बड़े ही गहरे दुःख और शोक से , लोक राज संगठन की सर्व हिन्द समिति की ओर से हम सूचित करते है, की संगठन के एक बहुत ही सन्माननीय और सबके प्यारे कार्यकर्ता श्री. टी एस संकरन का , १५ दिसंबर २०१२ को चेन्नई में ८६ वर्ष की उम्र में देहांत हुआ. केंद्र सरकार के श्रम मंत्रालय के वे भूतपूर्व अपर सचिव थे एवं तमिलनाडू सरकार के भूतपूर्व श्रम आयुक्त तथा राजस्व बोर्ड के भूतपूर्व प्रथम सभासद थे. लोक राज संगठन के वे प्रथम अध्यक्ष थे और देहांत के समय मानद सभापति थे.
१९९३ में कमिटी फॉर पीपल्स एम्पोवेर्मेंट की स्थापना में , जो लोक राज संगठन का पूर्ववर्ती संगठन था, और उसके उपरांत हम सभीको हमेशा उत्साह देने में वे हमेशा ही अग्रिम रहे. लोगों के इस हस्ती की याद को हम सर्व हिन्द समिति की ओर से सलाम करते है. कमिटी फॉर पीपल्स एम्पोवेर्मेंट का १९९९ में लोक राज संगठन में परिवर्तन करने में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और फिर प्रथम अध्यक्ष के रूप में उन्होंने अग्रिम मोर्चेपर रहकर अगुवाई दी. उनकी प्यारी पत्नी एवं परिवार के लिए भी हमारे संगठन जैसे ही यह अपूरणीय क्षति है. उनके परिवारजनों को हम सर्व हिन्द समिति की ओर से गहरी सहानुभूति प्रकट करते है.
तमिलनाडू के तिरुनलवेली जिले में तमिरपरानी नदी के किनारे पर तरुवाई गाँव के एक विद्वान परिवार में ४ जनवरी, १९२६ को उनका जन्म हुआ था. श्री. संकरण को उनके जन्म स्थान से, उनकी स्थानिक भाषा एवं स्थानिक संस्कृति से बेहद प्यार था. साथ साथ हिन्दुस्थान के सभी इलाकों के आम लोगों के विकास में भी उन्हें रूचि तथा बेहद समर्पित भावना थी. जिस नदी से वे प्यार करते थे उसीके पानी जैसा उनका दिल विशुद्ध और उत्साहपूर्ण था. सभी लोगों के सुख और सुरक्षा की सुनिस्चिती हो ऐसे हिदुस्थान का निर्माण , यही उनके जीवन की अभिलाषा थी और उस दिशा में वे अटल रहकर अनवरत कार्य करते रहे. वे उस देहात के पहले आय ए एस अफसर उनके सभी देहातियों के ही नहीं बल्कि उस पूरे इलाके में ही सबको प्यारे थे.
एक बहुत ऊँचे ओहदे के सरकारी अफसर से साधारणतः जिस अकडपन की अपेक्षा की जाती है वह उनमे बिलकुल ही नहीं था. वे बेहद विनम्र, सहानुभूतिशील, ज्ञान के प्यासे एवं लोगों के हित के बारे में बेहद समर्पित थे. इसीलिए अलग अलग प्रदेशों से, संगठनों से, धर्मों से, तथा अलग अलग राजनितिक सम्बद्धता के लोग उनके घर उनकी सलाह लेने अक्सर आते थे. और उन लोगों की आशा कभी भंग नहीं हुई. अगर उनका अभियान न्यायसंगत हो तो उन्हें हमेशा श्री.संकरन ने सलाह दी और हिमायत भी की. फिर सामान हक़ के लिए संघर्ष करनेवाली महिलाएं हो , या सामाजिक सुरक्षा के लिए संघर्षरत मजदूर हो, किसान हो, मछुवारे हो, दूकानदार हो या शिक्षक को सभी का यही अनुभव था. उनकी तेज स्मरण शक्ति एवं चातुर्यपूर्ण बुद्धि बहुत मशहूर थी और सभी तबके के लोगों के बीच लोकप्रिय होने की वजह भी थी.
इस महान व्यक्ति को सबसे बेहेतरीन श्रद्धांजलि यही होगी की हम उनके शब्दों को याद करे जो उनके कार्य से हमेशा ही मेल खाते थे.
कमिटी फॉर पीपल्स एम्पोवेर्मेंट की स्थापना बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करने के बाद के अशांत एवं हिन्दुस्थान की राजनीती के बड़े पैमाने पर गुनाह्गारिकरण की हालातों में हुई थी. उस वक्त अपने अनोखे अंदाज में उन्होंने घोषित किया था की, “ मौजूदा राजनितिक प्रक्रिया अनेकानेक तरीकों से बहुसंख्या में आम जनता को राजनीती से दरकिनार कराती है ऐसा कमिटी फॉर पीपल्स एम्पोवेर्मेंट का मानना है. सभी लोगों के भविष्य से संबधित निर्णय लेने के सर्वाधिकार विशेषाधिकार प्राप्त मुट्ठीभर खुदगर्ज लोगों के हाथों में केन्द्रित है. कमिटी फॉर पीपल्स एम्पोवेर्मेंट का मानना है की अपने लोगों ने खुद का भविष्य खुद के हाथों में लेना चाहिए और वे यह करने के काबिल है. ऐसा करने से ही अपने देश की दिशा बदल सकती है और वह दुनियाभर में एक महान तथा प्रबुद्ध देश कहलायेगा. लोगों के हाथों में सत्ता देने के लिए राजनितिक व्यवस्था में जो बदलाव आवश्यक है उन्हें अमल में लाना हमारा कार्य होना चाहिए ”.
श्री. संकरन एक महान राजनितिक विचारक थे. मानव अधिकार एवं हिन्दुस्थान के जनतांत्रिक नवीकरण की चर्चा में उन्होंने महत्वपूर्ण तथा निर्णायक योगदान दिया. लोक राज संगठन ने २००२ में “हकों के विषय पर सर्व हिन्द विचारगोष्ठी आयोजित की थी, उसमे अपनी छोटीसी मगर पैनी टिप्पणी में उन्होंने बताया था की हिन्दुस्थान के जनतांत्रिक नवीकरण के लिए लोक राज संगठन किस तरह कार्यरत है. हिन्दुस्थान में जो संविधान है उसके प्रत्यक्ष अनुभव के बारे में लोक राज संगठन ने सर्व हिन्द विचारगोष्ठी आयोजित की थी उसका जिक्र करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया था की हकों पर विचारगोष्ठी भी उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. हकों का सवाल तथा उन हकों की सुनिस्चिती के लिए आवश्यक तंत्र प्रस्थापित करना यह संविधान के केंद्र में होना आवश्यक है. यह सिर्फ कुछ विद्वानों के बीच चर्चा का विषय नहीं है बल्कि दुनियाभर में तथा हिन्दुस्थान में जारी संघर्ष के केंद्र में है. उस विचारगोष्ठी में शामिल सभीसे उन्होंने आवाहन किया की व्यक्तिगत हक़ तथा सामूहिक हकों के बारे में एकीकृत दृष्टिकोण विकसित करे.
जब १९९९ में लोक राज संगठन की स्थापना हुई तब उन्हें प्रथम सर्व हिन्द अध्यक्ष चुना गया और २००५ में तीसरे कन्वेंशन तक वे अध्यक्ष बने रहे , और उसके बाद वे मानद सभापति रहे.
राजनितिक तौर पर दरकिनार किये आम जनता की शक्तिशाली आवाज बतौर लोक राज संगठन को बनाने के लिए उन्होंने जीवन के बाद के वर्षों में अपने कार्य का मुख्य उद्देश्य बनाया. महिलाएं तथा युवा बड़ी तादाद में लोक राज संगठन के कार्य से जुड़ने के लिए आगे आ रहे है इससे उन्हें विशेष ख़ुशी मिलती थी. लोक राज संगठन की पांचवी सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने जो कहाँ उसका उपस्थितों ने तालियों की गडगडाहट से अभिवादन किया. उन्होने कहाँ, “ इतनी बड़ी तादाद में युवाओं को देखकर बेहद ख़ुशी होती है. कल की चर्चा से मुझे सुब्रमण्यम भारती की पंक्तियाँ याद आती है. उन्होंने कहा था कि वह अठारह भाषाओँ में बात कराती है , मगर विचार एक ही है. कलकी चर्चा में भी एक विचार ही प्रकट हो रहा था. जनसंखिकीय तौर पर हम पूरे हिन्दुस्थान का प्रतिक है. हिन्दुस्थान का भविष्य अपने हाथों में है. यह विचार आता है तब मुझे बड़ा गर्व महसूस होता है. कल जो रिपोर्ट पेश किया गया और उसपर हुई चर्चा में जो विचार पेश किये गए वह सुनकर मुझे यह स्पष्ट हुआ की हमारे बीच कितनी एकता है. अपने इस महान देश को और ऊँची महानता की ओर हमें ले जाना है इस आदर्श से हमारे बीच जो एकता है वही हमें बांध के रखती है. हर जगहपर लोक राज संगठन का कोई संगठन होना चाहिए. सत्तापर जो बैठे है उन्हें पता चले की लोग सत्ता हाथों में लेने के लिए तैय्यार हो रहे है. इस सभासे हम यही विचार लेके जाय कि अपना मुकद्दर अपने हाथों में हो और वह दिन दूर नहीं जब हमारी तक़दीर हमारी मुट्ठी में होगी.”
हिन्दुस्थान को आमूल राजनितिक परिवर्तन की जरूरत है यह उनका निडर तर्क अब बढती तादाद में राजनितिक कार्यकर्ता मान रहे है. चुनावी सुधारों पर लिखे एक लेख में उन्होंने कहाँ था कि, “संसदीय जनतंत्र की मौजूदा व्यवस्था यह सबसे बढ़िया है इस धरना को गौरसे परखना आवश्यक है. पार्टी शासन प्रणाली की मौजूदा व्यवस्था से आखिर शासन प्रधानमंत्री अथवा मुख्यमंत्री नित मंत्रिमंडल के हाथों में केन्द्रित होता है. ये हस्तियाँ ज्यादातर उन पार्टियों या गठबंधन के नेता होते है जिन्हें संसद या विधानमंडल में बहुमत प्राप्त हो. इस तरह की शासन प्रणाली के गत ५० वर्षों के अनुभवसे लोक राज संगठनने इस मसले पर बड़े गंभीरतासे सोचा है और इस नतीजे पर पहुंचे है की अगर आखिर लोग ही सर्वोच्च सत्ताधीश होना आवश्यक है तो राजनितिक पार्टियों को सत्ता नहीं सौपी जानी चाहिए. पार्टियों की भूमिका, लोगों को राजनितिक प्रक्रिया के बारे में सिखाना और खुदके जो राजनितिक विचार है उन्हें लोगों के सामने रखना, यहितक सिमित होनी चाहिए. अपने देश के लोगों को देश की सत्ता संभलने के काबिल बनाना यही राजनितिक पार्टियों का प्रमुख कार्य है. इसीलिए लोक राज संगठन की राय में लोग असली तौर पर सत्ता में तभी आ सकते है, जब निर्वाचन क्षेत्र से किस उम्मीदवार ने चुनाव लड़ना चाहिए इसका चयन लोग करेंगे और चुनाव के दौरान जो वादे उसने किये उसके अनुसार उसने काम नहीं किया तो उसे वापिस बुलाने का हक़ भी लोगों को होगा. और अंत में अपने देश में किस तरह के कानून हो इसे तय करने का अंतिम अधिकार लोगों को ही हो सकता है और इसीलिए अपने चुने हुए प्रतिनिधि के जरिये नए कानून प्रस्तावित करनेका अधिकार भी लोगों को होना चाहिए.”
श्री.इन्द्रजीत गुप्ता के नेतृत्व में १९९८ में चुनावी प्रक्रिया में सुधारों के विषय पर एक समिति गठित की गयी थी.उस समितिको लिखे पत्र में श्री.संकरन ने कहा था कि,“ पिछड़ेपन से जुडी हुइ सभी समस्याओं को दूर करने के लिए पश्चिमी दुनिया के विद्वान हमेशा बहु पक्षीय जनतंत्र तथा बाजार पर आधारित अर्थव्यवस्था यही इलाज बताते है. हम अपने आप को जनतांत्रिक गणराज्य जो कि स्वायत्त, धर्मनिरपेक्ष, और समाजवादी है ऐसा कहलाते है और अपने देश में राजनितिक पार्टियों की कोई कमी नहीं है. मगर जबतक अपने देश में राजनितिक पार्टियाँ केवल राज्या की सत्ता पर कब्ज़ा करनेके लिए ही होगी तबतक उसकी वेदी पर किसीभी सिद्धांत की बलि चढ़ाई जाएगी. और जबतक शासन की प्रणाली सभी कार्यकारी अधिकार प्रधानमंत्री के हाथों में ( और जब वह चाहता है तब उसके मंत्रिमंडल के हाथों में ) केन्द्रित करेगी तबतक यह शासन प्रणाली सही मायने में जनतांत्रिक हो सकती है इसकी कोई संभावना नहीं.”
श्रमिकों के हक़ तथा उनके काम के बदतर हालातों के बारेमे भी उन्हें बेहद रूचि एवं जूनून था. भारत सरकार के योजना आयोग ने सामाजिक सुरक्षा के बारे में एक कार्यकारी ग्रुप बनाया था जिसके वे सदस्य थे. माननीय जस्टिस कृष्णा अय्यर के साथ मिलकर उन्होंने निर्माण मजदूरों के बारे में एक महत्वपूर्ण कानून बनाने में पहल की थी . वह कानून निर्माण मजदूरों को ज्यादा सामाजिक सुरक्षा देता है. दूसरे क्षेत्र के मजदूरों के लिए इसी तरह के कानून बनाने के बारे में वह कानून एक आदर्श बन गया है. १९९३ में मजदूर एकता कमिटी के चौथे महाधिवेशन में मुख्य अतिथि के रूप में उन्होंने संबोधित किया था और उसी वक्त चेतावनी दी थी कि कांग्रेस सरकार की आर्थिक सुधारों की नयी निति आनेवाले दिनों में श्रमिकों पर कहर बरपेगी.
श्री.संकरन के गुजर जाने से हमारे संगठन के काम में एक बहुत बड़ी क्षति हुई है. उनकी बुद्धिमत्ता,विवेक, ज्ञान,परिपक्वता,महत्ता एवं संवेदनशीलता हम सभी के लिए हमेशा ही प्रेरणा का स्त्रोत रहे है. हिन्दुस्थान के लोगों के हाथों में सत्ता लानेका जो काम अधुरा रहा है जिसका उन्हों ने हमेशा सपना देखा था, उस दिशा में अनथक और भी ज्यादा दम लगाकर कार्यरत रहना यही कसम हम लोक राज संगठन की सर्व हिन्द समिति की ओर से लेते है. यही उन्हें सबसे बढ़िया श्रद्धांजलि होगी.
इसी पवित्र संकल्प के साथ हमारे स्वप्नदर्शी नेता की याद को हम सलाम करते है.