दोस्तो,
आज हम यहां इसीलिये जमा हुये है क्योंकि आज के ही दिन बीस साल पहले, फैजाबाद/अयोध्या में 400 साल पुरानी एक ऐतिहासिक इमारत गिरायी गयी थी। इसके बाद में मुंबई, सूरत व अन्य शहरों में मुसलमान लोगों के ऊपर घोर अत्याचार किया गया था। उनके घरों में आग लगाई गयी थी और हजारों बेगुनाह लोगों को मौत के घाट उतारा गया था।
लोगों ने बचाव के अनेक प्रयास किये परन्तु न केवल प्रशासन ने उनकी मदद नहीं की बल्कि पुलिस ने कातिलों की तरफदारी करी। लोगों ने अपने को बहुत ही शक्तिहीन महसूस किया। उन्होंने महसूस किया कि यह व्यवस्था उनकी सुरक्षा एवं खुशहाली के लिये नहीं चलाई जा रही है।
हम में से बहुत से लोग एक महीने पहले भी साथ आये थे। तब हमने एक और नरसंहार के पीड़ितो को याद किया था। यह एक उदाहरण है जब पंजाबियों के द्वारा अपने राष्ट्रीय अधिकार के एक राजनीतिक मुद्दे को कानून व व्यवस्था का मुद्दा बनाया गया था। 1984 में इंदिरा गांधी के कतल के बाद दिल्ली में दिन दहाड़े हजारों सिखों को मौत के घाट उतार दिया गया था। 1 और 2 नवम्बर 1984 को दिल्ली के अंदर हर एक मिनट में एक सिख मारा गया था। हर जगह लोगों ने अपने बचाव की कोशिश की थी पर अधिकांश जगहों पर, पुलिस ने उन्हें निहत्था किया और कर्फ्यू लगा कर उन्हे इकट्ठा नहीं होने दिया, जबकि कातिलों को खुलेआम घूमने की आजादी थीे। तब भी लोग बेबस थे।
हमारे नज़दीक ही राज्यसभा में एक बड़ी चर्चा चल रही है। देश में मल्टीब्रांड खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी को अनुमति मिलनी चाहिये कि नहीं। कल और परसों लोकसभा में बहस चली और इसे पारित किया गया। सत्ताधारी पक्ष और विपक्ष ने अपने अपने तर्क दिये हैं। परन्तु लोगों की क्या सोच है, यह पूंछने के कोई कोशिश नहीं की जा रही है। मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था, लोगों को फैसले लेने की प्रक्रिया से दूर रखने का काम करती है। फिर एक बार लोग बहुत ही बेबस और शक्तिहीन महसूस कर रहे हैं।
साम्प्रदायिक हिंसा और आर्थिक नीति का संबंध ध्यान देने योग्य है। 1984 में जब राज्यसत्ता में बैठे लोगों ने सिखों का कत्लेआम आयोजित था, तब अपने देश के बड़े पूंजीपति घरानों ने फैसला लिया था कि अर्थव्यवस्था में गहरी बदल लाई जायेगी जिससे वे विश्वस्तरीय खिलाड़ी बनने सकेंगे।
नब्बे के दशक की शुरूवात में, नयी आर्थिक नीति के साथ अर्थव्यवस्था में और बड़े परिवर्तन लाये गये। उस वक्त हिन्दोस्तानी अर्थव्यवस्था में विदेशी पूंजी के लिये भारी छूट दीं गयी थी ताकि बड़े पूंजीपति घराने विदेशी पूंजीपतियों के साथ मिल कर देश के संसाधनों और श्रम से खूब पैसा कमा सकें। बाबरी मस्जिद का विध्वंस उसी वक्त किया गया और प्रस्थापित राजनीतिक पार्टियों ने पूरे देश में मुसलमानों के खिलाफ एक विशैला माहौल बना दिया था जिसके बाद राज्य की निगरानी में मुसलमानों को निशाना बनाया गया।
2002 में भी अर्थव्यवस्था में आर्थिक नीति के दूसरे चरण के सुधारों को लाया गया और गुजरात में मुसलमानों को निशाना बनाया गया।
अर्थव्यवस्था के इन सभी परिवर्तनों से लोगों के ऊपर भारी बोझ पड़ा। मज़दूरों का शोषण बढ़ा है, लोग 10 से 12 घंटे काम करने के लिये मजबूर हैं। किसानों को खून पसीने की मेहनत के बाद भी दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती है। आर्थिक सुधारों के जरिये इन हमलों का लोग विरोध करते आये हैं। लोगों की एकता को तोड़ने और उनके विरोध को गुमराह करने के लिये साम्प्रदायिक हिंसा हिन्दोस्तानी राज्य का एक पसंदीदा तरीका साबित हुआ है।
जिन्दगी का अनुभव दिखाता है कि साम्प्रदायिक हिंसा के पीछे बड़ी संसदीय राजनीतिक पार्टियां और राज्य के तंत्र होते हैं। इन अपराधी हरकतों के लिये जिम्मेदार लोगों को प्रशासन कभी सज़ा नहीं देता है। लोगों के दबाव में सरकार कुछ आधे अधूरे कदम लेती है परन्तु सिर्फ मुद्दे को टालने के लिये। बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद बनाया लिबरहेन आयोग ने अपनी जांच कर के रिपोर्ट पेश करने में 17 साल लगाये और सरकार ने इसकी सिफारिशों को लागू करने की भी जरूरत नहीं समझी है। 1984 के कातिलों और आयोजकों को भी, एक नहीं तो दूसरी तरह, बचाया गया है। इसीलिये यह बहुत जरूरी है कि गुनहगारों को सज़ा होने के लिये हम लोगों का दबाव बनायें।
राज्य लोगों में फूट डाल कर मुट्ठिभर लोगों के हित में काम करता है। आज का यह प्रदर्शन बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें जात, धर्म आदि से परे हो कर लोग एक साथ आये हैं और एक आवाज में गुनहगारों को सज़ा देने की मांग कर रहे हैं।
हमारा अनुभव दिखाता है कि यह व्यवस्था लोगों को सत्ता से दूर रखने का साधन है। लोगों को निशाना बनाने वाले, राज्य की संस्थाओं और कानूनों के सहारे बच निकलते हैं। हमें अपने देश का नवनिर्माण करने की जरूरत है ताकि सत्ता लोगों के हाथों में हो। तभी हिन्दोस्तान के सभी राष्ट्रों और लोगों के अधिकारों की रक्षा हो सकती है, सभी की रोजीरोटी सुनिश्चित हो सकती है और लोगों के खिलाफ गुनाह करने वालों को तुरंत कड़ी सज़ा मिल सकती है ताकि कोई ऐसे गुनाह करने की जुर्रत न कर सके।
चलो एकजुट हो कर मांग करें कि गुनहगारों को सजा मिलनी ही चाहिये।