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के प्रतिबंधों के कारण 20 लाख करोड़ रुपयों के निवेश अटके हुये हैं। इन प्रतिबंधों को हटाने से अचल संपत्ति, औद्योगिक गलियारों और अन्य बड़े आधारभूत ढ़ांचा तथा रक्षा परियोजनाओं में निवेश करने वाले कार्पोरेटों के मुनाफों में बड़ा इज़ाफा होगा।

 

सरकार ने कानून के अनुच्छेद 10(क) में संशोधन किया है और उन क्षेत्रों का विस्तार किया है जिनके लिये मूल्यांकन व सहमति की जरूरत नहीं होती है। इनमें पांच नये क्षेत्रों को जोड़ा गया है। अतः अब सरकार व व्यक्तियों/निजी कंपनियों को भूमि अधिग्रहण के लिये इन पांच क्षेत्रों में 80 प्रतिशत की सहमति की जरूरत नहीं होगी। अरुण जेठली के अनुसार अनिवार्य 80 प्रतिशत सहमति तथा सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन अब उन भूमि अर्जन के लिये जरूरी नहीं होगा जो राष्ट्रीय सुरक्षा, रक्षा, बिजलीकरण सहित ग्रामीण आधारभूत संरचना, औद्योगिक गलियारों और गरीबों के लिये आवास के लिये हों। इनमें सार्वजनिक-निजी सांझेदारी (पी.पी.पी.) के प्रकल्प शामिल हैं।

मौजूदा कानून में भूमि के अधिग्रहण के लिये ऐसे लोगों पर सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन जरूरी है जो उस भूमि पर निर्भर हैं। इस शर्त को निकाल देने के कारण यह अध्यादेश उन लोगों के अधिकारों का उल्लंघन करता है जो भूमि पर अपनी जीविका या मुआवज़ा के लिये निर्भर हैं। इस अध्यादेश के अनुसार, इन पांच क्षेत्रों के लिये भूमि अधिग्रहण के लिये इस बात पर ध्यान नहीं दिया जायेगा कि जमीन उपजाऊ है या नहीं। अतः भूमि अत्याधिक उपजाऊ ही क्यों न हो, जैसा कि सिंगूर में था, इसका जबरन अधिग्रहण किया जा सकता है अगर यह उन पांच क्षेत्रों के लिये किया जा रहा है।
इस अध्यादेश ने 13 अन्य कानूनों को अपने अधीन किया है जैसे कि कोयला इलाकों में अधिग्रहण तथा विकास कानून 1957, राष्ट्रीय महामार्ग कानून 1956, भूमि अधिग्रहण (खदान) कानून 1885, इत्यादि जो पहले भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के दायरे से बाहर थे। अतः उक्त संशोधन इन कानूनों पर भी लागू होंगे।

मोदी सरकार ने साल के एकदम अंतिम समय इस अध्यादेश को इसीलिये धकेला है क्योंकि वह बड़े इजारेदारों और कारोबारी घरानों को भरोसा देना चाहती है कि सुधार अजेंडा जारी रहेगा और सरकार उनके अधिकतम मुनाफों के लिये हर संभव प्रयास करेगी। वैश्विक कारोबार योग्यता निर्धारण कंपनी गोल्डमॅन साक्स ने कहा है कि इस अध्यादेश से फौरन पाॅवर ग्रिड का लाभ होगा क्योंकि उन्हें पाॅवर प्रसारण व वितरण परियोजनाओं के लिये रास्ते पर आगे निकल जाने का अधिकार मिलेगा, कंटेनर कार्पोरेशन आॅफ इंडिया (राज्य मालिकी का इजारेदार) को औद्योगिक गलियारा बनाने में और लार्सन एण्ड टूब्रो को पी.पी.पी. की परियोजनाओं के कार्यान्वन में गति मिलेगी।

अध्यादेश उपनिवेशवादी एमिनेन्ट डोमेन के सिद्धांत को फिर दोहराता है जिससे राज्य हिन्दोस्तान की सभी भूमि व प्राकृतिक संसाधनों पर जबरन अपना अधिकार स्थापित करता है। यह उस सिद्धांत का उल्लंघन है जो उपनिवेशवादी काल के पहले लागू था और जिसके अनुसार सभी भूमि व प्राकृतिक संसाधन लोगों की मलिकी के हैं। यह अध्यादेश उस सिद्धांत का उल्लंघन है जिसके अनुसार भूमि उपयोग को लोगों की सहमति के बिना बदला नहीं जा सकता है।

अध्यादेश हिन्दोस्तान के सभी तबकों के लोग जिनमें मज़दूर, किसान, मछुवारे, दस्तकार और खेत मज़दूर शामिल हैं, इन सबके हितों के विपरीत है।

चलो हम मोहल्लों, गांवों व उन्य स्थानों में एकजुट होकर इस अध्यादेश कर विरोध करें!

 

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