1-6dec2014.jpgलोक राज संगठन, जिसने पाॅपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया, जे.एन.यू. स्टूडंेट्स यूनियन, यूनाइटेड मुस्लिम्स फ्रंट, जमात-ए-इस्लामी हिन्द, ए.आई.एस.ए., सिख यूथ फोरम, डी.एस.एफ., लेफ्ट कलेक्टिव, सिटिजं़स फाॅर डेमोक्रेसी, सिख फोरम, सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी आॅफ इंडिया, एस.यू.सी.आई. (कम्युनिस्ट), सी.पी.आई.(एम.एल.) लिबरेशन, हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी, सी.पी.आई.एम.एल. (न्यू प्रोलेतेरियन), सोशलिस्ट पार्टी आॅफ इंडिया, वेलफेयर पार्टी आॅफ इंडिया, एसोसियेशन फाॅर प्रोटेक्शन आॅफ सिविल राइट्स, आॅल इंडिया मुस्लिम मजलिस ए मुशावरत, आॅल इंडिया इमाम्स कौंसिल, नैशनल पेट्रियाॅटिक पीपल्स फ्रंट, ए.आई.पी.डब्ल्यू..ए., पुरोगामी महिला संगठन, हिन्द नौजवान एकता सभा, मजदूर एकता कमेटी, पीपल्स मूवमेंट एगेंस्ट यू.ए.पी.ए., आॅल इंडिया सिख काॅन्फरेंस, आॅल इंडिया सेक्यूलर फोरम, सेंटर फाॅर हार्मनी एंड पीस, कबीर पीस सेंटर और निशांत नाट्य मंच के साथ संयुक्त रूप से बाबरी मस्जिद के विध्वंस की 22वीं बरसी पर 6 दिसम्बर 1992 को मंडी हाऊस से जंतर मंतर तक एक विरोध जुलूस निकाला और एक जन सभा आयोजित की, यह घोषणा करता है कि:

6 दिसम्बर 1992 की घटना और उसके पश्चात की हिंसा, जिसमें मुंबई व देश के अन्य स्थानों में मुसलमान व अन्य लोगों को निशाना बनाया गया था, ये आज भी देश के लोगों में ख़ौफ पैदा कर देते हैं – सिर्फ एक याददाश्त के रूप में ही नहीं, बल्कि बार-बार होने वाली एक दर्दनाक हक़ीक़त के रूप में – 2002 में गुजरात, 2012 में मुजफ्फरनगर और इस वर्ष त्रिलोकपुरी, बवाना व दिल्ली के दूसरे इलाके, तथा ओडिशा व असम की लोगों के एक हिस्से पर की गयी हिंसा की वारदातें। इनके पीडि़तों, जिनमें 1984 में सिखों के कत्लेआम के पीडि़त भी शामिल हैं, इनको लगातार न्याय से वंचित रखना साफ़-साफ़ दिखाता है कि इन भयानक अपराधों के लिये राज्य के किसी भी अंग से अपराधियों को सज़ा मिलने की आशा नहीं की जा सकती है।

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बाबरी मस्जिद का ध्वंस करने की पूरी प्रक्रिया हिन्दोस्तानी शासन व्यवस्था द्वारा बहुत ही सुनियोजित कार्यवाही थी। राज्य तंत्र के सभी उपकरण – कार्यकारिणी, विधिपालिका और न्यायपालिका – इसे करने में पूरी तरह शामिल थे। बाबरी मस्जिद के ध्वंस की तैयारी करने के लिये, शासक कुलीनों की विभिन्न राजनीतिक पार्टियों और दूसरे संगठनों को, लोगों को धर्म के आधार पर भड़काने और बांटने का काम सौंपा गया था।

शासकों और उनके राज्य ने जानबूझकर यह बेहद झूठा प्रचार फैलाया कि “लोग उस ऐतिहासिक इमारत का विध्वंस करना चाहते थे”। पर सच तो यह है कि हमारे देश के लोग, चाहे किसी भी धर्म के हों, उस भयानक अपराध से स्तब्ध रह गये थे और पूरी तरह उसके खिलाफ थे।

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बाबरी मस्जिद के विध्वंस ने यह साफ-साफ दिखाया कि लोग नहीं हैं बल्कि हिन्दोस्तानी राज्य साम्प्रदायिक है। लोगों के सुख और सुरक्षा को सुनिश्चित करने का अपना फर्ज निभाना तो दूर, यह राज्य खुद ही साम्प्रदायिक नरसंहार व कत्लेआम आयोजित करता है। राजकीय आतंकवाद, यानेकि इस या उस समुदाय को निशाना बनाकर जनसंहार आयोजित करना, यह लोगों की एकता को तोड़ने के लिये, सत्ताधारियों और उनके राज्य का तब से पसंदीदा अस्त्र रहा है जबसे हिन्दोस्तान में वर्तानवी ताज का राज प्रस्थापित हुआ था।

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एक और बड़ा झूठ जो शासकों के विचारक फैलाते हैं वह है कि सिर्फ कुछ पार्टियां और संगठन ही साम्प्रदायिक हैं, कि हमारे संघर्ष का उद्देश्य होना चाहिये कि पार्टियों के एक गठबंधन को सत्ता से हटाना और दूसरों को सत्ता में लाना। परन्तु हमारा अनुभव दिखाता है कि चाहे कोई सी भी पार्टी या गठबंधन सत्ता में क्यों न रहा हो, इन कत्लेआमों के अपराधियों को सज़ा नहीं दी जाती है। अतः यह साफ़ है कि ऐसा प्रचार राज्य के साम्प्रदायिक स्वभाव को छिपाने की कोशिश करता है और अपनी धरती से धर्म के नाम पर कत्लेआम के कलंक को खत्म करने के लोगों के संघर्ष को गुमराह करने की भूमिका अदा करता है।

हम सभी न्यायपसंद लोगों को बुलावा देते हैं कि हम साथ में आकर दृढ़ संकल्प लें कि गुनहगारों को सज़ा मिलने तक हम इसके लिये संघष जारी रखें, चाहे हमारा धर्म, भाषा, जाति या इलाका भिन्न क्यों न हो। चलो, हम मूलभूत राजनीतिक सुधारों के लिये संघर्ष करें जो असलियत में लोगों को सत्ता में लाये और एक आधुनिक व सुसंस्कृत देश की रचना करे। चलो, हम ऐसे कानून व तंत्रों की स्थापना के लिये संघर्ष करें जो राज्य द्वारा साम्प्रदायिक हिंसा को भविष्य में न होने दें।

बाबरी मस्जिद के विध्वंस के गुनहगारों को सज़ा दें!
राजकीय आतंकवाद और फिरकापरस्त हिंसा के खिलाफ़,
एक न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के लिए एकजुट हों!
एक पर हमला सब पर हमला!

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