आजकल मानो भ्रष्टाचार की बाढ़ आ गयी है। हर दिन, एक न एक घोटाले का खुलासा होता है या सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टियां एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाती हैं। चाहे वह पामोलीन का मामला हो या राष्ट्रमंडल खेलों का, चाहे वह 2-जी के स्पेक्ट्रम का आबंटन हो या शहरों में फ्लैट्स का, चाहे वह न्यापालिका के निर्णयों के औचित्य का मामला हो या जांच समिति की सिफारिशों का, चाहे वह रक्षा संबंधी खरीदी का मामला हो या वाणिज्यिक हवाई जहाजों की खरीदी का, चाहे वह सब्जियों और दालों की कीमतों का प्रश्न हो या प्रत्यक्ष पूंजी निवेश का, लोगों को साफ होता जा रहा है कि सरकार और प्रशासन की हर कृति लोगों के हित के खिलाफ होती है। आज तक सरकार का ऐसा कोई मामला नहीं प्रकट हुआ है जो किसी खास इजारेदार पूंजीपति या आम तौर पर बड़े उद्योगपतियों के हित में न हो।
भाइयों और बहनों, इससे हम क्या नतीजा निकाल सकते हैं? क्या हमें सोचना चाहिये कि कुछेक लोग बहुत लालची हैं परन्तु लोकतंत्र की यह व्यवस्था ठीक-ठाक है? नहीं साथियों, अगर बार-बार उसी तरह की पार्टियां और उसी तरह के अधिकारी सत्ता में आते रहते हैं, और लोगों के खिलाफ नीतियां बनाने वालों और निर्णय लेने वालों को कभी सज़ा नहीं मिलती तो, इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि यह कुछ मुट्ठी भर लोगों की मनमानी की व्यवस्था है जो आम मेहनतकश लोगों के हितों को रोंदती है। यह भी निष्कर्ष साफ निकलता है कि इसमें कुछेक ‘सुधारों’ से, इसके कुछ अत्याधिक विकृत पहलुओं को ठीक करके, इसका मौलिक चरित्र नहीं बदलने वाला है। अगर इसे लोगों के हित का लोकतंत्र बनाना है तो इसका नवनिर्माण करना जरूरी है। लोगों को वर्तमान व्यवस्था से नफरत है और उनके मन में गुस्सा है कि देश के श्रम और संसाधनों को लूट कर कुछ मुट्ठीभर लोग ऐश करते हैं, जबकि आम लोगों को, कड़ी मेहनत करने के बावजूद भी, एक मानव के जैसे जीवन जीने की सुनिश्चिति नहीं है। लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि पूरे समाज पर असर डालने वाली नीतियों को कुछ मुट्ठीभर अतिमालदार पूंजीपतियों के हित में क्यों बनाई जाती है। देश और समाज के नीतिनिर्धारण की ताकत तो अधिकतम समाज, यानि मेहनतकश जनसमुदाय के हाथों में होनी चाहिये। लोग अब इस वर्तमान स्थिति को और सहने के लिये तैयार नहीं हैं और सड़कों पर उतरने को तैयार हो रहें हैं। यही वक्त है कि मिलकर हम हिन्दोस्तान के नवनिर्माण का बीड़ा उठायें।
अपने देश के नवनिर्माण के लिये हमें क्या करना होगा?
सबसे पहले हमें वर्तमान व्यवस्था के बारे में सभी भ्रमों को मन से निकालना होगा। अगर हम अपने देश के इतिहास पर दृष्टि डालें, तो हम देखेंगे कि हिन्दोस्तानी राज्य (और दक्षिण एशिया के दूसरे देशों) की नींव, 1857 की बगावत को कुचलने के बाद, अंग्रेजों ने डाली थी। शुरुवात में सभी अधिकार उपनिवेशी सत्ता के हाथ में थे और करीब अगले सौ वर्षों में क्रमश: इसमें अंग्रेजों द्वारा प्रशिक्षित सम्पत्तिवान हिन्दोस्तानियों को शामिल किया गया। पहले ऐसे हिन्दोस्तानियों को प्रशासन से सिर्फ प्रश्न पूंछने की ही अनुमति थी, पर धीरे-धीरे उनको निर्णय लेने के अधिकार भी दिये गये। लोगों के बढ़ते उपनिवेश-विरोधी आंदोलन और बढ़ती बगावत के कारण, आखिर, अंग्रेज शासकों को 1947 में सत्ता का हस्तांतरण करना पड़ा। परन्तु सत्ता हस्तांतरण इस धूर्तता और चालाकी से किया गया कि अंग्रेजी हुकूमत द्वारा निर्मित प्रशासन और सत्ता के तंत्रों में कोई मूलभूत बदलाव नहीं आने दिये गये। हिन्दोस्तान के श्रम व संसाधनों की लूट-खसौट और हिन्दोस्तानी लोगों को कुचलने के लिये तैयार की गयी सत्ता, हिन्दोस्तानी शासकों के हाथ सौंपी गयी। साथियों, क्या यह संभव है कि जिस व्यवस्था का निर्माण लोगों को दबाने के मकसद से किया गया हो वह कुछ ऊपरी लीपा-पोती के जरिये लोगों के भले के लिये बना दी जाये। यह उसी तरह संभव नहीं है जैसे कि एक मोटर गाड़ी में थोड़े फेर बदल से हवाई जहाज नहीं बनाया जा सकता है। और इसीलिये वर्तमान व्यवस्था का नवनिर्माण एक नये आधार पर करना आवश्यक है। वर्तमान व्यवस्था के बारे में भ्रम जितने जल्दी खत्म होगें, उतनी ही जल्दी अपने देश का नवनिर्माण का कार्य प्रभावी हो सकता है।
यह नवनिर्माण कैसा हो?
राज्य सत्ताा में लोगों की भूमिका को प्रमुख स्थान देना इस नवनिर्माण का उद्देश्य होगा। इसके लिये हमें ऐसी नई राजनीतिक प्रक्रिया बनानी होगी। लोग अपने-अपने रिहायशी इलाकों और काम के स्थानों में, समितियों में संगठित होकर अपने चुने गये प्रतिनिधियों (यानि निगम पार्षद, विधायक, सांसद, आदि) पर अपना नियंत्रण जमाना होगा। इसके लिये हमारी पहली मांग होगी कि उम्मीदवारों का चयन लोगों द्वारा अपने बीच में से किया जाए, न कि किसी संस्थागत राजनीतिक पार्टी द्वारा। दूसरी, कि चुने गये प्रतिनिधि को प्रत्यक्ष रूप से, लोगों के सामने समय-समय पर अपने काम का हिसाब देना होगा। तीसरी, कि अगर प्रतिनिधि जनता के हित के खिलाफ़ काम करता है तो उसे पद से हटाने का अधिकार लोगों को होगा। चुनावी प्रणाली से धन का वर्चस्व खत्म होना चाहिये, जिसका इस्तेमाल करके इजारेदार पूंजीपति अपने नुमाईंदो को चनाव में विजयी करते हैं। इसके विपरीत, सभी उम्मीदवारों के लिये समतल मैदान होना चाहिये। सभी को बराबर का मीडिया समय मिलना चाहिये; सभी को बराबरी के बैनर और प्रचार साम्रगी उपलब्ध होनी चाहिये। यह किसी की निजी सम्पत्ति पर निर्भर नहीं होना चाहिये और न ही किसी धनवान की कृपा पर, बल्कि इसका खर्चा सरकार के द्वारा, बिना किसी भेदभाव के, होना चाहिये।
नीतिनिर्धारण और कानून बनाने का अधिकार लोगों के हाथ में
देश की कोई भी नीति जनता की राय लिये बिना और मंजूरी प्राप्त किये बिना, जनता के पीठ-पीछे नहीं तय की जा सकती है। कानून प्रस्ताव करने का अधिकार लोगों के हाथों में होना चाहिये। जनता और समाज के हितों के खिलाफ़ काम करने वालों, देश की सम्पत्तिा तथा धन लूटने वालों को कड़ी से कड़ी सज़ा देने का अधिकार और ताकत भी लोगों के हाथों में होना पड़ेगा। इन सभी कदमों को उठाकर हम एक नई राजनीतिक प्रक्रिया स्थापित कर सकते हैं, जिसमें लोग तथा लोकहित ही सर्वोपरि होगा, न कि चंद इजारेदार पूंजीवादी शोषक मुनाफाखोर और लुटेरे।
लोगों की जरूरतों को प्राथमिकता
इस प्रकार की राजनीतिक प्रक्रिया के जरिये ही अर्थव्यवस्था की दिशा को भी बदला जा सकता है। आज अर्थव्यवस्था मुट्ठीभर इजारेदार कंपनियों के मुनाफे को बढ़ाने की दिशा में चलती है और इसके लिये लोगों का शोषण्ा व दमन बढ़ाया जाता है, मंहगाई पर लगाम नहीं लगायी जाती और शिक्षा, स्वास्थ्य व पौष्टिक आहार और सभी जरूरी वस्तुओं की उपलब्धि सुनिश्चित नहीं की जाती। इसके विपरीत, नयी राजनीतिक प्रक्रिया में लोग अपनी ताकत का इस्तेमाल करके यह सुनिश्चित करेंग कि इजारेदार कंपनियों के मुनाफे पर लगाम लगायी जाये और सर्वव्यापी सार्वजनिक वितरण प्रणाली स्थापित की जाए, जिससे सभी शारिरिक व मानसिक मेहनत करने वाले लोगों के जीवन में स्थिरता और खुशहाली सुनिश्चित की जा सके।
आज लोगों के पास, भ्रष्टाचार और घोटालों का सामना करने के लिये बहुत से नये विचार और पहलकदमियां हैं परन्तु वर्तमान राज्य व्यवस्था पर नियंत्रण रखने वाली ताकतें इनको लागू करने में रोढ़े अटकाती हैं। अत: समाज पर से मुट्ठीभर लोगों के नियंत्रण को हटा कर, लोक राज के प्रत्यक्ष लोकतंत्र को स्थापित करने से ही समाज को सदा के लिये भ्रष्टाचार और घोटालों से मुक्त किया जा सकता है।
भ्रष्टाचार का एक इलाज लोक राज, लोक राज!
वर्तमान ”लोकतंत्र”, पूंजी तंत्र है, लोक राज ही, असली लोक तंत्र है!
पूंजी तंत्र को मिटाना है, लोक राज को लाना है!
राजनीतिक प्रक्रिया पर पार्टियों की दादागिरी व नियंत्रण खत्म करें!
उम्मीदवार का चयन लोगों की समितियां करें, न कि पार्टियां!
कानून प्रस्ताव करने का अधिकार लोगों के हाथों में हो!
जनप्रतिनिधि को वापस बुलाने का अधिकार लोगों के हाथों में हो!
कार्यपालिका, न्यायपालिका, लोगों के प्रति जवाबदेह हो!
नीति-निर्धारण पर लोगों का नियंत्रण हो!
सर्वोच्च पद पर बैठे गुनहगारों को सज़ा दें
लोक राज संगठन का बयान, 30 जनवरी 2011