30 वर्ष पूर्व, जून 1984 के प्रथम सप्ताह में भारत की तत्कालीन सरकार ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर, जो सिखों का पवित्रतम धार्मिकस्थल है, की घेराबंदी तथा बमबारी के लिये सेना की तैनाती की थी. गुरु अर्जनदेव जी का शहीदी दिवस मनाने के लिये एकत्र हज़ारों महिलाओं, पुरुषों तथा बच्चों की हत्या कर दी गई. स्वर्ण मंदिर पर आक्रमण का समाचार मिलने पर वहाँ जाने की कोशिश करने वाले हज़ारों लोगों पर गोलीबारी करने के लिये हैलीकाप्टरों का प्रयोग किया गया. एक धर्म विशेष से सम्बद्ध लोगों पर हुए इस वीभत्स आक्रमण को स्मरण करते हुए तथा इस अवधारणा के साथ कि “एक पर आक्रमण सभी पर आक्रमण है” लोग राज संगठन ने, जो विगत अनेक वर्षों से निर्दोष लोगों के नरसंहार की योजना तथा क्रियान्वयन ते दोषी लोगों को दंडित करने के अभियान की अगुवाई कर रहा है, दिल्ली में 8 जून को एक सभा का आयोजन किया.
सभा में एकत्र 250 से भी ज़्यादा लोगों का स्वागत करते हुए अध्यक्ष श्री राघवन ने कहा : ”सत्य का पता लगाने के लिये 30 वर्ष बाद हम ये समीक्षा कर रहे हैं कि इस सबके पीछे कौन था. आज के श्रोताओं में 80 प्रतिशत युवा हैं जिनमें से कई का जन्म 1984 के बाद हुआ होगा. आपने इसके बारे में टीवी और समाचारपत्रों से सुना होगा. आज आप सत्य से अवगत होंगे. यह यहाँ पर उपस्थित उम्रदराज़ लोगों की ज़िम्नेदारी है कि वे आपको बतायें कि वहाँ क्या हुआ और क्यों हुआ. स्वर्ण मंदिर पर हुआ आक्रमण पूर्ण रूप से एक जनविरोधी कृत्य था. तदुपरांत राज्य द्वारा संचालित साम्प्रदायिक हिंसा में बहुत से लोग मारे गये.
“स्वर्ण मंदिर में उन लोगों पर आक्रमण किया गया जो अपराधी नहीं थे. सैन्य बलों ने आम लोगों पर अंधाधुंध गोलीबारी करने के लिये हैलीकाप्टरों का प्रयोग किया. यदि स्वर्ण मंदिर में मुट्ठी भर आतंकवादी थे भी तो भी किसी सरकार को आम लोगों को विशाल स्तर पर थल और वायु सेना का निशाना बनाने का क्या अधिकार है? इतने बड़ी संख्या में वहाँ सैनिक क्यों भेजे गये और हैलीकाप्टरों को संचालित क्यों किया गया? यह मात्र संत भिंडरावाला अथवा सिखों पर ही आक्रमण नहीं था, यह समस्त भारतवासियों पर आक्रमण था.
“हम सोचते हैं कि थल और वायु सेलायें हमारे देश की रक्षा के लिये हैं. किन्तु भारतीय सेना ने संभवतः शत्रुओं की तुलना में अपने ही देशवासियों का खून ज़्यादा बहाया होगा. ज़रा पूर्वोत्तर या कश्मीर या पंजाब पर एक दृष्टि डालिये और यह स्पष्ट हो जाता है. यह एक पूर्वनियोजित आक्रमण था. यह कोई साधारण दिन भी नहीं था. यह गुरु अर्जनदेव जी के शहीदी दिवस की वर्षगाँठ थी जब वहाँ दस हज़ार लोग एकत्र थे. इस घटना पर एक श्वेत पत्र तो जारी किया गया किन्तु सत्य फिर भी उजागर नहीं किया गया. इंसानों की हत्या चूहों की तरह की गई. उन्हें नदी नालों में फेंक दिया गया. उसके बाद भी सैकड़ों नौजवान बस यूँ ही लापता हो गये हैं और उनके शोकाकुल परिवार अभी भी यह आशा कर रहे हैं कि किसी दिन वे लौट कर आयेंगे. यह स्पष्ट है कि उस दिन दस हज़ार से भी ज़्यादा लोगों की हत्या की गई. इस आक्रमण का कुछ तो उद्देश्य रहा होगा – इसका उद्देश्य राज्य द्वारा सिखों को एक सबक सिखाना था.
“1984 के पहले लोग अपने अधिकारों के लिये- रोज़गार कि लिये, राजनैतिक अधिकारों के लिये- लड़ रहे थे. यह आपरेशन लोगों के इसी संघर्ष को कुचलने के उद्देश्य से किया गया. इंदिरा गाँधी सरकार का कहना था कि उसके पास कोई और विकल्प नहीं था क्योंकि आतंकवादी समस्या उत्पन्न् करना और भारत में लोगों की हत्या करना चाहते थे. इस बात का कोई भी प्रमाण मौजूद नहीं है. इसी प्रकार से अन्य स्थानों पर मुसलमानों तथा अन्य धर्म, जाति व नस्ल के लोगों कोभी निशाना बनाया गया है.
“कुछ आतंकवादियों को निशाना बनाने की आड़ में निर्दोष लोगों की हत्या किसी भी प्रप्कार स्वीकार्य नहीं है; फिर मानवाधिकारों और मानव सम्मान का अर्थ ही क्या रह जाता है. समस्या का मूल संविधान में अधिकारों की अवधारणा में ही निहित है. यदि आप संविधान पर एक दृष्टि डालें तो एक स्थान पर यह कहता है कि लोगों को कुछ अधिकार प्राप्त हैं, किन्तु उसी धारा के अन्य अनुच्छेद उन्हें उसी अधिकार से वंचित कर देते हैं. राज्य ही यह निर्णय करता है कि किसे अधिकार मिलेंगे और किसे नहीं. सभी जानते हैं कि भारत में कानून उपनिवेशवादी काल की विरासत मात्र हैं- जिनमें UAPA और AFSPA शामिल हे.
“अंग्रेज़ साम्प्रदायिक भावनायें भड़का कर भारतीयों को विभाजित बनाये रखना चाहते थे. यह राज्य को उनके अत्याचारी जनविरोधी शासन को कायम रखने में सक्षम करता है. हमें उपनिवेशवादी विरासत के विरुद्ध संघर्ष करना होगा. यह आक्रमण जलियाँवाला बाग से भी बड़ा नरसंहार था. उस समय अंग्रेज़ों का शासन था किन्तु आपरेशन ब्लूस्टार भारतीय शासकों द्वारा संचालित था. माना जाता है कि इस व्यवस्था में लोगों को कुछ अधिकार प्राप्त हैं, माना जाता है कि वे अपने प्रतिनिधियों का चयन कर सकते हैं और सिद्धांततः उन्हें उन प्रतिनिधियों को वापिस बुला लेने का भी अधिकार प्राप्त होना चाहिये जो जनता की सेवा नहीं करते. किन्तु सत्य ये है कि स्वयं पर हो रहे इन अत्याचारों को रोकने के लिये लोगों के पास कोई भी अधिकार अथवा ताकत नहीं है. जिस राजनैतिक व्यवस्था के बारे में हम पाठ्य पुस्तकों में पढ़ते हैं वह सत्य और ज़मीनी वास्तविकता से बहुत दूर है.
“इन चुनावों को ही देखिये, क्या किसी भी दल ने अपने घोषणापत्र में दोषियों को सज़ा दिलाने का मुद्दा उठाया?1984 के पीड़तों अथवा बाबरी मस्चिद के विध्वंस अथवा लोगों के विरुद्ध किसी भी अन्य अपराध के मामले में न्याय का न तो उल्लेख था और न ही मंशा. हम इस राज्य से न्याय की अपेक्षा नहीं कर सकते. कुछ लोग अभी भी एक श्वेत पत्र की माँग कर रहे हैं. कुछ लोग संयुक्त राष्ट्र जाने की बात कह रहे हैं तो कुछ एक सत्यन्वेषी आयोग के गठन की बात कह रहे हैं. मित्रों, हम सत्ता में बैठे इन लोगों पर निर्भर नहीं रह सकते. हम जनसाधारण को ही सत्य का पता लगाना होगा, सत्ता में स्थित इन लोगों से हम कुछ भी अपेक्षा नहीं रख सकते. उनका रुख स्पष्ट है कि जो भी राज्य का विरोध करे, उसे कुचल दिया जाना चाहिये. हम राज्य अथवा यह कहने वालों पर विश्वास नहीं कर सकते कि जो कुछ 30 वर्ष पूर्व हुआ वह मात्र एक तात्कालिक प्रतिक्रिया थी और इसका कोई विकल्प नहीं था. हम यह सत्य उजागर करेंगे कि इसका उद्देश्य लोगों की एकता को तोड़ना और सिख सम्प्रदाय के लोगों पर आक्रमण करना था. उन्होंने जो किया वह संविधान के विरुद्ध नहीं था, क्योंकि संविधान लोगों का दमन करने वाले उपनिवेशवादी शासन पर आधारित है.
“मीडीया क्रमशः उजागर कर रहा है कि किस प्रकार से अनेक एजेंसियाँ इस आक्रमण की योजना बनाने में संलग्न थीं.MI6 और RAW ने जून के उन भयावह दिनों के कई महीनों पूर्व ही यह योजना तैयार कर ली थी. अब इस आक्रमण को विश्व स्तर पर न्यायसंगत ठहराया जा रहा है. हमें इस बारे में स्पष्ट होना होगा कि यह आतंकवाद का मुद्दा नहीं अपितु सम्पूर्णता में लोगों के अधिकारों का प्रश्न है.
“हमें इस विषय मे गहन चर्चा करनी होगी कि इससे किसे लाभ पहुँचा- जनसाधारण को या सत्ता में बैठे लोगों को. यह अत्यन्त शर्म की बात है कि 30 वर्ष बाद भी हमें 30 वर्ष पूर्व हुए अन्याय के लिये न्याय हेतु संघर्ष करना पड़ रहा है. यह एक लंबा संघर्ष है किन्तु हम हार नहीं मान सकते. यदि हम संघर्ष नहीं करेंगे तो एसे अन्याय जारी रहेंगे.
“जो कुछ हुआ उस पर हमें असीमित दुख और नाराज़गी है. किन्तु पिछले 30 वर्षों में हमने बहुत कुछ सीखा भी है. उस समय बहुत से लोग राज्य के दुष्प्रचार पर विश्वास करते थे. किन्तु आज अधिकाँश लोग अपने अत्याचारों को न्यायसंगत ठहराने के लिये राज्य द्वारा दिये जाने वाले तर्कों पर विश्वास नहीं करते. 1992-93 और 2002 में हुए अन्याय और नरसंहारों को लोग भूल नहीं सके हैं. सम्पूर्ण जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर सैनिक शासन के अंतर्गत हैं. वे अपने अधिकारों के लिये संघर्ष कर रहे लोगों को कुचलने के लिये सेना और अन्य बलों को और सशक्त बना रहे हैं. यह सत्ता में बैठे लोगों की नीति है और हमें इसका विरोध करना है. दोषियों को दंडित करने के मामले में हम राज्य पर निर्भर नहीं रह सकते. हमें स्वयं राज्य द्वारा संचालित आतंकवाद से लड़ना होगा. हमें उस राज्य का विरोध करना होगा जो हमारे साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार करता है. अधिकारों और न्याय के लिये संघर्ष में साथ आने के लिये मैं यहाँ उपस्थित सभी लोगों का आह्वान करता हूँ. इस संघर्ष में योगदान करने के इच्छुक सभी लोगों का LRS स्वागत करता है. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता यदि आप किसी और संगठन अथवा दल से सम्बद्ध हैं. यदि आप इस राजनैतिक उद्देश्य से सहमत हैं कि लोगों को सशक्त होना चाहिये और सत्ता के केंद्र में आना चाहिये, जिससे सभी के मानव, प्रजातांत्रिक व राष्ट्रीय अधिकारों की रक्षा की जा सके, तो आइये और LRS में शामिल हो जाइये.”
अगले वक्ता श्री एन डी पांचोली, जो पीपुल्स यूनियन आप सिविल लिबर्टीज़ के सदस्य हैं और 1984 के पीड़ितों के लिये न्याय और सत्य हेतु संघर्ष करते रहे हैं, ने कहा, “ LRS ने एक बड़े ही महत्वपूर्ण मुद्दे पर एस सभा का आयोजन किया है. जब मुझे निमंत्रण मिला तो बड़ी प्रसन्नता हुई कि इस देश में अभी भी एसे लोग हैं जो इस मुद्दे को भूले नहीं हैं, क्योंकि ये अभी भी समाप्त नहीं हुआ है. इस मुद्दे को समझना, सवाल उठाना और इन पर चर्चा करना महत्वपूर्ण है. इस पर विचार करना महत्वपूर्ण है. आपरेशन ब्लूस्टार के बहुत पहले से पंजाबी लोग एक लंबा संघर्ष कर रहे थे. यह संघर्ष इस राजनैतिक विषय में था कि शासन करने के लिये नियंत्रण और सत्ता किसके पास होगी. इसी संदर्भ में लोगों के मध्य परस्पर टकराव उत्पन्न करने के लिये साम्प्रदायिकता के मुद्दे का प्रयोग किया गया. इंदिरा गाँधी लोगों की एकता को तोड़ना चाहती थीं. लोगों की माँगों को नज़रअंदाज़ करते हुए, जिसमें राष्ट्रीय अधिकारों की माँग भी शामिल थी, केंद्र में कांग्रेस पार्टी की सरकार ने कुछ हिंसावादी समूहों को समर्थन प्रदान किया और मंदिर के परिसर में कुछ लोगों को बैठा दिया जिससे कि आतंकवाद और साम्प्रदायिक प्रचार के बारे में झूठी बातें फैलाई जा सकें. स्वर्ण मंदिर सिख धार्मिक समुदाय की एकता का प्रतीक है; यह एक ऐसा स्थान थाजहाँ से पंजाब के लोगों के सात ही अन्य कई लोगों ने बड़ी संख्या में आपातकाल का विरोध किया था. यह एक अत्यन्त सशक्त विरोध था और ऐसा कोई दिन नहीं था जब विरोध प्रदर्शन न किये गये हों. स्वर्ण मंदिर के भीतर यह शक्ति प्रदर्शन भी राज्य के लिये परेशानी का सबब था. राज्य ने लोगों के मन में यह छवि बनाने कि लिये कि सिख आतंकवादी हैं मीडिया का प्रयोग किया.
“हमारे दलों ने कई दिन लगा कर पंजाब के विभिन्न गाँवों और शहरों का दौरा किया और लोगों द्वारा दी गई जानकारी से उन्हें अत्यन्त आश्चर्य और सदमा पहुँचा क्योंकि यह जानकारी राज्य द्वारा किये जा रहे प्रचार से सर्वथा विपरीत थी. यह सत्य का चेहरा पूर्णतः बदल देने के समान था. स्वर्ण मंदिर के भीतर से आतंकवादियों द्वारा कोई गोलियाँ नहीं चलाई गई थीं, सभी गोलीबारी राज्य द्वारा ही की गई थी. हमने रिपोर्ट दी और वह प्रकाशित भी हुई. किन्तु दूसरे ही दिन इस पुस्तक को प्रतिबंधित कर दिया गया और कहा गया कि यह राजद्रोह है और लोगों की साम्प्रदायिक भावलाओं को भड़कायेगी. नवम्बर 1984 में दिल्ली मे सिखों का नरसंहार और फर्ज़ी मुठभेड़ों में हज़ारों सिख युवकों की हत्या एक सुनियोजित नीति का ही अंग हैं.”
सत्य का और भी विस्तार से वर्णन करने के पश्चात अपने समापन में श्री पांचोली ने कहा कि यदि सरकार ग़लत है तो जनता का एक अंग होने के नाते हमें एकजुट होकर उसके विरुद्ध संघर्ष करना चाहये, यह हमारा कर्तव्य है.
कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी आफ इंजिया के प्रवक्ता कामरेड प्रकाश राव ने अपने भाषण में कहा- मात्र इसलियेकि किसी का राजनैतिक दृष्टिकोण भिन्न है, उसकी हत्या को न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता. भारत सरकार को स्वर्ण मंदिर तथा पंजाब के अन्य स्थानों व दिल्ली में सिखों का नरसंहार करने का कोई अधिकार नहीं था. पंजाब और भारत के लोगों की समस्याओं के समाधान के संबंध मे हमारे दल का दृष्टिकोण संत जरनैल सिंह भिंडरावाले से भिन्न था. फिर भी हमने स्वर्ण मंदिर पर किये गये कायराना आक्रमण और संत भिंडरावाले की हत्या की स्पष्ट शब्दों में भर्त्स्ना की.
“हमारे दल ने विश्व भर में स्वर्ण मंदिर पर हुए आक्रमण की निन्दा करने और भारतीय राज्य द्वारा चलाये भ्रामक सूचना प्रचार को उजागर करने के लिये अभियान चलाया. स्वर्ण मंदिर पर आक्रमण के तुरंत बाद हमारे साथियों ने इस आक्रमण के विरोध में लोगों को संचालित करने के लिये लंदन, वैंकूवर, टोरंटो, मांट्रयाल, ओटावा और ब्रिटेन और कनाडा के अन्य शहरों में जनसभाओं का आयोजन किया. दिल्ली और पंजाब में फासीवादी दमनकारी स्थितियों के अंतर्गत हमारे कामरेडों ने निडरतापूर्वक आक्रमण की भर्त्स्ना में पोस्टरों और पर्चों के माध्यम से अभियान चलाया. हमारे दल द्वारा केंद्र सरकार के विरुद्ध उत्तरी अमरीका और ब्रिटेन में पंजाबी समुदाय के संचालन से भारतीय राज्य इतना चिंतित हो गया था कि 23 जून 1984 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति त्ज्ञानी जैल सिंह ने सरकार को कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी को प्रतिबंदित करने की सलाह दी थी. आपरेशन ब्लूस्टार भारतीय राजनीति में एक परिवर्तन का प्रतीक था. वैश्विक साम्राज्यवादी ताकत बनने के इच्छुक भारतीय बुर्जुवा श्रमिकों और किसानों के विरोध को कुचलने पर आमादा थे. उनके उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उनके राजनैतिक दलों जैसे कांग्रेस और भाजपा ने साम्प्रदायिक आधार पर श्रमिकों और किसानों को विभाजित करने के लिये साम्प्रदायिक भावनायें भड़काने का कार्य किया. सिख विरोधी उन्मात फैलाया गया और सिखों को राष्ट्र विरोधी और राष्ट्र की एकता अखंडता के लिये खतरे के रूप में प्रस्तुत किया गया. पंजाब के लोगों की राजनैतिक माँगों को “कानून व्यवस्था की समस्या” कह कर नकार दिया गया. राष्ट्र की एकता और अखंडता के शत्रुओं का सफाया करने की आड़ में श्रमिक वर्ग से सरकारी आतंकवाद की नीति को मानने के लिये कहा गया. सत्य का चेहरा पूर्णतः विकृत करते हुए सिखों पर हिंदुओं की हत्याएँ करने की योजना बनाने का आरोप लगाया गया, जबकि सच्चाई यह थी कि राज्य सिख आस्था के लोगों की हत्या करने की योजना बना रहा था. सिखों का निरूपण साम्प्रदायिक लोगों के रूप में किया गया, जबकि सच्चाई ये थी कि भारतीय राज्य ने जानबूछ कर सिखों के विरुद्ध साम्प्रतायिक भावनायें भड़काने का कार्य किया. इसके अतिरिक्त राज्य ने पगड़ी पहने हुए अपने एजेंटों द्वारा निर्दोष हिंहुओं की हत्याएँ करवाईं और इसका दोष “सिख आतंकवादियों” के सिर मढ़ दिया. हमें इस तथ्य के प्रति अत्यन्त स्पष्ट होना होगा कि इस राज्य की नींव ही साम्प्रदायिक है. किसी न किसी समुदाय को निशाना बनाना शासक वर्ग की पसंदीदा नीति है, यह लोगों को विभाजित कर अपनी सत्ता कायम रखने का इसका एक तरीका है. बुर्जुवा चुनावों और हिंसा दोनों के माध्यम से शासन करते हैं. स्वाधीनता के बाद से हमारे लोगों का यही अनुभव है. बुर्जुवा नियमित रूप से चुनावों का आयोजन करते हैं जिससे श्रमिकों तथा किसानों के बीच सत्ताधारी दल की साख समाप्त हो जाये तो सत्ताधारी बुर्जुवा का दूसरा दल उसका स्थान ले सके. इस व्यवस्था में चाहे जो भी दल सत्ता में आये, वह निश्चित रूप से सत्ताधारी बुर्जुवा की योजनाओं और नीतियों को ही लागू करेगा. इस बारे में हमें किसी भी भ्रम में नहीं रहना चाहिये. सत्ता में आने वाले दल मात्र बुर्जुवा के लिये कार्य करने वाले प्रबंधक दलों के ही समान हैं. बुर्जुवा ही निर्णय करते हैं कि किसी चुनाव विशेष में किस दल को अर्श से फ़र्श पर लाना है और किसे फर्श से अर्श पर.
“चुनाव राज्य में कोई परिवर्तन नहीं लाते. वे केवल बुर्जुवा की एक सरकार के स्थान पर बुर्जुवा की दूसरी सरकार को लाने का कार्य करते हैं. जब तक बुर्जुवा शासन में रहेंगे, हमारे लोगों का शोषण और उत्पीड़न और गहन ही होता चला जायेगा. हमें एसे किसी भ्रम में नहीं रहना चाहिये कि कोई साफ सुथरा दल सत्ता में आ सकता है और वास्तव में श्रमिकों और किसानों की समस्याओं का समाधान कर सकता है.”
वास्तव में भारत को आवश्यकता है कि श्रमिक और किसान तथा शोषित और उत्पीड़ित उठ खड़े हों और बुर्जुवा की तानाशाहीपूर्ण सत्ता को उखाड़ फेंगें और इसके स्थान पर श्रमिकों और किसानों का शासन स्थापित करें. हमारा दल इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये निलन्तर कार्य कर रहा है.”
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री राजविंदर सिंह बैंस ने कहा- “भ्रामक सैन्य आपरेशन का प्रयोग बहुधा लोगों को धोखा देने और मूर्ख बनाने के लिये किया जाता है. सरकार ने भी इनका प्रयोग किया. आपरेशन ब्लू स्टार एक ऐसी ही कार्यवाही थी. उन्होंने भ्रामक प्रचार किया कि कुछ आतंकवादियों ने खूबसूरत स्वर्ण मंदिर पर कब्ज़ा कर लिया हे. उन्होंने सिख मतों की परवाह नहीं की जो कुल मतों का केवल 2 प्रतिशत हैं; चुनावी राजनीति में इनका उनके लिये कोई महत्व नहीं था. एक सम्पूर्ण समुदाय के अधिकारों के हनन को न्यायसंगत ठहराने के लिये सरकार ने समस्त प्रचार माध्यमों का प्रयोग किया.
“पंजाब के लोगों का संघर्ष का बड़ा पुराना इतिहास है. हमारे इतिहास में अनेक आक्रमणकारी भारत में लुट खसोट के इरादे से आये थे. 19वीं सदी में पंजाबियों ने सर्वप्रथम इन आक्रमणकारियों के आक्रमणों को रोक दिया था. 1956 से 1968 के मध्य पंजाबियों ने एक पंजाबी सूबे (पंजाबी भाषा बोलने वालों का एक प्रदेश) के लिये शांतिपूर्ण संघर्ष किया. सरकार ने 1961 में कराये गये सर्वेक्षण को अपनी इच्छानुसार ढालने हेतु हिंदुओं को अपनी भाषा हिंदी बताने के लिये विवश किया जबकि पंजाब में रहने वाले हिंदू पंजाबी भाषा ही बोलतेथे. यह स्थिति जम्मू कश्मीर के ही समान है जहाँ कभी भी ईमानदारी से चुनावों का आयोजन नहीं किया गया. यह सब कुछ गलत नीयत के साथ किया गया और इसका उद्देश्य हिंदुओ और सिखों को विभाजित करना था.
“पंजाबी लोग संघर्ष में अत्यन्त सक्रिय थे और हथियार रखना उनके लिये सामान्य बात थी. यह बात भारत सरकार को नापसंद थी और इसके लिये उन्हें राज्य द्वारा उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा. वे खाद्य पदार्थों की आपूर्ति रोक कर सरलता से स्वरिण मंदिर को आतंकवादियों से खाली करवा सकते थे. किन्तु वे सिखों को कुचलने के लिये एक बड़ी कार्यवाही करना चाहते थे.
“मूल मुद्दे अत्यन्त सरल हैं. इन मुद्दों को सरलता से सुलझाया जा सकता था किन्तु वे समस्याओं का समाधान करना ही नहीं चाहते थे. शांतिपूर्वक समस्याओं का समाधान करने से उनके राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति नहीं होती थी. सम्पूर्ण राजनीति ही बेईमान है. इसका परिणाम आम लोगों को भुगतना पड़ा है. किन्तु जब तक लोगों को सत्य का ज्ञान होता है, बहुत देर हो जाती है.
“एक फर्ज़ी मुठभेड़ मे एक आरोपी की हत्या कर दी गई. वे संकीर्ण उद्देश्यों के लिये स्थितिको अनुचित रंग देना चाहते थे. सभी सरकारें संकीर्ण उद्देश्यों के लिये अपने लोगों से झूठ बोलती हैं. वियतनाम पर संयुक्त राज्य अमरीका का आक्रमण इसका एक उदाहरण है.
“दस हज़ार से भी ज़्यादा लोगों की हत्याओं के लिये ज़िम्नेदार कौन है? सत्य की जानकारी होना भारत के सभी लोगों के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण है. यदि लोगों को सत्य का ज्ञान नहीं होगा तो विभिन्न स्थानों पर उन्हें बारम्बार ऐसे उत्पीड़न का शिकार होना पड़ेगा. अब वास्तविकता लोगों को समझ में आने लगी है.”
राजविंदर सिंह बैंस ने अपने समापन में दोहराया कि साम्राज्यवादी और प्रतिक्रियावादी शासक वर्ग नियमित रूप से लोगों के विरोध को कुचलने के लिये भ्रामक सैन्य कार्यवाही का प्रयोग करते हैं और इसका दोष लोगों के ही सिर पर मढ़ देते हैं. उन्होंने अपने तर्क के समर्थन में अफ्गानिस्तान और ईराक पर अमरीका के आक्रमणों के उदाहरण दिये और इनकी तुलना 30 वर्र्ष पूर्व स्वर्ण मंदिर पर हुए आक्रमण से की. उन्होंने कहा कि ऐसी कार्यवाहियों के मामले में सरकारें हमेशा यही कहती हैं कि वे ऐसी कार्यवाही करने के लिये विवश थीं, जैसा कि तत्कालीन भारत सरकार ने यह तर्क देकर किया कि उसे “सिख आतंकवादियों” द्वारा हिंदुओं का नरसंहार रोकने के लिये यह आक्रमण करने पर विवश होना पड़ा.
श्री जरनैल सिंह, जो मानवाधिकारों और 1984 में दिल्नी में मारे गये निर्दोष सिखों और उनके परिवारों के लिये न्याय हेतु अतिवादी संघर्ष में शामिल हैं, ने कहा- “मित्रों, मैं एक अत्यन्त महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा आयोजित करने के लिये लोक राज संगठन को बधाई देना चाहता हूँ. आपने मीडिया में आयोजीत परिचर्चाओं में देखा होगा कि एक प्रकार के लोग इस प्रकार की घटनाओं को भारत सरकार का अत्याचार मानते हैं जबकि एक बड़ा वर्ग ऐसी घटनाओं को आतंकवाद से निपटने के लिये आवश्यक अंग के रूप में निरूपित करता है.
“इसे ब्लू स्टार नाम क्यों दिया गया? क्योंकि अकाली और संत भिंडरावाले नीली पगड़ी पहना करते थे. तत्कालीन विदेश सचिव ने एक वक्तव्य में कहा था कि आपरेशन ब्लू स्टार ने सिखों की कमर तोड़ दी. तो वास्तव में ह आपरेशन समस्त सिख समुदायय के विरुद्ध था, मात्र कुछ आतंकवादियों के विरुद्ध नहीं.
“साम्प्रदायिक आधार पर मत बटोरने की राजनीति हर जगह की जा रही है, जैसा कि हाल ही में बदायूँ मे हुआ. आपरेशन ब्लू स्टार भी इसी राजनीति का एक अंग था. वे किसी समुदाय के सम्पूर्ण योगदान को नहीं देखते, केवल एक पक्षीय दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं.
“पंजाब को हासिल करने के लिये पंजाबियों ने अनेक वर्षों तक लंबा संघर्ष किया. 1965 के पाकिस्तान युद्ध में सिखों के योगदान के कारण ही भारत का पलड़ा भारी हो सका. लोगों का कहना था कि पैटन टैंकों को हराया नहीं जा सकता, उस समय सिख अपने शरीरों पर विस्फोटक बाँध कर टैंकों के नीचे लेट जाते थे और उनको विस्फोट कर नष्ट कर देते थे. पंजाब प्रदेश का गठन तो कर दिया गया किन्तु इसे इसके अधिकारों से वंचित कर दिया गया. इसे इसकी राजधानी चंडीगढ़ से वंचित कर दिया गया, जल का वितरण रिपेरियन कानूनों के आधार पर नहीं किया गया. अन्य प्रदेशों को वह सब कुछ मिला जो वे चाहते थे किन्तु पंजाब को वंचित कर दिया गया.
“आपातकाल के दौरान गिरफ्तार किये गये एक लाख चालीस हज़ार लोगों में से अस्सी हज़ार पंजाबी थे. आपातकाल के विरुद्ध संघर्ष में पंजाबी सबसे आगे थे. इंदिरा गाँधी आपरेशन ब्लू स्टार द्वारा इसका प्रतिशोध लेना चाहती थीं. पंजाब में ही साम्प्रदायिकता की राजनीति का बड़े पैमाने पर सरेवप्रथम प्रयोग किया गया. किसानों के लिये पानी की माँग को साम्प्रदायिक समस्या का रूप दे दिया गया. संत भिंडरावाले और अकाली मिल कर ये समस्याएँ उठा रहे थे. इंदिरा गाँधी ने तीन बार समझौतों को निरस्त कर दिया क्योंकि वह समस्या को जीवित रखकर पंजाब में साम्प्रदायिक समस्या उत्पन्न करना चाहती थीं. प्रदर्शन किसानों की माँगों के लिये थे, दूरदर्शन पर गुबानी के प्रसारण के लिये थे, रेलगाड़ियों को कुछ विशेष स्टेशनों पर रोकने इत्यादि जैसी माँगों के लिये थे. अपने नियंत्रण वाले मीडिया के प्रयोग द्वारा उन्होंने दूसरी ही तस्वीर प्रस्तुत की.
“धर्मयुद्ध मोर्चा के लोग आशीष प्राप्ति के लिये स्वर्ण मंदिर में मत्था टेक कर अपनी माँगों के समर्थन में गिरफ्तारी दिया करते थे. वे आतंकवाती नहीं थे. अगले सेना प्रमुख के रूप में मनोनीत व्यक्ति को यह पद इसलिये नहीं दिया गया क्योंकि उसने आपरेशन ब्लू स्टार के संचालन से इनकार कर दिया था.
“सेना ने दिल्ली में निर्दोष सिखों को बचाने के लिये एक भी गोली क्यों नहीं चलाई जब वे उन पर आपरेशन ब्लू स्टार में गोलियों और बमों की बौछार कर सकते थे? लगातार फर्ज़ी मुठभेड़ें की जा रही थीं. सत्य उजागर करने के लिये हमें खुली चर्चायें आयोजित करनी होंगी. दिल्ली हत्याओं के दोषी अभी भी खुलेआम घूम रहे हैं. भूल जाना किसी समस्या का समाधान नहीं है. यह तो एक बीमारी है. जो हुआ हम उसे भुला नहीं सकते.”
अपने भाषण के समापन में जरनैल सिंह ने कहा कि हमें एक ऐसी व्यवस्था बनानी होगी जहाँ कोई भी नेता या राजनीतिज्ञ साम्प्रदायिकता का प्रयोग न कर सके. मीडिया सदैव शक्तिशाली लोगों का पक्ष लेने के लिये आतुर रहती है. चुनावों के समय समस्त शक्ति चुनाव आयोग के हाथों में आ जाती है. इसी प्रकार साम्प्रदायिक हिंसा के मामलों से निपटने के लिये हमें एक सर्वशक्तिशाली समिति की आवश्यकता है. सभी धर्मों के प्रतिनिधित्व वाली एक समिति का गठन क्यों नहीं किया जा सकता? ईमानदार अधिकारियों की नियुक्ति क्यों नहीं की जा सकती?”
संजय कालोनी लोक राज समिति, न्यू संजय कैम्प समिति, संगम विहार समिति, मदनपुर खादर पुनर्वास कालोनी समिति और शशि गार्डन समिति के प्रतिनिधियों ने भी चर्चा में भाग लिया. एक समिति के प्रतिनिधि ने इंगित किया कि भारतीय राज्य हिटलर के ही तरीके अपना रहा है जिसने जर्मन राइशटैग में स्वयं ही बम रखवा की इसका आरोप साम्यवादियों पर लगा दिया था जिससे उनका नरसंहार किया जा सके. हमारा इतिहास संघर्ष करने वाले महापुरुषों से भरा पड़ा है- जैसे भगत सिंह, बहादुरशाह ज़फर आदि- किन्तु उन्हें उपनिवेशवादी शासन और वर्तमान भारतीय राज्य द्वारा आतंकवादी कहा गया. आमंत्रित वक्ताओं के भाषणों के मध्य तथा बाद में अनेक युवक व युवतियों ने अपने भावपूर्ण व विचारशील उद्गार प्रकट किये और कवितापाठ भी किया (बाक्स देखें). उनके खुले विचारों ने खूब तालियाँ बटोरीं. एक युवा वक्ता ने कहा कि सरकार मूर्ख नहीं है. वह जानती है कि दोषी कौन हैं- वे श्वेत, काला और नीला हर प्रकार का पत्र लाकर मात्र हमें भ्रमित करने का प्रयास करती है. लोग साम्प्रदायिक नहीं हैं. वे इस धरती पर सदियों से शांतिपूर्वक रह रहे थे. अंग्रेज़ों ने यहाँ आकर उन्हें विभाजित किया और उन पर शासन किया.
धीनता के पश्चात भारतीय राज्य को ब्रिटिश उपनिवेशवादी साम्प्रदायिक राज्य विरासत में मिला है. जब लोग रोज़गार और अधिकारों की माँग करते हैं तो राज्य अधिकारों के लिये हमारे संघर्ष पर अंकुश लगाने के लिये हमें विभाजित कर देता है और हम पर हिंसा आरोपित करता है. यह राज्य का तरीका है. यहाँ तक कि 1984 के दिल्ली नरसंहाक में भी सरकार ही लोगों पर गोलियाँ बरसा रही थी. पीड़ितों के पड़ोसी उनकी सहायता करने का ही प्रयास कर रहे थे. हम इस बारे में भ्रम में नहीं रह सकते- वे हमें बताने का प्रयास करते हैं कि जनता का ही एक अन्य वर्ग समस्या का कारण है, राज्य नहीं. हमें एकजुट होकर राज्य की इन योजनाओं को पराजित करना सीखना होगा.
कार्यवाही का समापन करते हुए LRS की अखल भारतीय समिति की सदस्या सुश्री सुचरिता बसु ने प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जिसके संबंध में उपस्थित श्रोताओं में से अनेक सदस्यों ने अपने सुझाव प्रस्तुत किये- और प्रस्ताव (नीचे देखें) सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया.
सुचरिता ने कहा- आज की सभा से यह निष्कर्ष निकलता है- देश के प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा राज्य का दायित्व है. प्रत्येक नागरिक के विवेक के अधिकार- अर्थात अपनी अपनी आस्थाओं का अनुसरण करने के अधिकार- की रक्षा करना राज्य का दायित्व है. जब राज्य एक विशिष्ट धार्मिक आस्था के लोगों के विरुद्ध बल प्रयोग करता है तो यह एक साम्प्रदायिक कृत्य और लोगों के विरुद्ध नृशंस अपराध है.
“आपरेशन ब्लू स्टार का लक्ष्य भावनायें भड़का कर और धार्मिक आस्थाओं के आधार पर लोगों को एक दूसरे के विरुद्ध कर पंजाब और समस्त देश के वातावरण को और भी साम्प्रदायिक बनाना था. यह लोगों की आवाज़ को दबाने के लिये राज्य द्वारा खुले आम आतंक के प्रयोग के एक काल का आरम्भ था. राष्ट्रीय अधिकारों और श्रमिकों तथा किसानों के अधिकारों के लिये पंजाबियों के राजनैतिक आंदोलन को कानून व्यवस्था की समस्या का रूप दे दिया गया.
“ऐसे अनेक तथ्य सामने आये हैं जो इंगित करते हैं कि आपरेशन ब्लू स्टार की योजना और तैयारी कई महीने पहले ही कर ली गई थी. इस घटना से बहुत पहले फरवरी 1984 में इस संदर्भ में ब्रिटिश और भारत सरकारों के मध्य पत्राचार से स्पष्ट होता है कि वे मंदिर पर आक्रमण करने की योजना बना रहे थे. हिमाचल प्रदेश में एक सैनिक शिविर के बारे में अवकाशप्राप्त सैन्य अधिकारियों के वक्तव्य हैं, जहाँ कमांडो सैनिकों के विशेष दस्ते को स्वर्ण मंदिर पर आक्रमण करने के लिये प्रशिक्षण देने हेतु इसका एक प्रारूप बनाया गया था.
“इंदिरा गाँधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने इस कार्यवाही के वास्तविक उद्देश्यों और इसकी पूर्व नियोजित प्रकृति, सेना की तैनाती के विशाल पैमाने और मारे गये लोगों की संख्या के संबंध में जानबूझ कर लोगों से झूठ बोला. उसने लोगों से झूठ बोला कि देश को सिख आतंकबाद और धार्मिक उन्माद से खतरा था और स्वर्ण मंदिर पर एक सैन्य आक्रमण के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं था.
“स्वाधीन भारत में किसी न किसी समुदाय के विरुद्ध साम्प्रदायिक हिंसा और राज्य संजालित आतंकवाद की बारम्बार घटनायें दिखाती हैं कि फूट डालो और शासन करो का उपनिवेशवादी तरीका आज भी जारी है. यहाँ तक कि कानून और अपराध प्रक्रिया संहिता भी उपनिवेशवादी काल के ही समान हैं, जो अधिकांश भारतीय नागरिकों से अपराधियों के समान व्यवहार करते हैं. लोगों के नाम पर शासन करने वाले दल राज्य की सत्ता का प्रयोग लोगों के ही विरुद्ध करते हैं और हर प्रकार का अपराध कर साफ बच निकलते हैं.
“LRS का विश्वास है कि आपरेशन ब्लू स्टार के बारे में सत्य स्थापित करना दोषियों को दंड देने और भविष्य में ऐसे नृशंस अपराधों की पुनरावृत्ति रोकने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा. किन्तु सत्य स्थापित करने के लिये हम सत्ताधारी दल अथवा वर्तमान राज्य की किसी भी एजेंसी पर निर्भर नहीं रह सकते. इसका कारण यह है कि वर्तमान राज्य उपनिवेशवादी और साम्प्रदायिक नींव पर आधारित है. यह हमारे लोगों के साथ शत्रुओं के समान व्यवहार करता है, ठीक वैसे ही जैसे कि उपनिवेशवादी राज किया करता था.
“न्याय के लिये हम किसी अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी पर भी निर्भर नहीं रह सकते. इसका कारण यह है कि वर्तमान में वैश्विक मामलों में लोगों के अधिकारों के हनन को तर्कसंगत ठहराने के लिये प्रजातिवाद, साम्प्रदायिकता और ग़लत जानकारी का प्रयोग करने वाले साम्राज्यवादी राष्ट्रों का ही दबदबा है.
“केवल हम सबका एकजुट संघर्ष ही सत्य को उजागर कर सकता है और हमें एक समाधान की ओर ले जा सकता है. यह मानते हुए कि एक पर हुआ आक्रमण हम सब पर आक्रमण है, हमें सभी नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा करनी होगी.”
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प्रस्ताव
आपरेशन ब्लू स्टार, जिसमें जून 1984 में भारतीय सेना द्वारा हज़ारों निर्दोष लोग मारे गये और स्वर्ण मंदिर की पवित्रता भंग की गई, एक पूर्व नियोजित, राज्य द्वारा संचालित साम्प्रदायिक अपराध था. यह सत्ता में बैठे लोगों द्वारा हमारे लोगों और हमारी एकता पर किया गया एक नृशंस आक्रमण था, जिसमें एक धार्मिक समुदाय के लोगों और उनके पवित्रतम मंदिर को निशाना बनाया गया. भारतीय समाज के प्रत्येक सदस्य को विवेक का अधिकार है, अर्थात किसी भी धर्म में आस्था रखने और उसका अनुसरण करने अथवा किसी भी धर्म में आस्था न रखने का अधिकार है. राज्य को किसी भी स्त्री अथवा पुरुष की आस्था के आधार पर उसके साथ भेदभाव करने का कोई अधिकार नहीं है. उसे किसी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह के धार्मिक मामलों में दखल देने काकोई अधिकार नहीं है. उसे किसी भी धार्मिक स्थल पर आक्रमण करने का कोई अधिकार नहीं है. विवेक के अधिकार में समाज अथवा राज्य के बारे में अपनी राय प्रकट करने का अधिकार भी शामिल है. अतः किसी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह पर इसलिये आक्रमण नहीं किया जा सकता कि उसके द्वारा प्रकट दृष्टिकोण सत्ता में बैठे लोगों के दृष्टिकोण से भिन्न है.
इन तथ्यों और सिद्धांतों के आधार पर हम, 8 जून, 2014 को लोक राज संगठन द्वारा आयोजित सभा में भाग लेने वाले, संकल्प करते हैं
- आपरेशन ब्लू स्टार के बारे में सत्य स्थापित करने के इस संघर्ष को आगे बढ़ायेंगे;
- प्रत्येक भारतीय के विवेक के अधिकार की रक्षा करेंगे और किसी भी व्यक्ति के विवेक के अधिकार पर आक्रमण को हम सब पर और हमारी एकता पर होने वाला आक्रमण मान कर उसका विरोध करेंगे;
- एक ऐसे राज्य के सृजन के लिये मिल कर प्रयास करेंगे जो सभी के अधिकारों का सम्मान व सुरक्षा करेगा, जिसमें विवेक का अधिकार तथा अन्य सभी मानवाधिकार, प्रजातांत्रिक व राष्ट्रीय अधिकार शामिल हैं.