प्रति,
प्रधानमंत्री
डॉ. मनमोहन सिंह
७, रेसकोर्स रोड, नई दिल्ली

महोदय,

विषय: नवम्बर १९८४ का नरसंहार – गुनाहगारों को सजा मिले ताकि सांप्रदायिक हिंसा पर रोक लगे एवं भविष्य सुरक्षित हो

१९८४ में जो सिख्खों का नरसंहार हुआ उससे अपने देश के धर्मनिरपेक्षता तथा जनतंत्र एवं कानून के राज पर सवाल उठे है. हम बेहद दुःख तथा गुस्से की भावना से आपको, सरकार का मुखिया होने के नाते, यह आवेदन लिख रहे है. उस हत्याकांड को २८ वर्ष पूरे हुए है, फिर भी आज तक उस हत्याकांड के मुख्य आयोजकों पर मुक़द्दमा चलाकर उन्हें सजा होना तो दूर, बल्कि उन्हें आरोपियों के रूप में पहचाना भी नहीं गया है. क्या हम आम लोगों का, हमारे चुने हुए प्रतिनिधियों पर कोई नियंत्रण है, जब वे लोगों कि रक्षा करने के उनके राज धर्म का खुलेआम उल्लंघन करते हैं? क्या सरकारी कर्मचारियों पर हमारा कोई नियंत्रण है, जब जिस पुलिस पर हमारी सुरक्षा कि जिम्मेदारी है, वही मुँह मोड़ ले और उल्टा खूनियों तथा बलात्कारियों की रखवाली करे? क्या अपने देश की कानून व न्यायव्यवस्था पर हमारा कोई नियंत्रण है, जिसने लगातार हमें न्याय देने से इन्कार किया है और सत्ताधारी राजनितिक पार्टी के राजनितिक हित के मुताबिक अपने आप को ढाला है?

काफी सोचने के बाद हम इस नतीजे पर पहुँचे है कि १९८४ में ७००० से ज्यादा सिख्खों की हत्या करने वाले गुनाहगारों को अगर सजा दी जाती, और उससे उचित सबक सीखे जाते, तो २००२ के गुजरात के दंगे न होते, ओडिशा में ईसाईयों की हत्या नहीं होती, और हाल ही में असम में जो हत्याकांड हुआ, वह नहीं होता. मगर सजा दिलाना तो दूर, वास्तव में १९८४ के हत्याकांड के प्रमुख आयोजकों को मिनिस्टर बनाया गया, एवं उस हत्याकांड में सक्रीय योगदान देने वाले और बाद के गत २८ वर्षों में न्याय के रास्ते में रोढा खड़ा करने वाले पुलिस तथा प्रशासन के उच्चाधिकारियों को सम्मान तथा पदोन्नती से पुरस्कृत किया गया. २००५ में नानावटी रिपोर्ट देखकर आपने शर्म से अपना सिर झुकाया था और यह आश्वासन दिया था कि आरोपियों के खिलाफ कड़े कदम उठाये जायेंगे. तबसे ७ वर्ष बीत गए मगर आरोपियों के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई हमें दिखाई नहीं देती. इसीलिए, इस आवेदन पर अपने दस्तख़त करने वाले, हम, आपसे माँग करते है की –

1. बेकसूर नागरिकों की हत्या के लिए जिम्मेदार गुनाहगारों को सजा सुनिश्चित हो. उसके लिए यह आवश्यक है कि उन सभी पुलिस फाईलों को फिर से खोला जाये एवं पुनः जाँच पड़ताल की जाये, जिन फाईलों को पुलिस ने बंद कर दिया है. और उन सभी मुकद्दमों को फिर से चलाया जाये जिनमें गलत तरीके से पुलिस खोजबीन की वजह से आरोपियों को रिहा कर दिया गया है, या इस बहाने से कि प्रत्यक्षदर्शी पेश नहीं किये गये.
2. एक विशेष जाँच टीम, जिसमें दिल्ली पुलिस के दायरे के बाहर के अधिकारी हों, इन सभी मुकद्दमों की फिर से जाँच पड़ताल करे और इस जाँच की निगरानी सर्वोच्च न्यायालय करे.
3. मुक़द्दमों को विशेष शीघ्रपथ न्यायालय में चलाया जाये और एक विशेष पथक द्वारा सर्वोच्च न्यायालय उसकी कार्यवाईयों पर निगरानी रखे.
4. जाँच पड़ताल का दायरा बढाया जाये ताकि दूसरे सभी राज्यों में भी जाँच की जाये जिनमें नवंबर १९८४ में सिख्खों का कत्लेआम किया गया था.
5. सांप्रदायिक तथा फिरकापरस्त हिंसा के साथ निपटने के लिये एक नया कानून तुरंत बनाया जाये. मानवी इतिहास में सबसे बड़े सांप्रदायिक हत्याकांड के साथ अपने देश के बँटवारे के ६५ वर्ष बाद, १९८४ में सिख्खों के हत्याकांड के २८ वर्ष बाद, और आपकी ही सरकार द्वारा ८ वर्ष पहले इस तरह के कानून बनाने की जरूरत मानने के बावजूद, इस दिशा में कुछ नहीं होना दुःख की बात है. इस तरह के हत्याकांड की भविष्य में रोकथाम में आपकी सरकार की रुची, कितनी खरी है, इसपर सवाल उठ रहा है.
6. गुनाहगारों को सजा दिलाने के संघर्ष में लगे लोगों ने, जिनमें कई ज्ञानी विधिद्न्य भी शामिल है, उन्होंने कानूनों के कुछ मसौदे तैयार किये हैं. वे माँग उठा रहे हैं कि कानून में आलाकमान की जिम्मेदारी को भी शामिल किया जाये. नागरिकों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार सत्तासीन तथा अधिकारियों को गुनह्गार करार दिया जाय और जबाबदेह माना जाय, अगर वे नागरिकों की सुरक्षा करने में नाकामयाब होते हों.
हमारी माँगे अपने पूरे देश के सभी न्यायप्रिय लोगों के जमीर को दर्शाती हैं. हमारी यह अपेक्षा है की, इस देश का प्रधानमंत्री होने के नाते, आप खुद का राजधर्म निभाने के लिए वे सारे कदम उठाएं जिनकी हम माँग कर रहे हैं, ताकि नवंबर १९८४ जैसी दुखद घटनाएँ फिर अपने देश में कभी न हों.

इस आवेदन पर दस्तखत करनेवालों की सूची
1. जस्टिस वी. आर. कृष्ण अय्यर
2. टी. एस. संकरन, निवृत्त आई. ए. एस. अधिकारी
3. जस्टिस होस्बेट सुरेश
4. फली नरीमन
5. जस्टिस अजित सिंह बैंस
6. कॉमरेड लाल सिंह, हिन्दुस्थान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के महासचिव
7. कुलदीप नय्यर
8. जस्टिस राजिंदर सच्चर
9. एस राघवन, अध्यक्ष, लोक राज संगठन
10. शांती भूषण, पूर्व कानून मंत्री
11. शोनाली बोस, फिल्म निर्माता
12. मधू किश्वर, मानुषी
13. प्रशांत भूषण, वरिष्ट एडवोकेट, सर्वोच्च न्यायालय
14. तीस्ता सेतल्वाड, सामाजिक कार्यकर्ता
15. प्रोफेसर नंदिनी सुंदर, दिल्ली विश्वविद्यालय समाज शास्त्र विभाग की प्रमुख
16. गीता आर., “अमु” फिल्म की सहनिर्माता
17. शिनानंद कणवी, संपादक, ग़दर जारी है
18. राजविंदर सिंह बैंस, वरिष्ट एडवोकेट, चंदिगढ
19. सुचरिता, सचिव, पुरोगामी महिला संगठन
20. ए. मैथ्यू, सचिव, कामगार एकता चलवल, महाराष्ट्र
21. डॉ. संजीवनी जैन, प्रोफेसर, वझे कॉलेज, मुंबई
22. प्रोफेसर बी. अनंतनारायण, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ सायन्स, बंगलुरु
23. प्रकाश राव, प्रवक्ता, हिन्दुस्थान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी
24. बिरजू नायक, दिल्ली सचिव, लोक राज संगठन

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