27 नवम्बर, 2012 को दिल्ली श्रमिक संगठन की अगुवाई में, दिल्ली की विभिन्न बस्तियों में रहने वाले मजदूरों और महिलाओं ने सैकड़ों की संख्या में, ‘आवास के अधिकार’ के लिए रामलीला मैदान से संसद भवन तक रैली निकाली। रैली जंतर-मंतर पर पहुंचने के बाद, धरना में बदल गई।
धरना का संचालन श्री रामेन्दर ने किया।
ध्यान रहे कि सरकार ने 2014 तक हिन्दोस्तान को झुग्गी मुक्त करने की घोषणा की है। ऐसी घोषणाएं, झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले मजदूरों को घर का एक सपना दिखाती हैं और दूसरी ओर शहरी लोगों के मन में साफ-सुथरा शहर बन जाने की आशा पैदा करती हैं।
हर चुनाव के पहले सरकार झुग्गी में रहने वाले लोगों के मन में, इस सपने को जिंदा करती है कि ‘अमानवीय हालतों में जीने से मुक्ति मिलेगी’। ऐसा विगत कई दशकों से चल रहा है।
दिल्ली की नई स्लम नीति में झुग्गी-बस्तियों के पुनर्वास के लिए योग्यता के जो आधार तय किये हैं, उसके अनुसार 100 में केवल 10 या 15 परिवारों का ही पुनर्वास संभव है। सरकार चाहती है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को योग्यता सूची से बाहर कर दिया जाये।
दिल्ली विकास प्राधिकरण (डी.डी.ए.) और दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड, जो पुनर्वास करने का काम कर रही है, के अलग-अलग मापदंड हैं। डी.डी.ए. ‘इन सीटू’ योजना के तहत बहुमंजिली इमारतें बनाने के पक्ष में है तथा दिल्ली सरकार चार मंजिला इमारतें शहर के बाहरी हिस्से में बना रही है। जबकि दिल्ली के मास्टर प्लान 2021 में यह स्पष्ट लिखा है कि प्राथमिकता के आधार पर लोग जहां बसे हैं वहीं बसाओ।
दक्षिणी दिल्ली स्थित, न्यू संजय कैंप से आये रामजीत ने कहा कि, उनकी बस्ती को 5 फरवरी, 2009 में उच्च न्यायालय के आदेश पर, पीडब्ल्यूडी ने तोड़ा था। 11 फरवरी, 2010 को उच्च न्यायालय ने उजाड़े गये परिवारों के पुनर्वास का आदेश दिया। लेकिन आज तक ये सभी परिवार, कभी मंत्रियों के यहां तो कभी सरकार के नुमाइंदों, अफसरों के आगे-पीछे घूमते रहते हैं, लेकिन आवास का अधिकार आज तक नहीं मिला है।
लोक राज संगठन के दिल्ली सचिव, बिरजू नायक ने कहा कि, हम नारा लगाते हैं कि, ‘जो सरकार निकम्मी है, वह सरकार बदलनी है’ – सच है कि हम सरकार बदल सकते हैं, ताज बदल सकते हैं, लेकिन यह हिन्दोस्तान के लोगों का दुर्भाग्य है कि हम खुद अपना भविष्य नहीं बदल सकते हैं। हमें राजनीति में और फैसले लेने के निर्णय से दूर रखे जाने को चुनौती देनी होगी और खुद को राजनीति के केन्द्र में स्थापित करना होगा। हमारा संघर्ष वोट बैंक बने रहने का नहीं होना चाहिये, बल्कि खुद को सत्ता के केन्द्र में लाने का संघर्ष होना चाहिए। हमें हरेक बस्ती में लोक राज समितियों की स्थापना करनी होगी। हमें कांग्रेस-भाजपा सहित अन्य राजनीति के मुकाबले, हमें खुद अपनी समितियों के ज़रिये चुनाव में, खड़ा होना होगा।
धरने को संबोधित करने वाले वक्ताओं में थे – अरविंद अंजुम (जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी), इंदु प्रकाश, राजेन्द्र और मो. अकबर (विकासपुरी), पूरण (शालीमार बाग), उत्तम (माडल टाउन), मिहिलाल (पश्चिम विहार), सूर्यवंशी और सर्वेश (सुल्तानपुरी), लक्ष्मी (आर.के.पुरम), बैजनाथ (नारायणा), हरीश गौतम (कीर्तिनगर), निरंजन (मायापुरी), पालादेवी (हस्तशाल), रामदास (पंजाबी बाग)।