5 मार्च, 2012 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर, दिल्ली के संगठनों ने संयुक्त रूप से संसद मार्ग पर विशाल जनसभा आयोजित की। ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस ज़िंदाबाद!’ के नारे से संसद मार्ग गूंज रहा था। इसमंं दिल्ली के विभिन्न रिहायसी क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं, अलग-अलग उद्योगों और सेवाओं में कार्यरत महिला श्रमिकों, स्कूलों-कालेजों से शिक्षकों और छात्राओं आदि ने सैकड़ों की संख्या में उत्साह के साथ भाग लिया।
लोक राज संगठन, पुरोगामी महिला संगठन, हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी सहित कई और संगठनों के सदस्यों, कार्यकर्ताओं ने उत्साह के साथ इसमें शिरकत की।
जन सभा में भाग लेने आई महिलाओं ने अपनी मांगों को दर्शाने वाले नारों के प्लेकार्ड पकड़े हुये थे जो कि इस प्रकार हैं – ‘सभी रिहायशी क्षेत्रों को बिना शर्त मूलभूत सुविधाएं-पानी, सड़क, सीवर, स्कूल आदि उपलब्ध कराओ!’, ‘पानी, शिक्षा स्वास्थ्य व परिवहन के निजीकरण पर रोक लगाओ!’, ‘शौच व्यवस्था हमारा जन्मसिध्द अधिकार है!’, ‘सर्वव्यापी सार्वजनिक खाद्य वितरण प्रणाली लागू करो!’, आदि।
पुरोगामी महिला संगठन, के कार्यकर्ताओं के हाथों में -‘भ्रष्ट और परजीवी पूंजीवादी राज्य मुर्दाबाद!’, ‘खाद्य में वायदा व्यापार और सट्टेबाजी नहीं चलेगी!’, ‘शासन सत्ता अपने हाथ, जुल्म अन्याय करें समाप्त!’, ‘अधिकतम लूट-खसौट की पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ़ एकजुट हों!, आदि नारों वाले प्लेकार्ड थे।
जन सभा की अध्यक्षता संयुक्त रूप से महिला संगठनों के प्रतिनिधियों ने की।
जन सभा में घटक संगठनों के प्रतिनिधियों को अलग-अलग विषयों पर जैसे – ‘महिला हिंसा, सार्वजनिक खाद्य वितरण प्रणाली, नागरिक सेवा, इत्यादि – पर बात रखने के लिए आमंत्रित किया गया।
‘सार्वजनिक खाद्य वितरण प्रणाली’ के विषय पर लोक राज संगठन व पुरोगामी महिला संगठन की सदस्या रेणू ने जनसभा में अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि उचित भोजन की कमी से हमारे देश में गर्भवती महिलाएं प्रसूती के समय मर जाती हैं। सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे हमारे देश में हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार अलग-अलग रंग के राशन कार्ड के नाम पर लोगों को मूर्ख बनाने और बांटने का काम कर रही है। खाद्य को हरेक नागरिक के मूल अधिकार बतौर सरकार मान्यता देने से इंकार कर रही है।
अपने वक्तव्य में उन्होंने बताया कि सर्वव्यापी सार्वजनिक वितरण की व्यवस्था होनी चाहिए। इसमें हरेक नागरिक को उचित कीमत पर, उचित गुणवत्ता सहित उचित मात्रा में खाद्य की जरूरत को सरकार उपलब्ध कराये। गेंहू, चावल, चीनी, मिट्टी का तेल, के अलावा दालें, ज्वार-बाजरा, सब्जियां, खाद्य तेल, ईंधन, नमक, मसाले आदि का वितरण भी इस प्रणाली के तहत होना चाहिए। खाद्य पदार्थों के वितरण पर नियंत्रण व संचालन क्षेत्र की समितियों के हाथों में होना चाहिये।
साथ ही साथ, सर्वव्यापी सार्वजनिक वितरण प्रणाली की कामयाबी के लिए किसानों द्वारा उत्पादित वस्तुओं की खरीदी लाभदायक दाम पर सुनिश्चित हो। इससे किसानों की रोजी-रोटी के मूल अधिकार तथा शहरों में मजदूरों को उचित कीमत पर खाद्य पदार्थों को पाने का अधिकार, दोनों की हिफाज़त होगी।
निजीकरण, उदारीकरण के जरिये भूमंडलीकरण की नीति के चलते, हमारे देश के किसान, अपनी फसल के जायज़ मूल्य के अभाव में अपनी फसलों को नष्ट कर रहे हैं। दूसरी तरफ, शहरों में खाद्य पदार्थों के बढ़ते दाम से मजदूरों के भरपूर और पोष्टिक भोजन की असुरक्षा बढ़ती जा रही है। इस नीति के ज़रिये देश के पूंजीपति खाद्य पदार्थों पर मुनाफा कमा रहे हैं।
अंत में, उन्होंने कहा कि आज देश की सत्ता पर पूंजीपतियों का राज है। अलग-अलग पार्टियों व गठबंधनों की सरकारों पर पूंजीपति नियंत्रण करते हैं। हम वोट देकर मात्र सरकार बदल सकते हैं, लेकिन देश के बहुसंख्यक लोगों की खुशहाली को सुनिश्चित करने वाली नीतियां नहीं! इसलिए हमारा संघर्ष लोगों के हाथ में राजनीतिक फैसले लेने की ताकत लाने के उद्देश्य के लिए होना चाहिए। लोगों के हाथ में राजनीतिक फैसले लेने की ताकत आने पर ही नीति तय करने के लोगों के अधिकार की पुष्टि होगी।
लोक राज समिति की सक्रिय कार्यकर्ता बॉबी ने ‘नागरिक सुविधा’ के विषय पर अपने विचार रखे।
सभा को घटक संगठनों के प्रतिनिधियों ने संबोधित किया जिनमें शामिल हैं, ए.आई.डी.डब्ल्यू.ए, भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन, सी.डब्ल्यू.डी.एस, घरेलू कामगार फोरम, फोर्सेस, जे.डब्ल्यू.पी, एन.एफ.आई.डब्ल्यू, राष्ट्रीय दलित महिला आंदोलन, सहेली, सामा, स्वास्तिक महिला समिति, वाई.डब्ल्यू.सी.ए इत्यादि।