नागरिक भाइयों और बहनों!
जून महीने की शुरुआत में मुंबई के पश्चिम रेल की दो लोकल गाड़ियों की टक्कर हुई। इस के लिए कौन ज़िम्मेदार था, यह सिध्द करने के पहले ही मीडिया ने दोनों चालकों के ख़िलाफ़ चिल्लाना शुरू किया। लेकिन ठीक दूसरे दिन ही मीडिया को मानना पड़ा कि चालकों की गलती नहीं थी, सिग्नलिंग सिस्टिम में दोष था। लेकिन नुकसान तो हो ही गया था – सर्वसाधारण रेल चालकों को फिर से बदनाम किया गया था।

22 मई को जब हम्पी एक्स्प्रेस की दुर्घटना हुई थी, तब रेल अधिकारियों ने तुरंत रेल कर्मियों को दोषी ठहराया था – दोनों इंजन ड्रईवरों को मिला कर 7 रेल ऑफिसरों को सस्पेंड किया गया था। दूसरे दिन, सबूत के बिना ही रेल मंत्री ने घोषित किया कि मानवी गलतियों की वजह से ही दुर्घटना घटी थी, क्योंकि चालकों ने सिग्नल तोड़ा था। जब कि इंजन चालकों के रेकॉर्ड से यह सिध्द होता है कि संबंधित चालक ने 19 दिनों में 23 ट्रेन्स चलायी थी, जिस में 12 रात भर की, 3 आधी रात की तथा 7 पूरे दिन की डयुटियां थी। इस का मतलब है कि पिछले 3 हफ्तों में ड्राइव्हर को सिर्फ़ 3 रात पूरी नींद मिलने की संभावना थी! फिर दुर्घटना के लिए उसे दोषी ठहराना जायज है क्या?

जब भी कोई ट्रेन, बस या विमान का अपघात होता है तब अधिकारी नियमित तौर पर जांच पड़ताल पूरी होने के पहले ही चालकों पर इल्ज़ाम लगाते हैं। चालकों का नाम काला करने के पहले सरकार आरोप सिध्द होने की भी राह नहीं देखती है। लेकिन वह इस बात को छुपाती है कि इन लोगों को कैसी अमानवीय परिस्थिति में काम करना पड़ता है, जिस का दुष्परिणाम सिर्फ़ उनके और उनके परिजनों पर ही नहीं होता, बल्कि यात्रियों के लिए भी भीषण खतरनाक होता है।

इंजन चालकों तथा गार्डो की भयानक परिस्थिति से न ही उन के शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक स्वास्थ्य पर दुष्परिणाम होता है, लेकिन हम आम जनता के लिए भी खतरनाक होता है!

  • भारतीय रेल में इंजन चालकों की अधिकृत 82000 जगहों में से 20 प्रतिशत के ऊपर रिक्त हैं।
  • रेल चालकों की यूनियन ने बार बार यह स्पष्ट किया है कि प्रति वर्ष रेल मंत्रालय ट्रेनों की संख्या बढ़ा देता है, लेकिन चालकों की संख्या को नहीं बढ़ाता।
  • पिछले दशक में ट्रेनों की औसतन गति भी बढा दी गयी है।
  • तथ्यों के अनुसार रेल अधिकारियों ने निर्धारित किया हुआ विश्राम काल ही अवैज्ञानिक है।
  • 1980 के दशक में, लंबे आंदोलन के बाद माल गाड़ी चालकों के लिए 10 घंटों की बिना विश्राम की डयूटी तथा यात्रियों की गाड़ी चलानेवाले चालकों को 8 घंटों से कम डयूटी निर्धारित हुई। लेकिन युनियन नेता बताते हैं कि भारत सरकार ने जिस करार पर दस्तखत की है, उस अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के करार के अनुसार, किसी भी चालक को 8 घंटा अविरत डयूटी नहीं दे सकते। लेकिन रेल व्यवस्थापन ने धीरे धीरे यह करार का उल्लंघन करना शुरू किया!
  • इंजन चालको ंके लिए साप्ताहिक विश्राम के प्रावधान अस्पष्ट तथा अपर्याप्त हैं, और उन का भी नियमित तौर पर उल्लंघन किया जाता है। ज्यादातर चालकों को लंबे समय के लिए रात की डयूटी दी जाती है।
  • प्रचलित नियमों के अनुसार डयूटी के दौरान चालकों को खान पान के लिए या शौचालय में जाने के लिये भी विश्राम लेना वर्जित है। और रेल इंजनों में तो प्रसाधन होते ही नहीं हैं। कई सूपर फास्ट ट्रेन्स हैं जो बहुत तेज चलानी पड़ती हैं और जिन के लिए 5 – 5 घंटों तक स्टॉप भी नहीं होता है। ऐसे चालकों पर जो तनाव होता है और किस प्रकार की थकान आती होगी, इस की कल्पना करना भी मुश्किल है।
  • ज्यादातर चालको की डयूटी अपने घर से बहुत दूर ख़त्म होती है। उनके लिए जो ”रिटायरिंग रूम्स” होती हैं, वे डॉर्मिटरी टाइप की होती हैं, जिन में हमेशा भीड़ रहती है और जहां सतत डयूटी पर जानेवाले तथा डयूटी ख़त्म कर के आनेवाले रनिंग स्टाफ का हमेशा आना जाना होता रहता है। ऐसी परिस्थिति में उन्हें किस प्रकार का विश्राम मिलता होगा?
  • ट्रेनों की सुरक्षितता के लिए गार्ड भी अति महत्वपूर्ण होते हैं। रिक्त स्थन, पर्याप्त से ज्यादा काम, अपर्याप्त तथा अयोग्य विश्राम, परिणामत: होनेवाला शारीरिक तथा मानसिक तनाव – भारतीय रेल के इंजन चालकों की ये सब समस्याएं गार्डों के सामने भी हैं।
  • रेल में 1 लाख से ज्यादा रिक्त जगहें हैं, जिन में ज्यादातर ऐसे विभागों में हैं जो सुरक्षितता के लिए महत्वपूर्ण हैं, जैसे कि पॉइंट्समेन, सिग्नल मेन, स्टेशन मास्टर, टॅ्रक मेंटेनैन्स स्टाफ, इ. इन रिक्त जगहों की भर्ती ही नहीं की जा रही है।
  • बहुत बार पर्याप्त प्रतिबंधक मेंटेनेन्स के बिना ही इंजन तथा रेक्स को काम में फिर से लिया जाता है। अनेक अतिमहत्वपूर्ण कार्यों को निजी ठेकेदारों के हवाले किया जा रहा है।
     

और सेवा क्षेत्रों के श्रमिकों की भयानक परिस्थिति भी हमारे ख़िलाफ़ हमला है। उस से हमें क्षति पहुंचती है या हमारे लिए खतरनाक होता है तथा सार्वजनिक सेवाओं पर भी उस का दुष्परिणाम होता है।

  • डयूटी के तथा विश्राम के घंटों के मामले में इंडियन पायल्ट्स गिल्ड ने इसी प्रकार की ख़ामियां की तरफ़ निर्देष किया है।
  • एस. टी. में चालक तथा कंडक्टरों की हज़ारों जगहे रिक्त रखी जा रही हैं।
  • अधिकतम सरकारी रुग्णालयों में भी अनेक जगहे रिक्त रखी जाती हैं। सिर्फ़ महाराष्ट्र में ही विविध सरकारी रुग्णालय तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों की 10000 जगहे और नर्स, वॉर्ड बॉइज़ तथा समर्थक स्टाफ में और ज्यादा जगहे खाली पड़ी हैं।
  • ग्रामीण, ज़िल्ला परिषद, म्युनिसिपल तथा सरकार से अनुदानित विद्यालयों तथा महाविद्यालयों में हज़ारों शिक्षकों की जगहे खाली हैं।
  • फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया तथा सार्वजनिक वितरण व्यवस्था संबंधित विभागों में अनेक जगहे खाली हैं।
  • विविध सरकारों ने ”झीरो बजेट” काल घोषित कर के हर तरह की भर्ती बंद की है।
     

नागरिक भाइयों और बहनों!
खास कर के 1992 के बाद, यानि कि जब से काँग्रेस के स्व. नरसिंह राव की सरकार (जिस में श्री. मनमोहन सिंह वित्ता मंत्री थे) ने उदारीकरण तथा निजीकरण द्वारा वैश्वीकरण का कार्यक्रम लागू किया है, सरकारी खर्चा घटाने का दौर शुरू हो गया है। हिन्दोस्तान के बड़े पूंजीपतियों ने ऐसी नीतियां लागू कराने के आदेश दिये थे। इसीलिए, केंद्र तथा राज्यीय स्तर पर काँग्रेस, भाजप या पूंजीपतियों की कोई भी पार्टी के पास सत्ताा क्यूं न हो, इन नीतियों को बड़ी फूर्ति के साथ कार्यान्वित किया गया है। महत्वपूर्ण स्थानों को रिक्त रखा जा रहा है। इस के अलावा सार्वजनिक स्वास्थ्य, सार्वजनिक शिक्षा, सार्वजनिक वितरण यानि रेशन व्यवस्था के ऊपर के खर्चे में तथा रेल रेक्स, विमान, बसेस, रुग्णालयों की इक्विपमेंट के मेंटेनन्स के ऊपर के खर्चे में भी कटौति की गयी है। सरकारी मंत्री खुले आम कह रहे हैं कि इन सेवाओं को मुनाफ़ा बनाने वाले धंधों बतौर देखना चाहिए!

बात साफ है कि सरकार का आक्रमण सिर्फ़ किसी एक विशेष क्षेत्र के श्रमिकों के खिलाफ़ ही नहीं है, बल्कि हमारे सब के खिलाफ़ – यानि कि अपने देश के सभी लोगों के खिलाफ़ है, जिन के हित में ये सेवाएं चलनी चाहिए। और इसीलिए जब किसी एक विशेष सेवा के श्रमिक सुधारित परिस्थिति के लिए लड़ते हैं, तब वे अप्रत्यक्ष रूप से हमारे लिए भी लड़ते हैं! उन का समर्थन करना हम सब का फ़र्ज़ बनता है!

इसीलिए हम निम्नलिखित संगठन आप को तथा आप के संगठनों को याचना करते हैं कि आप निम्नांकित का समर्थन करें:

  • एक के ऊपर हमला यानि सब के ऊपर हमला!
  • प्रजा की ” सुख – सुरक्षा” सुनिश्चित करना, यह हर एक सरकार का प्राथमिक फ़र्ज़ है, जिस का किसी भी बहाने हनन नहीं हो सकता!
  • अनाज, स्वास्थ्य, पानी, बिजली, परिवहन, इ. सेवाओं को ”मुनाफ़ा बनाने के साधन”
  • बतौर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता; हिन्दोस्तान के हर एक नागरिक को वे मुनासिब
    दामों में मिलनी ही चाहिए!

लोक राज संगठन, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया एम्प्लॉइज़ यूनियन, एयर इंडिया एयरक्राफ्ट एंजिनियर्स असोसिएशन (AIAEA), ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ असोसिएशन (AILRSA), ऑल इंडिया रेलवे एम्प्लॉइज कॉन्फेडरेशन (AIREC), ऑल इंडिया सर्व्हिस एंजिनियर्स असोसिएशन (AISEA), ऑल इंडिया व्होल्टास एम्पलॉइज फेडरेशन, असोसिएशन ऑफ स्टेट मेडिकल इंटर्न्स, बेस्ट वर्कर्स यूनियन, बीएसएनएल एम्पलॉइज़ यूनियन, हिंद नौजवान एकता सभा, इंडियन पायलट्स गिल्ड (IPG), कामगार एकता चळवळ, लड़ाकू गारमेंट मज़दूर संघ, महाराष्ट्र असोसिएशन ऑफ रेसिडेंट डॉक्टर्स (MARD), मुंबई म्युनिसिपल एंजिनियर्स असोसिएशन, मुंबई म्युनिसिपल मज़दूर यूनियन, नेशनल फेडरेशन ऑफ पोस्टल एम्पलॉइज़ (NFPE), पुरोगामी महिला संगठन, वेस्टर्न रेलवे मोटरमेन्स असोसिएशन (WRMA)

संपर्क: 9821410105

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