1. सवालः लोक पाल बिल के सरकार के मसौदे और नागरिकों के प्रतिनिधियों के मसौदे के बीच क्या मुख्य अंतर है?

जवाबः हम लोक पाल को एक सबतरफा भ्रष्टाचार विरोधी यंत्र के रूप में चाहते हैं, जो सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार की जांच कर सकेगा तथा सज़ा दे सकेगा – चाहे प्रधान मंत्री हो, सांसद जो वोट देने के लिये पैसे लेते हैं, ऊंचे न्यायपालिका, या कोई भी हो। यह कई उपकरणों के जरिये जनता के प्रति जवाबदेह होगा। पर सरकार इसे एक छोटा, 11 सदस्य वाला निकाय बनाना चाहती है, जिसका दायरा बहुत सीमित होगा, जो सिर्फ तथाकथित “ऊंचे स्थानों” पर भ्रष्टाचार की जांच कर सकेगा, जो प्रधानमंत्री, सांसद या न्यायपालिका पर जांच नहीं कर सकेगा।

2. सवालः यह जनता द्वारा कानून बनाने के अधिकार को स्थापित करने की दिशा में एक कदम माना जा सकता है। पर वर्तमान व्यवस्था में सिर्फ विधायिका ही कानून बना सकती है। क्या अब जनता को कानून बनाने का अधिकार दिलाने का समय आ गया है?

जवाबः यह तो सच है कि किसी भी कानून को विधायिका द्वारा पास होना पड़ता है, अतः विधायिका ही कानून बनाती है। पर सवाल यह है कि क्या सरकार जनता के मत के अनुसार कानून बनाती है या जनता के मत को नजरंदाज करके। जनता के मत को जानने के लिये जनमतसंग्रह किया जा सकता है। आज की टेक्नौलोजी के साथ यह आसानी से किया जा सकता है। गांव-गांव में इंटरनेट कियोस्क लगाये जा सकते है, जिनमें लोग हर रोज अपना मत दे सकते है। आखिर, लोकतंत्र में लोग ही तो मालिक होने चाहियें। ऐसा क्यों नहीं किया जाता। हमने जिस प्रतिनिधित्ववादी लोकतंत्र को विरासत के रूप में पाया है, उसमें यह बहुत बड़ी कमी है।

3. सवालः अक्सर हम देखते हैं, जैसे कि खाद्य सुरक्षा बिल, भूमि अधिग्रहण बिल आदि में, कि सरकार जनता की राय मांगती है पर जब कानून बनाया जाता है तो जनता की राय को नजरंदाज कर दिया जाता है। इस पर आपका क्या विचार है?

जवाबः हमने यह मांग की है कि लोक पाल बिल ड्रफ्ंिटग कमेटी की सारी वार्तायें और चर्चाएं टीÛवीÛ में दिखाई जानी चाहिये, जनता के सामने खुली होनी चाहिये। सूचना का अधिकार भी यही कहता है। जब संसद की कार्यवाहियां टी.वी. पर दिखाई जा सकती हैं, तो ये क्यों नहीं? जनता को यह जानने का अधिकार है कि इन अहम मुद्दों पर क्या चर्चा हो रही है।

4. सवालः यह कहा जा रहा है कि अगर प्रधान मंत्री, उच्च न्यायपालिका आदि को लोक पाल के तहत लाया जाता है तो यह एक सर्वोपरि ढांचा बन जाएगा। इस पर कौन नियंत्रण करेगा, कौन इसे भ्रष्टाचार से बचायेगा?

जवाबः हमारा कहना है कि इस लोक पाल के तहत जो भी जांच एजेंसियां होंगी, उनकी उतनी ही ताकत होगी जितनी इस समय है, मसलन सी.बी.आई., सी.वी.सी., इत्यादि। हम सिर्फ यह कह रहे हैं कि इन्हें सरकार से अलग रखना चाहिये, वरना अंतरविरोधी हितों का टक्कर हो सकता है। आज सी.बी.आई. में इतना भ्रष्टाचार इसलिये है क्योंकि सरकार इसे एक राजनीतिक हथकंडे बतौर इस्तेमाल करती है, अपनी राजनीतिक विरोधियों को दबाने तथा खुद को बचाने के लिये। अब तो सरकार ने सी.बी.आई. को सूचना का अधिकार कानून से भी हटा दिया है। इसलिये हम चाहते हैं कि सीबीआई को सरकार से अलग किया जाये। लोक पाल का जांच करने व सज़ा देने के अलावा कोई और अधिकार नहीं है परन्तु सरकार के पास तो बहुत सारे कार्यकारी अधिकार हैं जैसे कि कांट्रैक्ट या लाइसेंस देना, इत्यादि, जहां मुख्य तौर पर भ्रष्टाचार होता है।
लोक पाल को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने के लिये हम उसकी कार्यवाहियों को सार्वजनिक करने तथा उस सीएजी की आडिट करवाने का प्रस्ताव कर रहे हैं। लोक पाल को राज्य के स्तर पर 5 सदस्यीय जन शिकायत समितियों को भी जवाब देना पड़ेगा। लोक पाल के कार्यकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट को भी जवाब देना पड़ेगा। हम सोशल आडिट के लिये भी तैयार हैं। हम यह मांग कर रहे हैं कि सी.बी.आई. को भ्रष्ट अफसर से भ्रष्टाचार के जरिये प्राप्त धन को जब्त करने का भी अधिकार दिया जाए।

5. सवालः अक्सर देखा जाता है कि बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने हितों के अनुसार यह तय करती हैं कि किस पार्टी की सरकार बनेगी, कौन मंत्री बनेगा, क्या सरकारी नीति होगी, इत्यादि। इस भ्रष्टाचार के स्रोत को लोक पाल कैसे रोकेगा?

जवाबः हमारा सुझाव है कि सिर्फ रिश्वत लेने वाले अफसर पर ही नहीं बल्कि रिश्वत देनी वाली कंपनी पर भी कार्यवाही की जाये। सरकार के सभी कांट्रेक्ट आदि खुलेआम सार्वजनिक विज्ञापन और नीलामी द्वारा होने चाहियें। कंपनियों को भी अपनी आमदनी – व्यय आदि का पूरा ब्यौरा देना पड़ेगा। … कोई भी ऐसा व्यक्ति किसी सरकारी पद पर नहीं हो सकेगा जो किसी कंपनी के लिये काम कर रहा हो। … मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि यह लोक पाल भ्रष्टचार की सप्लाई यानि रिश्वत देने वाले पर कार्यवाही कर सकता है। सरकार जो बड़े पैमाने पर सार्वजनिक संसाधनों का निजीकरण कर रही है, जो भ्रष्टाचार का बहुत बड़ा स्रोत है, यह सरकारी नीति बतौर किया जाता है और इस पर लोक पाल का कोई नियंत्रण नहीं है। लोक पाल सिर्फ यह सुनिश्चित कर सकता है कि सारी कार्यवाही में पारदर्शिता हो।

6. सवालः 2 जी घोटाले में अनुमान है कि राजकोष से 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा लूटा गया। पर जिन शक्सों को पकड़ा गया है, उन्होंने कुल मिलाकर कुछ सैकड़ों करोड़ रुपये कमाये होंगे। ज्यादा पैसा तो उन लोगों ने बनाए जिन्होंने लाइसेंस खरीदे और फिर उन्हें दूसरों को बेचे। उन पर कैसे कार्यवाही की जाएगी,

जवाबः जो कुल धन राजकोष से लूटा गया है, मानो 1 लाख करोड़ रुपये, उसे अलग-अलग किरायेदारों से, किसने कितना पैसा बनाया होगा उस आधार पर, वापस वसूला जायेगा। इसके लिये हम उचित उपकरण स्थापित करेंगे।

7. सवालः कहा जा रहा है कि यह लोक पाल असंवैधानिक है आपकी क्या राय है?

जबावः हमारे विचार में, इसमें ऐसी कोई बात नहीं है जो असंवैधानिक है या संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन करता है। पर सरकार कह रही है कि कुछ संविधानीय संशोधन की जरूरत है। अगर ऐसा है तो हम चाहते है कि जन हित में ऐसा किया जाये।

8. सवालः लोक पाल लोगों को सशक्त बनाने की दिशा में क्या भूमिका निभा सकता है?

जवाबः लोगों को सशक्त बनाने के लिये, राजनीतिक जीवन में लोगों की भागीदारी बढ़ानी होगी, जो कि जनमतसंग्रह आदि से हो सकता है। पर जांच करने और सज़ा देने का काम किसी संस्थान को करना पड़ेगा; यह जनसमूह से नहीं किया जा सकता। सिर्फ यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि इसमें पारदर्शिता हो, कि प्रत्येक व्यक्ति को शिकायत दर्ज करने तथा उस पर क्या कदम लिया गया है यह जानने का अधिकार हो।

9. सवालः मीडिया के अनुसार सरकार के मसौदे और अपने मसौदे में मुख्य अंतर इस बात पर है कि क्या लोक पाल प्रधान मंत्री को जांच सकता है। इस पर आपका क्या विचार है?

जवाबः किसी भी सभ्य देश में अगर प्रधान मंत्री या राज्य का अध्यक्ष भ्रष्टाचार में लिप्त पाया जाता है तो उस पर कार्यवाही की जाती है। मिसाल के तौर पर अमरीका के राष्ट्रपति निक्सन पर भ्रष्टाचार का आरोप था, तो उन पर जांच की गई और उन्हें पद छोड़ना पड़ा। लोक पाल से फर्क इतना होगा कि अब जो प्रधान मंत्री की जांच करेगा, वह प्रधान मंत्री के अधीन नहीं होगा। सरकार न्यायपालिका पर भी जांच नहीं चाहती। न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को रोकने के लिये सरकार के जो प्रस्ताव है, वे अन्तर्विरोधों से भरपूर हैं और भ्रष्टाचार रोक ही नही सकते। इस समय अगर सीबीआई या पुलिस को किसी जज की जांच करनी हो तो उसे चीफ जस्टिस से इजाज़त लेनी पड़ती है। सरकार इस तरह न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को छूट दे सकती है परन्तु लोकपाल न्यायपालिका के भ्रष्टाचार की जांच कर सकता है। उसे सरकार को जवाब नहीं देना होगा।

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